Exclusive: पाली हाउस में जरबेरा की खेती, हर महीने फूल से कमा रहे डेढ़ लाख
गोरखपुर के कुसमौल में सत्यव्रत शाही ने 1.12 करोड़ रुपये की लागत से पॉलीहाउस में जरबेरा की खेती शुरू की है। 90 हजार पौधे लगाए गए हैं जिनसे फूल आ रहे हैं। फूलों को लखनऊ और दिल्ली की मंडियों में भेजा जाता है जिससे उन्हें महीने में डेढ़ से तीन लाख रुपये की आमदनी हो रही है। उद्यान विभाग से उन्हें प्रशिक्षण और अनुदान भी मिल रहा है।

जितेन्द्र पाण्डेय, जागरण, गोरखपुर। कुसमौल के सत्यव्रत शाही ने 1.12 करोड़ रुपये खर्च कर पाली हाउस में जरबेरा की खेती की है। नवंबर 2024 व फरवरी 2025 में लगाए गए 90 हजार पौधे में फूल भी आ रहे है। प्रतिदिन वह 10 फूलों का बंडल बनाकर 12 से 15 गत्ता लखनऊ और दिल्ली की मंडी में भेजते है। एक गत्ते में 60 बंडल आता है। वहीं एक बंडल का उन्हें सीजन में 65 रुपये और आफ सीजन में 13 से 20 रुपये मिलता है।
सत्यव्रत के अनुसार हर दिन उन्हें पांच से 10 हजार रुपये और महीने में डेढ से तीन लाख रुपये की आमदनी होती है। लेकिन जून, जुलाई और अगस्त में इसकी मांग कम होने से दाम भी कम हो जाता है। गोरखपुर में जरबेरा फूल की मंडी नहीं होने से उन्हें बाहर भेजना पड़ता है। ट्रांसपोर्ट का प्रति गत्ता 330 रुपये आता है।
पाली हाउस में पौधा लगाने पर चार वर्ष तक एक दिन के अंतराल में उसमें फूल आते है। इस खेती को करने के लिए उन्हें राजकीय उद्यान और एनएचबी (नेशनल हार्टीकल्चर बोर्ड) दिल्ली के कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर प्रशिक्षण मिलता है।
सहायक उद्यान निरीक्षक व पिपरौली ब्लाक प्रभारी अमित कुमार ने बताया कि सत्यव्रत जिले के पहले ऐसे किसान है, जिन्होंने पाली हाउस में जरबेरा की खेती कर हर महीने लाखों की आमदनी कर रहे है। इन्हें सरकार की तरफ से अनुदान भी मिलेगा। एनएचबी और राजकीय उद्यान की तरफ से सर्वे कर लिया गया है। एक वर्ष तक पाली हाउस चलने और खेती करने पर 50 प्रतिशत का अनुदान मिलेगा।
पाली हाउस में की गई जरबेरा की खेती। जागरण
तीन महीने में आने लगता है फूल
सहायक उद्यान निरीक्षक अमित कुमार ने बताया कि जरबेरा का पौधा खुले आसमान में भी लगाया जा सकता है। लेकिन, तेज धूम और वर्षा के समय नष्ट हो जाता है। पाली हाउस में इसे एक जैसा तापमान मिलता है, इससे पौधा चार वर्ष तक चलता है। पौधा लगाने के तीन महीने बाद इसमें फूल आने लगते है। एक दिन के अंतराल पर हर पौधे में एक से दो फूल आते है।
हालैंड से आता टिशू, पूना में तैयार होता पौधा
उद्यान निरीक्षक अमित कुमार ने बताया कि जरबेरा का पौधा पूना के लैब में तैयार किया जाता है। इसके लिए हालैंड से इसके टिशू (कोशिकाओं का समूह) आते है। इसके बाद लैब में पौधा तैयार कर मांग के अनुसार भेजा जाता है।
सत्यव्रत ने बताया कि दो चरणों में उन्होंने पाली हाउस तैयार कराया। नवंबर 2024 में एक एकड़ में पहला पाली हाउस तैयार हुआ तो उन्होंने 45 हजार पौधे पूना से मंगवाए। यहां तक आने में एक पौधे का दाम 75 रुपये पड़े थे। इसके बाद फरवरी 2025 में एक एकड़ में दूसरा पाली हाउस तैयार हुआ था और उन्होंने पौधा लगाया था। सभी पौधों में फूल आ रहे है। इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी का प्रयोग होता है।
सजावट में आता है काम, 15 दिन तक रहता है ताजा
जरबेरा के फूल में महक नहीं होती है। अमित ने बताया कि इसका फूल सजावट में काम आता है। पूरे वर्ष इसकी मांग होती है। शादी, पार्टी, राजनैतिक कार्यक्रम समेत अन्य कार्यक्रमों में सजाने के लिए इसके फूल का इस्तेमाल होता है। अगर इसे धूप में न रखा जाए तो 15 दिन तक इसका फूल सुरक्षित रहता है। यानी एक बार सजावट में प्रयोग किया गया इसका फूल 15 दिन तक ताजा बना रहता है। होटल में होने वाले कार्यक्रमों में सबसे अधिक इसका प्रयोग किया जाता है।
प्रतिदिन जारी होता है रेट
सत्यव्रत शाही ने बताया कि जरबेरा की सबसे बड़ी मंडी दिल्ली के गाजीपुर में है। लखनऊ में भी है लेकिन छोटी मंडी है। यहां से प्रतिदिन जरबेरा फूल के रेट जारी होते है। फूल भेजने के पहले वह रेट देख लेते है। इसके बाद ट्रेन से वह फूल भेजते है।
फूल तोड़ने से लेकर बंडल बनाकर गत्ते में पैक करने के लिए 16 लोग काम करते है। अधिक से अधिक जितना फूल मंडी में पहुंचेगा, उतनी आमदनी होगी। अगर मंडी पास होती तो ट्रांसपोर्ट का खर्चा बचता। शादी-विवाह के सीजन में लोकल से भी लोग फूल लेने के लिए पहुंचते है।
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