तस्वीरों में देखें- विश्व प्रसिद्ध टेराकोटा का उत्पाद, दिवाली में नई कलाकृतियों से बढ़ेगी कई शहरों की रौनक
Diwali Special Terracotta Products गोरखपुर का टेराकोटा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। भारत के सभी बड़े शहरों में टेराकोटा की कलाकृतियां धूम मचाने को तैयार ...और पढ़ें

गोरखपुर, उमेश पाठक। Diwali Special Terracotta Products: देश-विदेश में पहचान बना चुका गोरखपुर का टेराकोटा इस दीपावली नई कलाकृतियों के साथ धूम मचाने को तैयार है। हस्तशिल्प का यह नायाब नमूना बड़े शहरों के घरों की खूबसूरती बढ़ा रहा है। दीपावली नजदीक आई तो यहां के दीयों वाली कलाकृतियों की मांग गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, केरल जैसे राज्यों में बढ़ गई है। बाहर के व्यापारी आर्डर देने को लाइन में लगे हैं और यहां के शिल्पकारों को अत्यधिक मांग के कारण हाथ खड़े करने को मजबूर होना पड़ रहा है। कभी व्यापारियों का इंतजार करने वाले शिल्पकारों के दिन बदल चुके हैं। प्रदेश की बागडोर संभाल रहे योगी आदित्यनाथ ने इस हस्तशिल्प को नई पहचान दिलाई है और इन कलाकृतियों की बढ़ती मांग ने शिल्पकारों की जीवनशैली भी बदल दी है। इस दीपावली एक बार फिर नए नवाचार के साथ यहां के शिल्पकार अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने को तैयार हैं।
कलाकृतियों को अंतिम आकार देने में जुटे शिल्पकार
टेराकोटा गांव गुलरिहा के मुख्य रास्ते पर स्थित अपनी फैक्ट्री में कलाकृतियों को अंतिम आकार देने में जुटे शिल्पकार राजन प्रजापति कहते हैं कि दीपावली नजदीक आते ही सभी कलाकार व्यस्त हो जाते हैं। यहां विशेष तरह की कलाकृतियां तैयार की जाती हैं। साधारण दीयों की जगह विशेष प्रकार के दीयों पर फोकस अधिक होता है। लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ छह से सात दीये जुड़े होते हैं। दूसरे प्रदेशों में इसकी खूब मांग होती है। स्टैंड दीया, कलश दीया की भी बाहर के व्यापारियों में जबरदस्त मांग है। अपने प्रदेशों की स्थानीय जरूरतों के अनुसार व्यापारी शिल्पकारों को अलग से भी आर्डर देते हैं और उसके अनुसार कलाकृतियां तैयार करने में शिल्पकार जुट जाते हैं। राजन के कारखाने में करीब डेढ़ दर्जन शिल्पकार दिन-रात कलाकृतियां तैयार करने में जुटे हैं।
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आकर्षण का केंद्र बनी हैं नई कलाकृतियां
एकला गांव के हरिओम आजाद की कलाकृतियों को भी खूब पसंद किया जाता है। विशेष आकृति वाली कलाकृतियों के साथ उनके पास भोपाल से एक लाख एकल डिजाइन दीयों का भी आर्डर मिला है। राजन और हरिओम की तरह अखिलेश, भोला जैसे दर्जनों शिल्पकार आजकल अपने कारखानों में आर्डर पूरा करने में व्यस्त हैं। इस साल दूसरे प्रदेशों में टेराकोटा के दीयों की मांग में 20 से 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।
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इन कलाकृतियों की अधिक है मांग
शिल्पकारों के यहां रतनदीप, स्टैंड दीया, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ दीया, हाथी के साथ दीये, कलश दीप, नारियल दीप की खूब मांग है। एकला नंबर दो के हरिओम आजाद को गुजरात के अहमदाबाद से उरली (मिट्टी का छिछला बर्तन) का आर्डर मिला है। आर्डर के 400 उरली बनाने में हरिओम की पत्नी पूनम जुटी हैं। गुजरात के लोग दीपावली के समय उरली में पानी डालकर उसमें गुलाब की पंखुड़ियां बिखेरते हैं। इसे घर पर रखना काफी शुभ माना जाता है। यहां के शिल्पकार थाली में सजे दीपक का सेट भी तैयार कर रहे हैं। एक थाली की थोक कीमत 60 से 90 रुपये है। आकार के अनुसार कीमत में बदलाव होता है।
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सजावट के सामान की भी बढ़ी मांग
