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    गीता वाटिका में संकीर्तन का श्रवण कर चुके हैं पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू

    Updated: Thu, 18 Sep 2025 11:10 PM (IST)

    गोरखपुर में गृहस्थ संत भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार की 133वीं जयंती गीता वाटिका में मनाई गई। इस दौरान पर पूजन अर्चन और संकीर्तन का आयोजन किया गया जिससे वातावरण भक्तिमय हो गया। स्वामी चिदानन्द ने कहा कि भाईजी ने अपनी साधना से गीता वाटिका को पावन तीर्थ बना दिया। रामजन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा भाईजी का अवतरण भारत की संस्कृति को जीवित रखने के लिए हुआ था।

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    गीता वाटिका में संकीर्तन का श्रवण कर चुके हैं पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू।

    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। गृहस्थ संत भाईजी हनुमान प्रसादजी पोद्दार की 133वीं जयंती गुरुवार को उनकी तपस्यास्थली गीता वाटिका में धूमधाम से मनाई गई। पूजन-अर्चन, संकीर्तन से वातावरण भक्तिमय बना रहा। गीता वाटिका में भाईजी के जयंती महोत्सव का शुभारंभ प्रात:काल शहनाई वादन से हुआ। मंगला आरती के बाद गीता वाटिका परिसर में संकीर्तनमय प्रभातफेरी निकाली गई। भाईजी के पावन कक्ष में समवेत स्वर में बधाई पदों का गायन किया गया। उन्हें भोग अर्पित किया गया।

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    दोपहर में गिरिराज पूजन एवं भोग अर्पण के बाद भक्तों ने भंडारे में महाप्रसाद ग्रहण किया। भक्तों ने भाईजी के ऑडियो प्रवचन का लाभ लिया। इसके बाद उनकी समाधि का विधिवत पूजन किया गया। समाधि स्थल को दीपों से सजाया गया था। मधुर नाम संकीर्तन से वातावरण भक्तिमय हो गया। श्रद्धालुओं ने समाधि की परिक्रमा कर भाईजी के चरणों में अपनी आस्था व श्रद्धा अर्पित की।

    श्रद्धार्चन समारोह की अध्यक्षता करते हुए स्वामी चिदानन्द ने कहा कि परमतपस्वी संत भाईजी हनुमान प्रसादजी पोद्दार ने अपनी साधना, त्याग और तपस्या से गीता वाटिका क्षेत्र को एक पावन तीर्थ का रूप दे दिया। उन्होंने संस्कृति और धर्म के माध्यम से पूरे विश्व में सनातन का शंखनाद किया। सभी पुराणों गीता, रामायण, महाभारत पर टीका लिखकर जन-जन तक सद्साहित्य को पहुंचाने का जो पुनीत कार्य भाईजी ने किया उसके लिए आज संपूर्ण मानव समाज उनका का ऋणी है।

    उन्होंने कहा कि स्वयं के लिए जीने वालों का मरण होता है। जगत के लिए जीने वालों की हम शरण जाते हैं। महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमशंकर दास ने कहा कि भाईजी ऐसे महामानव थे, जिनके व्यक्तित्व का अनुसरण जिन्होंने भी किया उनका जीवन धन्य हो गया।

    गीता वाटिका एक ऐसी धरती है जहां भाईजी का दर्शन करने के लिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू स्वयं पधारे थे तथा संकीर्तन का श्रवण किए थे। भाईजी एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे जिनको सम्मान और भारतरत्न जैसी उपाधियों की परिधि में नहीं बांधा जा सकता। वरिष्ठ कैंसर सर्जन प्रो. जीके रथ ने कैंसर से बचाव और सावधानी की जानकारी दी।

    स्वामी नरहरि दास ने कहा कि जिस प्रकार भगवान कृष्ण व भगवान राम ने संतों-महात्माओं के संरक्षण और दुष्टों का संहार करने के लिए अवतार लिया था उसी प्रकार भाईजी का अवतरण संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए हुआ था।

    रामजन्मभूमि ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि भाईजी का अवतरण संतों के आशीर्वाद से हुआ था। जिस समय भाईजी का अवतरण हुआ उस समय देश को आवश्यकता थी भारत की सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखने की। इस पुनीत कार्य को भाईजी ने अपने त्याग, तपस्या और समर्पण से पूरा किया।

    इतिहास संकलन समिति के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुन्द पांडेय ने कहा कि गोरखपुर की धरती का इतिहास से अच्छा जुड़ाव रहा है। गोरखपुर की संस्कृति रही है कि यह धरती जिसे अपना लेती है उसे एक पहचान देती है।

    ऐसे महापुरुषों में से एक थे भाईजी हनुमान प्रसादजी पोद्दार। उन्होंने गीता, रामायण, कल्याण और अन्य सत्-साहित्य के माध्यम से पूरे देश में क्रांति की अलख जगाई।

    संचालन करते हुए भारतीय इतिहास अनुंसधान परिषद के निदेशक डॉ. ओमजी उपाध्याय ने कहा कि भाईजी के प्रत्येक कोण से चमत्कृत कर देने वाली आभा फूटती थी।

    देश को दासता से मुक्त करने के संकल्प के साथ शुरू हुआ क्रांतिकारी जीवन कवि, लेखक, संपादक, समाजसेवी, संगठनकर्ता, गोसेवक एवं भगवतभक्त आदि उनके जीवन के ऐसे पहलू हैं जिनका एक व्यक्तित्व में होना ही उन्हें महामानव और एक विराट संस्था के रूप में स्थापित करता है।

    धर्मप्राण भारत के पराधीनता की पीड़ा भाईजी के बाल्यमन पर अंकित थी। इसीलिए मात्र 13-14 वर्ष की आयु में बंगाल विभाजन के समय जो स्वदेशी का व्रत उन्होंने लिया वह जीवनभर पहले से अधिक प्रखर होता गया।

    खादी जिसे बाद में गांधी जी ने स्वतंत्रता संघर्ष का एक बड़ा हथियार बनाया, उसकी संकल्पना सबसे पहले भाईजी के मन में ही जन्मी थी। उन्होंने गांधी जी से लगभग डेढ़ साल पहले खादी का प्रयोग प्रारंभ कर दिया था।

    अतिथियों का स्वागत हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मारक समिति के संयुक्त सचिव रसेन्दु फोगला व धन्यवाद ज्ञापन स्मारक समिति के सचिव उमेश कुमार सिंहानिया ने किया।

    इस अवसर पर परमेश्वर अजीत सरिया, हरिकृष्ण दुजारी, डॉ. राजेश कन्थारिया, नितेश पोद्दार, विनीत अग्रवाल, दीपक गुप्ता, कनक हरि अग्रवाल उपस्थित रहे।

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