UP News: ई-चालान के डिजिटल भुगतान की व्यवस्था धड़ाम, SBI ने मशीनें वापस मांगी
रेजर पे सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी से ई-पाश मशीनें फेल हो गईं जिससे चालान का भुगतान विभाग तक नहीं पहुंच रहा। यातायात निदेशालय ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत बांटी गई 2000 मशीनें वापस लेने का फैसला किया है। इस कारण चालकों को दोहरी परेशानी हो रही है क्योंकि भुगतान के बाद भी जुर्माना माफ नहीं हो रहा। यह व्यवस्था कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए थी।

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। प्रदेश में सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों के उल्लंघन पर डिजिटल चालान वसूली को लेकर बनाई गई ई-पाश मशीन प्रणाली फेल हो गई है। यातायात निदेशालय की ओर से पायलट प्रोजेक्ट के तहत पूरे प्रदेश में वितरित किए गए 2000 इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल्स मशीनों (ई-पाश) को अब वापस मांगा जा रहा है।
तकनीकी खामी की वजह से लोगों को चालान भुगतान की रसीद मिल रही थी, लेकिन बैंकिंग पेयरिंग फेल होने से चालान की रकम विभाग तक नहीं पहुंच रही थी। इससे वाहन स्वामियों को दोहरी परेशानी और विभाग को वित्तीय नुकसान हो रहा था।
प्रदेश के 75 जिलों व पुलिस कमिश्नरेट में ट्रायल के रूप में शुरू की गई इस व्यवस्था के अंतर्गत, भारतीय स्टेट बैंक ने भुगतान सेवा प्रदाता कंपनी रेजर पे के माध्यम से यह मशीनें भेजी थीं। योजना थी कि पहले चरण में 2,000 और आगे चलकर 10,000 मशीनें वितरित की जाएंगी, लेकिन अब यह पूरी योजना अधर में लटक गई है। यातायात निदेशालय के अपर पुलिस अधीक्षक अजय कुमार ने 11 जुलाई को सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों को पत्र जारी कर इन मशीनों को यातायात कार्यालय में तत्काल जमा कराने के लिए कहा है।
इस सिस्टम का मुख्य उद्देश्य था कि वाहन चालक मौके पर ही डेबिट/क्रेडिट कार्ड या यूपीआई से चालान की राशि अदा कर सकें। लेकिन कई जिलों से यह शिकायतें सामने आईं कि भुगतान की राशि काटी गई लेकिन जुर्माना रद्द नहीं हुआ, क्योंकि रकम यातायात विभाग के खाते तक नहीं पहुंची।
प्रारंभिक जांच में पता चला कि रेजर पे कंपनी के सॉफ्टवेयर में पेयरिंग गड़बड़ी थी, जिससे रकम का हस्तांतरण विफल हो रहा था। गोरखपुर परिक्षेत्र में 105 मशीनें, बस्ती में 30, लखनऊ में 125, प्रयागराज में 120, कानपुर में 95, वाराणसी में 85 मशीनें दी गई थीं, जिन्हें अब समेटा जा रहा है।
जनता की सहूलियत की योजना बनी परेशानी का सबब
यह व्यवस्था खास तौर पर आन-स्पॉट चालान वसूली को पारदर्शी और तकनीकी रूप से मजबूत बनाने के लिए लागू की गई थी, ताकि कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दिया जा सके और पुलिस को मौके पर नकदी लेने की जरूरत न पड़े। लेकिन सिस्टम की तकनीकी खामियों और बैंकों के बीच असंतुलित समन्वय ने इसे अव्यवहारिक बना दिया।
कई मामलों में वाहन चालकों ने बैंक से लेन-देन की रसीद दिखाई, लेकिन विभाग के रिकॉर्ड में जुर्माना बाकी रहा, जिससे आगे चलकर उन्हें वाहन नवीनीकरण, बीमा या सड़क पर चेकिंग के दौरान फिर परेशान होना पड़ा।
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