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    अक्षर-अक्षर अध्यात्म, जानें- गोरखपुर में कैसे हुई गीता प्रेस की स्‍थापना

    By Pradeep SrivastavaEdited By:
    Updated: Mon, 21 Mar 2022 07:05 AM (IST)

    Gita Press Gorakhpur गीता प्रेस गोरखपुर की स्‍थापना 1923 में गोरखपुर के उर्दू बाजार में किराए पर एक कमरे में हुई। 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीता प्रेस भवन के मुख्य द्वार का उद्घाटन किया।

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    गोरखपुर का गीता प्रेस। - जागरण, फाइल फोटो

    गोरखपुर, जेएनएन। भाव, संवेदना, सत्य व कथ्य की यदि गोरखपुर एक किताब हो तो गीताप्रेस उसका एक खूबसूरत अध्याय है। अब यह पूरी दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम है। सस्ते दर पर लोगों को धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध कराना और इन पुस्तकों के माध्यम से संस्कार निर्मित करना गीताप्रेस का मुख्य कार्य है। वह सिर्फ अच्छे संस्कारों का प्रचार-प्रसार ही नहीं करता बल्कि वहां काम करने वाले मजदूर से लेकर प्रबंधक तक खुद भी उसे जी रहे हैं।

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    1923 में हुई गीता प्रेस की स्‍थापना

    लगभग 98 वर्ष पूर्व उत्तर प्रदेश का पिछड़ा जनपद गोरखपुर ने गीता के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठाई। कोलकाता के सेठ जयदयाल गोयंदका इसके वाहक बने। उन्होंने शुद्धतम गीता के प्रकाशन के लिए 1923 में गोरखपुर में प्रेस की स्थापना की जिसे आज गीताप्रेस के नाम से जाना जाता है।

    ऐसे हुई गीताप्रेस की स्थापना

    गोरखपुर में गीताप्रेस की स्थापना की कहानी बड़ी रोचक व प्रेरित करने वाली है। लगभग 1921 में कोलकाता में जयदयाल गोयंदका ने गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना की थी। इसी ट्रस्ट के तहत वहीं से वह गीता का प्रकाशन कराते थे। शुद्धतम गीता के लिए प्रेस को कई बार संशोधन करना पड़ता था। प्रेस मालिक ने एक दिन कहा कि इतना शुद्ध गीता प्रकाशित करवानी है तो अपना प्रेस लगा लीजिए। गोयंदका ने इसे भगवान का आदेश मानकर इस कार्य के लिए गोरखपुर को चुना। 1923 में उर्दू बाजार में दस रुपये महीने के किराए पर एक कमरा लिया गया और वहीं से शुरू हो गया गीता का प्रकाशन। धीरे-धीरे गीताप्रेस का निर्माण हुआ और इसकी वजह से पूरे विश्व में गोरखपुर को एक अलग पहचान मिली। 29 अप्रैल 1955 को भारत के तत्कालीन व प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने गीता प्रेस भवन के मुख्य द्वार व लीला चित्र मंदिर का उद्घाटन किया था।

    गीताप्रेस का अर्थशास्त्र

    गीताप्रेस का सबसे खूबसूरत पक्ष उसका अर्थशास्त्र है। आम आदमी तक धार्मिक पुस्तकें सस्ते दर पर पहुंचाने का जब गीताप्रेस ने बीड़ा उठाया तो उसके पहले उसका अर्थशास्त्र तैयार किया। उद्देश्य था गीताप्रेस बंद न होने पाए और सफलता भी मिलती रहे। आज उसी अर्थशास्त्र के बल पर अच्छे कागज व आकर्षक छपाई भी गीता प्रेस की पहचान बनी हुई है। गीताप्रेस आम जन को लागत मूल्य से 30 से 60 प्रतिशत तक कम रेट पर पुस्तकें उपलब्ध कराता है। इतना ही नहीं गीताप्रेस निरंतर तरक्की भी करने में पीछे नहीं है। गीताप्रेस एक पैसा भी किसी व्यक्ति या संस्था से दान नहीं लेता है। कम कीमत में पुस्तकें उपलब्ध कराने के बावजूद गीताप्रेस कभी घाटे से प्रभावित नहीं हुआ। आज कोई भी प्रिटिंग की अत्याधुनिक टेक्नालाजी या मशीन आती तो वह गीताप्रेस में सबसे पहले आती है। गीताप्रेस का यह अर्थशास्त्र भारत व दुनिया के अर्थशास्त्र को नई दिशा दे सकता है।

    'नो प्राफिट नो लास' पर कार्य करता है गीता प्रेस

    गीताप्रेस, गोविंद भवन कार्यालय ट्रस्ट, कोलकाता की एक इकाई है। यह ट्रस्ट 'नो प्राफिट नो लास' पर कार्य करता है। गीताप्रेस घाटे से प्रभावित हुए बिना घाटे का सौदा करता रहे, इसके लिए गोविंद भवन कायरलय ट्रस्ट ने गीताप्रेस के अलावा आय के अन्य संसाधनों का विकास किया, जिसकी आय से गीताप्रेस का घाटा पूरा किया जाता है और पूरी दुनिया में धारि्मक पुस्तकें सस्ते दर पर उपलब्ध कराई जाती हैं। इसके लिए कपड़ों की तीन दुकानें गोरखपुर, कानपुर व ऋषिकेश में खोली गईं, जो अच्छी आय का स्रोत हैं। इसके अलावा गोरखपुर में लगभग दस दुकानें गीताप्रेस भवन में हैं जो किराये पर दी गई हैं। साथ ही हरिद्वार में आयुर्वेद की एक फैक्ट्री लगाई गई।

    पढ़ें और आचरण में उतारें

    गीताप्रेस का उद्देश्य तभी सफल होगा जब लोग पुस्तकों को पढ़ें, लोगों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें और अपने आचरण में उतारें। इसीलिए गीताप्रेस सस्ते दर पर पुस्तकें उपलब्ध कराता है ताकि लोगों के आचरण शुद्ध हों और एक सुंदर समाज की रचना हो सके। इतनी ज्यादा पुस्तकों की बिक्री के पीछे मूल रूप से तीन कारण हैं। एक तो पुस्तकें सस्ती हैं, दूसरे शुद्ध होती हैं और तीसरी बात यह कि ये पुस्तकें प्रामाणिक हैं। गीताप्रेस की पुस्तकों पर लोगों का विश्वास बहुत ज्यादा है। जब गीताप्रेस की पुस्तकें उपलब्ध नहीं होती हैं तभी लोग दूसरे प्रकाशनों की पुस्तक खरीदते हैं। - लालमणि तिवारी, उत्पाद प्रबंधक, गीताप्रेस।