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    Gorakhpur: हाथी के पैरों तले बुझ गया घर का चिराग, ममता की छांव के साथ छिन गया मां का लाल

    By Jagran NewsEdited By: Pragati Chand
    Updated: Fri, 17 Feb 2023 10:44 AM (IST)

    हाथी के हमले में जान गंवाने वाला कृष्णा घर का एकलौता चिराग था। नानी के साथ ही उनकी गोद में बैठे दुलारे को हाथी ने रौंद दिया। जिससे दोनों ने दम तोड़ दिया। मां की ममता छीनने के साथ ही बेटे के छीन जाने से पूजा टूट चुकी है।

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    कौशल्या देवी की बेटी का पुत्र कृष्णा की फाइल फोटो। सौ. स्वजन

    गोरखपुर, आशुतोष मिश्र। चार साल का मासूम कृष्णा एक मां की प्रार्थनाओं का परिणाम था, तो पिता की बुढ़ापे की आशा। नानी कौशल्या देवी का दुलारा कृष्णा तब उनकी ही गोद में था, जब हाथी के रूप में मदांध हो दौड़ा काल उसे पैरों तले रौंद गया। इस हादसे ने बेबस पूजा के सिर से ममता की छांव छीनी ही, उसका लाल भी छीन लिया।

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    शादी के 12 साल बाद कृष्णा ने लिया था जन्म

    हादसे की सूचना पाकर पूजा पछाड़ खाकर गिरी तो बेसुध हो गई। बीच में जब भी उसे होश आया तो उसके मुंह से बस चीत्कार ही निकली। कभी वह उस पल को कोस रही थी जब अपनी ससुराल खजनी के सरैया से वह मोहम्मदपुर माफी स्थित मायके आई थी, तो कभी कुल दीपक को छीनने को लेकर भगवान को दोष दे रही थी। चार साल का कृष्णा जिसने अभी बचपन भी नहीं जिया था, वह दंपति राजू और पूजा की शादी के 12 वर्ष बाद पैदा हुआ था।

    कोख उजड़ने की पीड़ा ने पूजा को किया बेहाल

    बेटे के जन्म के बाद दिक्कत होने के कारण पूजा की बच्चेदानी निकालनी पड़ी थी। पूजा ने तब यह मानकर संतोष कर लिया था कि विधाता को शायद यही स्वीकार था। उसे अपनी गोद भरने की खुशी थी, इसलिए बच्चेदानी निकलने का दुख सह लिया। लेकिन, गुरुवार को जब उसके परिवार का एकलौता दीपक हाथी के पैर तले दबकर बुझ गया, तब कोख उजड़ने की पीड़ा ने उसका हाल बेहाल कर दिया। वह बार-बार चिल्ला उठती थी- हाय अब मुझे मां कौन कहेगा। वह कभी मां नहीं बन सकेगी, बेटा खोने के बाद यह अहसास उसका कलेजा चाक कर रहा था। वह अपने दुर्भाग्य पर रो रही थी कि वह कैसी अभागी है कि मां के साथ उसका लाल भी नियति ने उससे एक साथ ही छीन लिया।

    जहां हुआ मुंडन, वहीं मृत्यु

    गांव के जिस मंदिर पर यज्ञ का आयोजन होना था वहीं तीन माह पहले कृष्णा का मुंडन हुआ था। अक्सर बीमार रहने के कारण नानी ने तीन दिन पहले बेटी के साथ उसे घर बुलाया था। नानी का कहना था कि यज्ञ के दौरान उसे आशीर्वाद दिलाएंगी, जिससे उसकी सेहत ठीक होगी।

    जान की बाजी हार मानवता को दिलाई जीत

    हाथी बिदककर उत्पात मचाने को आतुर हुआ तो कांती और कौशल्या देवी ने भीड़ में उपस्थित बच्चों को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी। इस संघर्ष में दोनों महिलाएं अपनी जिंदगी तो हार गईं, लेकिन ममता की मिसाल पेश करते हुए ये मानवता को जिता गईं। इस दुखद हादसे के बाद मोहम्मदपुर माफी गांव में दोनों महिलाओं के जज्बे की सराहना हो रही है।

    कलश यात्रा में शामिल होने के लिए कांति अपनी साढ़े तीन वर्षीय नातिन आयुषी के साथ आई थीं, तो कौशल्या देवी के साथ उनका चार वर्षीय नाती कृष्णा था। कलश यात्रा में ऐसे बहुत से बच्चे थे। जब हाथी बिदका तो दोनों बच्चों के बीच जा पहुंचीं। बच्चों के बीच उनके अपने भी थे, लेकिन दोनों उन्हें गोद में लेकर भागी नहीं। पहले अन्य बच्चों को वो वहां से भगाने में जुट गईं। कई बच्चों को हटा चुकी कांति इसी दौरान हाथी के सूंड़ की जकड़ में आ गईं। हाथी ने उन्हें दो बार उठाकर पटका, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। वहीं कौशल्या देवी ने बच्चों को भगाने के बाद अपने नाती कृष्णा को गोद में लेकर भागने की सोच ही रही थीं कि काल बनकर हाथी उनके पास आ पहुंचा। हाथी ने दोनों को अपने पांव तले रौंद दिया।

    मां के बिना कैसे होगी शादी

    कांति के सात बच्चे हैं। उनके पति शंकर घर पर ही रहते हैं। पुत्र सत्यनारायण व हनुमान मजदूरी का काम करते हैं। पांच बेटियां हैं, जिसमें चार की शादी हो चुकी है। बेटे अनूप व बेटी दीपमाला की शादी नहीं हुई है। वहीं कौशल्या देवी के पांच बच्चे हैं, जिसमें बेटी डाली और पुत्र राजू की शादी नहीं हुई थी। बेटी डाली की शादी तीन मई को होनी है। बेटी डाली हादसे के बाद बदहवास होकर रो रही थी। लोग कह रहे थे कि मां के बिना अब उसके ब्याह की तैयारी कैसे होगी।