दीपावली पर घरों को सजाने की परंपरा रहती है। ऐसे में टेराकोटा के लालटेन, हाथी मेज, पौधे रोपने के बर्तन की भी खूब मांग है। मनी प्लांट रोपने के लिए बर्तन की मांग छत्तीसगढ़ से आई है। कई व्यापारी टेराकोटा की कलाकृतियां लेकर उसमें झालर आदि लगाकर उसकी खूबसूरती और बढ़ा देते हैं, जिसे खूब पसंद किया जाता है।
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करीब 15 करोड़ है सालाना टर्न ओवर
ओडीओपी में शामिल होने के बाद टेराकोटा को हर जगह महत्ता मिलने लगी है। कभी आर्डर का इंतजार करने वाले यहां के शिल्पकार अब 12 महीने व्यस्त रहते हैं। इनका अधिकतर उत्पाद थोक भाव में ही बाहर जाता है। इसके बाद भी सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपये से ऊपर है। कुछ ऐसे शिल्पकार हैं जो करीब एक करोड़ का माल अकेले ही आपूर्ति करते हैं। आने वाले दिनों में जिस तरह से नए शिल्पकारों का रुझान बढ़ रहा है, टर्नओवर और बढ़ने की उम्मीद है।
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महिलाएं भी आ रहीं आगे
टेराकोटा की कलाकृतियों को बेहतर बनाने में घर बैठे अपना योगदान करने वाली महिलाएं अब खुलकर सामने आ रही हैं। टेराकोटा गांवों में प्रमुख शिल्पकारों के यहां महिलाएं काम करती मिल जाएंगी। महिलाओं को बारीक काम दिया जाता है। कुछ महिलाएं अपना समूह बना चुकी हैं और उत्पाद तैयार कर उसकी मार्केटिंग करने में भी जुटी हैं।
कुछ कलाकार ही बनाते हैं साधारण दीये
टेराकोटा शिल्पकारों के पास विशेष उत्पाद ही मिलते हैं। आमतौर पर आसानी से तैयार हो जाने वाले दीये अधिकतर लोग नहीं बनाते। सरकार की ओर से दिए गए सांचे के बाद खाली समय में कुछ साधारण व एकल डिजाइन दीये तैयार किए जा रहे हैं लेकिन अधिकतर शिल्पकारों का फोकस हाथ से काम करने में होता है। इनके दीये ऐसे होते हैं कि रखने के लिए जगह की तलाश नहीं करनी होगी। दीप प्रज्जवलन के दौरान जो स्टैंड लगाया जाता है, उसी तरह के स्टैंड दो दर्जन दीयों के साथ यहां के शिल्पकार तैयार कर लेते हैं।
आर्डर पर बनती हैं लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां
लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां यहां आर्डर पर ही बनाई जाती हैं। यहां गणेश व लक्ष्मी की एक फीट लंबी मूर्ति भी बनाई जाती है। मूर्तियां देखने में इतनी आकर्षक होती हैं मानो बोल पड़ेंगी। 60 से 80 रुपये कीमत वाली छोटी मूर्तियां कुछ शिल्पकार ही बनाते हैं और उनकी मांग स्थानीय स्तर पर ही होती है। अधिकतर लोग मूर्तियों के साथ दीये भी जोड़ते हैं।
मुख्यमंत्री ने बताया था सर्वश्रेष्ठ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने टेराकोटा की लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों एवं कलाकृतियों को सर्वश्रेष्ठ बनाया था। पिछली दीपावली से पहले उन्होंने चीन के लक्ष्मी-गणेश की बजाय टेराकोटा के लक्ष्मी-गणेश व अन्य कलाकृतियों का उपयोग करने की अपील की थी। उसके बाद से इसकी मांग और बढ़ी है।
ओडीओपी ने बदल दिया माहौल
जिलों के स्थानीय उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा शुरू की गई एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना स्थानीय शिल्पकारों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। टेराकोटा को जैसे ही इस योजना में शामिल किया गया, इसके भविष्य पर मंडरा रहे उपेक्षा के बादल छंट गए और उड़ान भरने को एक सुनहरा आकाश नजर आने लगा। आनलाइन माध्यम से ही सही जिला उद्योग केंद्र ने इस उत्पाद को विदेश में भी प्रचारित किया। विदेशी ग्राहकों को लेकर क्रेता-विक्रेता सम्मेलन कराए गए। इसके लिए कंसलटेंसी एजेंसी को भी काम पर लगाया गया है। सहायक आयुक्त उद्योग रवि कुमार शर्मा बताते हैं कि टेराकोटा को बढ़ावा देने के लिए दो क्लसटर भी बनाए जा रहे हैं। जीडीए शहर के एक चौराहे का नाम भी टेराकोटा के नाम पर करने के लिए प्रस्ताव पास कर चुका है।

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