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    जिब्रेलिक एसिड का साथ गेहूं की 'बीमार' फसल का कर देगा उपचार, नुकसान से बचाने में मददगार

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 05:43 PM (IST)

    गोरखपुर के डॉ. राकेश राय के अनुसार जिब्रेलिक एसिड (प्लांट हार्मोन) गेहूं और रागी की अविकसित फसल को नया जीवन देने में सहायक है। यह एसिड प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बेहतर करता है। डॉ. रामवंत गुप्ता के इस शोध को भारतीय पेटेंट विभाग ने प्रकाशित किया है। यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से मिट्टी के खारेपन और तापमान में वृद्धि से पौधों के विकास पर पड़ने वाला प्रभाव कम होगा।

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    गेंहू और रागी फसलों को नया जीवन देने में कारगर होगा जिब्रेलिक एसिड।

    डॉ. राकेश राय, गोरखपुर। अंगूर जैसे रसीले फलों का आकार बढ़ाने में मददगार जिब्रेलिक एसिड (प्लांट हार्मोन) गेहूं और रागी (मड़ुआ) की अविकसित फसल को नया जीवन देने में कारगर साबित हुआ है। खेत की मिट्टी सूखने, यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से खारापन बढ़ने और तापमान में अपेक्षाकृत वृद्धि के चलते विकसित न हो पाने वाले इन पौधों पर जिब्रेलिक एसिड का छिड़काव प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बाधित नहीं होने देगा।

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    शोध के दौरान पाया गया कि जिब्रेलिक एसिड ने प्रकाश संश्लेषण के लिए जरूरी इलेक्ट्रॉन के स्थानांतरण की गति में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी, जिससे फसल के विकास की गति तेज हो गई। सह-आचार्य डॉ. रामवंत गुप्ता के इस नवप्रयोग को भारतीय पेटेंट विभाग ने प्रकाशित कर इसकी सफलता पर अपनी मुहर लगा दी है।

    दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के सह-आचार्य डॉ रामवंत गुप्ता अपने अध्ययन के बार में बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में कई बार आवश्यकता से कम या फिर समय पर वर्षा न होने की वजह से खेत की मिट्टी सूख जाती है।

    यूरिया के ज्यादा उपयोग से पौधों में तापमान बढ़ने के दौरान उसके विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। गेहूं और रागी के साथ ऐसा होने के कारणों पर अध्ययन के दौरान स्पष्ट हुआ कि ऐसा प्रकाश संश्लेषण के लिए जरूरी इलेक्ट्रान का स्थानांतरण न होने से होता है।

    विपरीत परिस्थितियों में भी इन फसलों का विकास न रुके, इसके लिए उन्होंने शोधार्थी ज्योति मणि त्रिपाठी के साथ मिलकर इस पर शोधकार्य शुरू किया। इस क्रम में उन्होंने जिब्रेलिक एसिड नाम के वानस्पतिक हार्मोन का अविकसित पौधों पर निर्धारित मात्रा में छिड़काव किया। पाया कि फसल में इलेक्ट्रान के स्थानांतरण की गति बढ़ गई है।

    फसल के लिए जरूरी प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया सामान्य ढंग से संचालित होने लगी और लगभग सूख चुकी फसल फिर से लहलहा उठी। शोध के परिणाम तक पहुंचने में दोनों शोधार्थियों को एक वर्ष का समय लग गया।

    ऐसे करना होगा छिड़काव

    डॉ. रामवंत बताते हैं कि फसल पर जिब्रेलिक एसिड के छिड़काव में सावधानी बरतनी होगी। निर्धारित से अधिक मात्रा में छिड़काव नुकसानदेह साबित हो सकता है। गेहूं या रागी के आधा एकड़ खेत में 50 मिलीग्राम जिब्रेलिक एसिड पर्याप्त होगा। एक लीटर पानी में 50 मिलीग्राम एसिड डालकर हल्का छिड़काव करना होगा।

    हार्मोन के जैविक होने के चलते फसल पर इसका रासायनिक दुष्प्रभाव नहीं होता। बाजार में उपलब्ध जिब्रेलिक एसिड की कीमत 300 से 700 रुपये प्रति 100 मिलीलीटर है।

    10-12 दिन तक ही रहेगा प्रभाव

    ऐसा नहीं कि फसल पर जिब्रेलिक एसिड के छिड़काव का प्रभाव उसके कटने तक बना रहेगा। एक बार प्रयोग करने के बाद अधिकतम 10 से 12 दिन तक ही यह फसल के विकास को गति देने में कारगर होगा।

    यदि इस दौरान मिट्टी को नमी मिल गई और खारापन दूर हो गया तो विकास का क्रम जारी रहेगा। यदि कुछ दिन के अंतराल के बाद फिर यह स्थिति आती है तो दोबारा छिड़काव करना होगा।

    ऐसे शोध पर हमारा जोर है, जो आमजन से सीधे जुड़े हों। विश्वविद्यालय का यह शोध इस मानक पर पूरी तरह खरा उतर रहा है। गेहूं व रागी की खेती करने वाले किसानों को सीधे लाभ देने वाला है। इसके लिए डा. रामवंत गुप्ता व उनकी सहयोगी शोधार्थी बधाई के पात्र हैं। मुझे विश्वास है कि यह शोध अन्य शोधार्थियों के लिए प्रेरणा बनेगा। -प्रो. पूनम टंडन, कुलपति, दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय।