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    Gita Press: रोचक है गीताप्रेस की स्थापना की कहानी, एक रुपये में पाठकों को उपलब्ध हुई थी गीता की पहली पुस्तक

    By Pragati ChandEdited By:
    Updated: Sat, 04 Jun 2022 10:26 AM (IST)

    सेठजी जयदयाल गोयंदका ने गोरखपुर में गीता प्रेस की नींव रखी थी। यहां 1923 में उर्दू बाजार में 10 रुपये मासिक किराये पर एक कमरा लिया गया था। यहां का पहली पुस्तक की कीमत एक रुपये रखा गया था।

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    रोचक है गीताप्रेस की स्थापना की कहानी। (फाइल फोटो)

    गोरखपुर, जागरण टीम। गोविंद भवन ट्रस्ट के अंतर्गत गीताप्रेस संचालित होता है। इसी ट्रस्ट ने सन 1921-22 में गीता की जो पहली पुस्तक छपवाई थी, उसकी कीमत मात्र एक रुपये थी। यह पुस्तक कोलकाता (तब कलकत्ता) के वणिक प्रेस में छपवाई गई थी। इसी पुस्तक ने गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की नींव रखी।

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    ऐसे हुई थी शुरूआत: गीताप्रेस की स्थापना की कहानी बड़ी रोचक है। संस्थापक सेठजी जयदयाल गोयदंका ने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना कर कोलकाता में सत्संग शुरू कर दिया था। उस समय गीता सर्वसुलभ नहीं थी। इसलिए उन्होंने शुद्ध व सस्ती गीता छपवाकर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की। पुस्तक छपने के दौरान उन्होंने इतनी बार संशोधन किया कि प्रेस मालिक हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और कहा कि इतनी शुद्ध गीता छपवानी है तो अपना प्रेस लगवा लीजिए।

    उर्दू बाजार में किराए के कमरे में शुरू हुई थी छपाई: सेठजी ने उसकी बात को भगवान की इच्छा मानी और दूसरे दिन यह बात अपने सत्संग में रखी। उस समय गोरखपुर के घनश्याम दास जालान व महावीर प्रसाद पोद्दार भी उपस्थित थे। घनश्याम दास जालान ने कहा कि सेठ जी, यदि गोरखपुर में प्रेस लगे तो उसकी संभाल मैं कर लूंगा। इसके बाद यहां 1923 में उर्दू बाजार में 10 रुपये मासिक किराये पर एक कमरा लिया गया। वहीं वैशाख शुक्ल त्रयोदशी के दिन 29 अप्रैल को गीता की छपाई शुरू हुई थी। जुलाई 1926 में 10 हजार रुपये में साहबगंज के पीछे एक मकान खरीदा गया जो आज गीताप्रेस का मुख्यालय है। धीरे-धीरे परिसर का विस्तार हुआ। दो लाख वर्ग फीट में फैले इस परिसर में 1.45 लाख वर्ग फीट में प्रेस व शेष में मकान व दुकानें हैं।

    छप चुकी हैं 90 करोड़ पुस्तकें: स्थापना समय से लेकर अब तक 90 करोड़ पुस्तकें छप चुकी हैं। इनमें 16.57 करोड़ प्रतियां कल्याण की हैं। शेष 73.43 करोड़ पुस्तकों में गीता, श्रीरामचरितमानस समेत अनेक धर्म ग्रंथ, संस्कार, पूजा-पाठ, महिलाओं व बच्चों से संबंधित पुस्तकें हैं।