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    गरीब बच्चों को सिर्फ पढ़ाते ही नहीं, अपितु फीस, कापी और किताब से भी करते हैं मदद

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 12 Aug 2019 02:23 PM (IST)

    उनके पास कोई संतान नहीं है। इसलिए उन्होंने गरीब छात्रों को अपनी संतान मानते हुए निश्शुल्क कोचिंग पढ़ाना शुरू कर दिया। कई छात्र अब नौकरी में हैं।

    गरीब बच्चों को सिर्फ पढ़ाते ही नहीं, अपितु फीस, कापी और किताब से भी करते हैं मदद

    गोरखपुर, जेएनएन। यूं तो बस्ती जिले का सैनिक गांव पचवस देश सेवा के लिए कई पीढि़यों से विख्यात है। लेकिन यहां के एक लाल ने राष्ट्र भक्ति की अपनी एक अलग राह बनाई है। नाम धर्मेंद्र सिंह है। जिनके दिल के दरवाजे गरीब बच्चों के लिए हमेशा खुले रहते हैं। इनका स्नेहिल हृदय गांव के गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा का नव अंकुर भर रहा है। गरीब बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देकर आगे बढ़ाना इनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।

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    चौदह साल से पढ़ा रहे निश्शुल्क कोचिंग

    चौदह साल से धर्मेंद्र का यह अभ्यास अविराम है। जरूरतमंद बच्चों को न सिर्फ निश्शुल्क कोचिग पढ़ाकर होनहार बना रहे हैं बल्कि आवश्यकता पड़ने पर उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं। धर्मेंद्र ने जीव विज्ञान से एमएससी करने के बाद कंप्यूटर इंजीनियरिग की पढ़ाई पूरी की। नेपाल की एक कंपनी में नौकरी भी मिली। 6 वर्ष सेवा देने के बाद एक आंख में खराबी आ गई। नौकरी छोड़ घर आना पड़ा। धर्मेंद्र निराश नहीं हुए। उन्होंने बीएड व इतिहास से एमए की फिर से पढ़ाई की।

    ऐसे मन में आया विचार

    जीवन-यापन के लिए गांव में ही अपना साइबर कैफे स्थापित किया। दूसरी ओर जिदगी की नई पटकथा भी लिखने को ठान ली। अपनी कोई संतान नहीं होने से आसपास के बच्चों को ही अपनी संतान समझ उनके भविष्य को संवारने का बीड़ा उठा लिए। व्यवसाय से समय निकाल कर हर रोज सुबह-शाम निश्शुल्क कोचिग पढ़ाते हैं। इनकी पाठशाला में जरूरतमंद 40 बच्चों की संख्या है। जिन्हें पाठ्यक्रम की शिक्षा के अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी कराते हैं। धर्मेंद्र से सानिध्य प्राप्त बड़ी संख्या में बच्चे प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल भी हुए हैं।

    इनके पढ़ाए बच्चे अब कर रहे नौकरी और खुद को रोजगार

    पुलिस में 2018 की भर्ती में उनके पढ़ाए दस बच्चे सलेक्ट हो चुके हैं। बस्ती की छावनी की रंजना व गुंडा कुंवर की मधु वर्तमान में डाक्टर हैं। बड़ी संख्या में कंप्यूटर सीख कर बच्चे आत्मनिर्भर हो गए हैं। अब तो धर्मेंद्र के इस नेक कार्य की सराहना गांव के बाहर भी होने लगी है।

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