UP News: विस्तार के लिए गीता प्रेस ने संस्कृति मंत्रालय से मांगी 20 एकड़ जमीन, धन की कमी बनी बाधा
इसके लिए प्रेस को 20 एकड़ जमीन की जरूरत है। जिला प्रशासन से एक साल पहले इसकी मांग की गई थी। अब गीताप्रेस ने स्वयं पहल कर जमीन के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। लेकिन कीमत चुनौती बनी हुई है। गीडा में जाकर प्रेस प्रबंधन ने कई जमीन देखी लेकिन वहां 20 एकड़ जमीन की कीमत लगभग 72 करोड़ रुपये है।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। गीताप्रेस के विस्तार के लिए जमीन खरीदना प्रबंधन के सामने चुनौती है। जिला प्रशासन से नाउम्मीद होने के बाद प्रेस प्रबंधन ने स्वयं जमीन की तलाश शुरू की। गीडा में जमीन पसंद भी आ गई, लेकिन उसकी कीमत चुनौती बनकर खड़ी हो गई।
20 एकड़ जमीन के लिए लगभग 72 करोड़ रुपये चाहिए, क्योंकि वहां जमीन की कीमत प्रति वर्गमीटर नौ हजार रुपये है। इतने रुपये गीताप्रेस के पास नहीं हैं। इसलिए प्रेस प्रबंधन ने संस्कृति मंत्रालय को पत्र लिखकर चैरिटी संस्थानों की तरह गीताप्रेस को जमीन देने की मांग की है। निर्माण कार्य प्रेस स्वयं कराएगा।
गीताप्रेस न तो कभी मांगता है और न ही दान स्वीकार करता है। लोक कल्याण के लिए उसने संस्कृति मंत्रालय से जमीन की अपेक्षा की है, ताकि सौ साल पूरा कर चुका गीताप्रेस अगले सौ वर्षों तक लोगों को लागत मूल्य से कम में धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध करा सके और विश्व के अनेक देशों में भारतीय धर्म-संस्कृति की सुगंध पहुंचा सके।
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इसके लिए प्रेस को 20 एकड़ जमीन की जरूरत है। गीडा में जाकर प्रेस प्रबंधन ने कई जमीन देखी लेकिन वहां 20 एकड़ जमीन की कीमत लगभग 72 करोड़ रुपये है।
यह जमीन गीडा कार्यालय के पास है। वहां 25 एकड़ जमीन है, जिसमें से पांच एकड़ गीडा अपने लिए आरक्षित रखेगा, शेष 20 एकड़ इंस्टीट्यूशनल कार्य के लिए आवंटित कर सकता है। यह जमीन तो प्रबंधन को पसंद आ गई, लेकिन इसके लिए गीताप्रेस के पास न तो कोई मद है और न ही इतने रुपये जमीन खरीदने के लिए हैं। गीडा ने गीताप्रेस को संत कबीर चौरा, मगहर रोड पर भी लगभग 5.75 एकड़ जमीन दिखाई, यह जमीन छोटी होने से प्रबंधन को पसंद नहीं आई।
चार लाख पाठकों तक पहुंची श्रीदुर्गासप्तशती
देवी उपासना के पर्व नवरात्र में श्रीदुर्गासप्तशती की चार लाख प्रतियां पाठकों तक पहुंच गईं। यह संख्या पिछले साल के बराबर ही है, लेकिन इस बार विशिष्ट पेपर पर प्रकाशित "श्रीदुर्गासप्तशती सचित्र" की मांग सबसे ज्यादा रही।
पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष इस पुस्तक की लगभग 18 हजार प्रतियां अधिक बिकीं। वासंतिक व शारदीय नवरात्र के दौरान प्रेस को श्रीदुर्गासप्तशती की बिक्री से लगभग 2.88 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं। इसकी कीमत 80 रुपये है।
श्रीदुर्गासप्तशती अनेक आकार-प्रकार व स्वरूप में प्रकाशित की जाती है। इनका मूल्य 30 रुपये से लेकर 450 रुपये तक है। गीताप्रेस लागत से कम मूल्य पर पूरी शुद्धता के साथ धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता है। इस प्रेस की पुस्तकें अन्य प्रकाशनों की अपेक्षा ज्यादा सस्ती होती हैं, गुणवत्ता में कमी नहीं होती और भाषा के स्तर पर पूरी तरह शुद्ध होती हैं।
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इसलिए गीताप्रेस से प्रकाशित पुस्तकों की मांग सबसे ज्यादा है। वासंतिक नवरात्र अप्रैल में और शारदीय नवरात्र अक्टूबर में पड़ा था। इस दौरान श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक की मांग बढ़ जाती है। इसलिए इसकी तैयारी पहले से गीताप्रेस ने कर ली थी।
शारदीय नवरात्र के लिए दो लाख प्रतियां पहले ही प्रकाशित कर ली गई थीं, जो नवरात्र शुरू होने के पूर्व ही खत्म हो गईं। पाठकों की मांग को देखते हुए प्रेस ने आनन-फानन 40 हजार प्रतियों का और प्रकाशन किया। वे सभी नवरात्र के दौरान ही डिस्पैच कर दी गईं।
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