यहां पर्चा पर हिंदी में दवाएं लिखते हैं डाक्टर, मेडिकल छात्रों को हिंंदी में पढ़ाते भी हैं
Medical Studies in Hindi मध्य प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में शुरू होने से बाबा राघर दास मेडिकल कालेज गोरखपुर में जश्न का माहौल है। यहां कई ऐसे डाक्टर हैं जो छात्रों को हिन्दी में पढ़ाते हैं और पर्ची पर दवाओं के नाम भी हिंदी में ही लिखते हैं।

गोरखपुर, गजाधर द्विवेदी। मध्यप्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में अब शुरू हुई है। लेकिन बीआरडी मेडिकल कालेज, गोरखपुर में इसके संस्कार वर्ष 2008 से हैं। एनाटमी विभाग में अध्यक्ष डा. बिंदु सिंह छात्रों को हिंदी में ही पढ़ाती हैं। यहीं के न्यूरो सर्जरी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. विजय शंकर मौर्य तथा बाल रोग विशेषज्ञ व राज्य सभा सदस्य डा. राधामोहन दास अग्रवाल रोगियों के पर्चे पर हिंदी में ही दवाएं लिखते हैं। उन्होंने दवा कंपनियों को हिंदी में पंपलेट छपवाने व दवाओं के नाम लिखने के लिए विवश किया है। क्योंकि न तो वे अंग्रेजी में लिखे पंपलेट देखते हैं और न ही ऐसी कोई दवा लिखते हैं, जिसका नाम हिंदी में भी न हो। उनके ओपीडी कक्ष में पहुंचे दवा कंपनियों के प्रतिनिधि भी हिंदी में ही बात करते हैं। क्योंकि वे यही पसंद करते हैं। हिंदीभाषी छात्र छात्राओं को इससे काफी सुविधा होती है।
मध्य प्रदेश में हिंदी पाठ्यक्रम शुरू होने पर बीआरडी की एनाटमी विभागाध्यक्ष ने छात्रों को खिलाई थी मिठाई
मध्यप्रदेश में जब गृह मंत्री अमित शाह ने मेडिकल के हिंदी पाठ्यक्रम का लोकार्पण किया। उस समय गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में एनाटमी विभाग की अध्यक्ष बिंदु सिंह खुशी से झूम उठीं और मिठाई मंगाकर छात्र-छात्राओं को खिलाईं। दरअसल वह मेडिकल शिक्षा हिंदी में हो, इसकी पक्षधर हैं। शुरू से ही वह हिंदी में ही छात्र-छात्राओं को पढ़ाती आ रही हैं। 2008 में उन्होंने बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर ज्वाइन किया। तभी से हिंदी में पढ़ा रही हैं। इससे शरीर विज्ञान जैसा जटिल विषय छात्रों को आसानी से समझ में आ जाता है। हिंदी में समझने के बाद अंग्रेजी की किताब भी आसानी से समझ में आ जाती है। वह अन्य शिक्षकों को भी हिंदी में पढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं।
इसलिए शुरू की हिंदी में पढ़ाई
कई शिक्षक उनसे प्रेरित होकर हिंदी में पढ़ाना शुरू कर दिए हैं। डा. बिंदु सिंह बताती हैं कि यहां ज्यादातर छात्र हिंदी भाषी होते हैं। यूपी बोर्ड से आते हैं। इसलिए उन्हें अंग्रेजी में समझाना कठिन होता है। वर्तमान बैच में सभी छात्र हिंदीभाषी क्षेत्रों से हैं। कभी-कभी अहिंदी भाषी छात्र भी आ जाते हैं तो उन्हें अंग्रेजी में समझाना पड़ता है। लेकिन साथ ही हिंदी भी सिखाती हूं, क्योंकि यहां जो भी रोगी आते हैं वे हिंदीभाषी होते हैं। यदि छात्र हिंदी नहीं जानेंगे तो रोगियों की बात समझ नहीं पाएंगे। इतना ही नहीं परीक्षा में भी वह हिंदी में उत्तर लिखने की सुविधा प्रदान करती हैं।
हिंदी में पर्चा लिखने पर प्राचार्य ने की थी शासन से शिकायत
डा. विजय शंकर मौर्य 1990 से हिंदी में रोगियों के पर्चे पर दवाएं लिख रहे हैं। उस समय वह इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज बीएचयू, वाराणसी में एमसीएच की ट्रेनिंग ले रहे थे। उन्होंने डिस्चार्ज स्लिप कभी अंग्रेजी में नहीं लिखी। वह 1995-96 से चिकित्सा शास्त्र में हिंदी के प्रयोग पर बल देते आ रहे हैं। हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के लिए पंपलेट भी छपवाया और अनेक डाक्टरों को डाक से भेजा। चार दिसंबर 2009 में वह बीआरडी मेडिकल कालेज में आए और 30 अप्रैल 2018 को उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उनका कहना है कि 2009 से 2018 तक मेडिकल कालेज में उन्होंने अंग्रेजी में एक भी शब्द नहीं लिखा। रेजीडेंट डाक्टरों को वह हिंदी में ही समझाते थे। दूसरे विभाग के चिकित्सकों को उन्होंने हिंदी में संदर्भ पत्र लिखने के लिए मजबूर किया और उन्हें लिखना पड़ा। 2015 में एक प्राचार्य ने उनके द्वारा हिंदी में लिखने के लिए शासन से शिकायत की थी लेकिन कुछ हुआ नहीं। जब वह प्राचार्य से मिले तो केवल इतना कहा कि हिंदी में लिखना गुनाह है क्या? इस पर प्राचार्य मुस्कराकर रह गए।
एमबीबीएस करने के बाद पहला पर्चा हिंदी में लिखा
डा. राधामोहन दास अग्रवाल ने बीएचयू से 1977 में एमबीबीएस करने के बाद पहला पर्चा हिंदी में लिखा था। तभी से वह आज तक हिंदी में ही रोगियों के पर्चे पर दवाएं लिखते आ रहे हैं। उनका मानना है कि मातृभाषा में दवाएं लिखने से रोगियों को भी समझ में आ जाती हैं। डाक्टर रोगी से हिंदी में बात करे और दवाएं अंग्रेजी में लिखें, यह उचित नहीं है। विधायक रहते हुए उन्होंने विधान सभा में दो मांग की थी। एक तो डाक्टर हिंदी में पर्चा लिखें और दूसरी दवाओं के नाम हिंदी में लिखे जाएं। वह मातृभाषा में ही मेडिकल की पढ़ाई होने के पक्षधर भी हैं। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने मेडिकल का हिंदी पाठ्यक्रम लागू कर मेरे अधूरे सपनों को पूरा किया है। उनका यह बहुत अच्छा कदम है।
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