गोरखपुर सबरंग: सेवा के लिए समर्पित चिकित्सक थे डा. केएन लाहिड़ी, नाम से मिली सड़क को पहचान
गोरखपुर के बैंक रोड जो अग्रसेन तिराहे से विजय चौराहे तक है डॉ. केदारनाथ लाहिड़ी से भी जुड़ा है। यहाँ उनका क्लीनिक था जो समाज सेवा का केंद्र था। लाहिड़ी भवन आज भी सड़क की पहचान है। डॉ. लाहिड़ी ने निशुल्क चिकित्सा सेवा दी और कुष्ठ सेवाश्रम की स्थापना में योगदान दिया। उन्होंने शहर के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका निधन 1976 में हुआ।

अग्रसेन तिराहे से विजय चौराहे को जाने वाली सड़क कई बैंकों की शाखाओं की मौजूदगी की वजह से भले ही बैंक रोड के नाम से जानी जाती है लेकिन उसे पहचान शहर के कुछ मशहूर लोगों से भी मिलती है। राजकीय कन्या इंटर कालेज को नाम देने वाले बैरिस्टर अयोध्या दास की चर्चा पहले ही हो चुकी है।
इस कड़ी में दूसरा नाम आता है डा. केदारनाथ लाहिड़ी का। इसलिए कि इस सड़क पर कभी डा. लाहिड़ी की क्लीनिक हुआ करती थी और उस क्लीनिक में केवल चिकित्सा की नहीं बल्कि समाज कल्याण की भूमिका भी तैयार होती थी।
क्लीनिक तो अब है नहीं लेकिन उसके लिए बना लाहिड़ी भवन आज भी सड़क की शान है, उसकी पहचान है। यह सड़क हमें डा. लाहिड़ी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा का अवसर देती है। उनके बारे से शहरवासियों को बताने की प्रेरणा बनती है।
डा. लाहिड़ी के पिता रमानाथ लाहिड़ी 1878 में पश्चिम बंगाल के श्रीरामपुर जिले से सरकारी खजाने में खजांची के पद पर आजमगढ़ आए। वहीं 17 जुलाई 1900 डा. लाहिड़ी का जन्म हुआ। 1902 में पिता का स्थानांतरण गोरखपुर कोषागार हो गया तो दो वर्ष की उम्र में पिता के साथ वह भी गोरखपुर आ गए।
राजकीय जुबिली हाईस्कूल और सेंट एंड्रयूज कालेज से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए डा. लाहिड़ी इलाहाबाद चले गए। इसी बीच ग्रीष्मावकाश के दौरान उनका लखनऊ जाना हुआ। वहां किंग जार्ज मेडिकल कालेज में डाक्टरों को अध्ययनरत देख वह इतना प्रभावित हुए कि खुद डाक्टर बनने का दृढ़ निश्चय कर लिया।
इसके लिए गणित से इंटर करने वाले केदारनाथ ने जीव विज्ञान विषय में इंटर की शिक्षा प्राप्त की और किंग जार्ज मेडिकल कालेज में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए प्रवेश प्राप्त किया। 1924 में एमबीबीएस पूरा करने के बाद उन्होंने गोरखपुर में स्कूल डिस्पेन्सरी के डाक्टर की सरकारी नौकरी के जरिये चिकित्सा कार्य शुरू किया।
एक वर्ष की सरकारी सेवा के बाद उन्होंने क्लीनिक खोली और पूर्वांचल के मशहूर चिकित्सक के रूप में प्रसिद्ध हो गए। शाम पांच से रात आठ बजे तक वह निश्शुल्क सेवा देते थे। 1938 में उन्होंने अपना अस्पताल खोल दिया, जिसके जरिये मरीजों को चिकित्सा की अत्याधुनिक सुविधा मिलने लगी।
समाज सेवा के प्रति उनके लगाव को इस तरह से भी जाना जा सकता है कि वह आजीवन भारत स्काउट व गाइड गोरखपुर के उपाध्यक्ष रहे। गोरखपुर एजुकेशन सोसाइटी के कार्यकारिणी सदस्य भी रहे। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी डा. लाहिड़ी की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
वह गोरखपुर विश्वविद्यालय स्थापना समिति के सदस्य रहे। इसे लेकर कई बैठकें उनके आवास पर भी हुईं। बाबा राघवदास की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी पं. सुरति नारायण मणि त्रिपाठी और हाजी सुभानउल्लाह की मदद से गोरखपुर में कुष्ठ सेवाश्रम स्थापित कराया। डा. लाहिड़ी इस सेवाश्रम के आजीवन सचिव रहे।
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1948 में चेयरमैन, गोरखपुर नोटिफाइड एरिया निर्वाचित होने पर डा. लाहिड़ी ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन से राजघाट तक सड़क बनवाई। गोलघर को प्रतिष्ठित बाजार का स्वरूप देने का श्रेय भी डा. लाहिड़ी को जाता है। 1965 में नगर पालिका के चेयरमैन निर्वाचित हुए, शहर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
21 दिसंबर को 1976 में डा. लाहिड़ी का निधन हो गया और गोरखपुर ने एक समर्पित चिकित्सक व समाजसेवक खो दिया। पोते अंचित्य लाहिड़ी बताते हैं कि उनके दादा जी की बतौर चिकित्सक यह सोच थी कि जब मरीज को जरूरत हो तो डाक्टर को हर हाल में उनके पास होना चाहिए। इसका पालन उन्होंंने अंतिम सांस तक किया।
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