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    Jagran Dev Deepawali: श्मशान की भूमि पर खिलखिलाई जीवन की ज्योति, तस्वीरों में देखें खूबसूरत नजारा

    By Gajadhar DwivediEdited By: Vivek Shukla
    Updated: Thu, 06 Nov 2025 11:46 AM (IST)

    गोरखपुर में गुरु गोरक्षनाथ घाट पर देव दीपावली के अवसर पर श्मशान भूमि सवा लाख दीपों से जगमगा उठी। जहाँ चिताएँ जलती हैं, वहाँ जीवन का उत्सव मनाया गया। राप्ती नदी के तट पर दीपों की रोशनी से अद्भुत दृश्य बना, जिसने जीवन और मृत्यु के बीच के अंतर को मिटा दिया। हर दीप आत्मा की शांति और श्रद्धा का प्रतीक था।

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    गोरक्षधाम घाट पर देव दीपावली शाम। जागरण  

    गजाधर द्विवेदी, जागरण, गोरखपुर। दिवस अवसान की ओर था। सूर्य क्षितिज में खो रहा था। उसकी लाल किरणें राप्ती नदी के जल पर झिलमिला रही थीं। एक तरफ सूर्य अपनी अस्त खो रहे थे तो दूसरी तरफ गुरु गोरक्षनाथ घाट पर दीयों की उर्ध्वगामी लौ जीवन का संदेश दे रही थी। यह वही स्थान है, जहां चिता की राख और धुएं की गंध उड़ती रहती है।

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    इस श्मशान में जीवन की अंतिम यात्रा पूरी होती है। बुधवार को उसी भूमि पर जीवन खिलखिला रहा था। दीपों की टिमटिमाहट में आशा का प्रवाह था। देव दीपावली की यह शाम गोरखपुर के लिए केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच की सीमाओं को रोशनी से मिटा देने का अद्भुत क्षण था। गुरु गोरक्षनाथ घाट पर सवा लाख दीपों की लौ से जगमगाती शाम शहरवासियों के हृदय में उतर गई।

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    संध्या के समय जब सूर्य की अंतिम किरण राप्ती के पार के वृक्षों को सुनहरा रंग दे रही थीं, तब घाटों पर असंख्य दीप सजकर "तमसो मा ज्योतिर्गमय" का संदेश देने को सज्जे थे। दीप जलाने के लिए श्रद्धालुओं के हाथों में मोमबत्तियां, चेहरे पर उत्साह, आंखों में श्रद्धा का झिलमिलाता भाव, पूरा दृश्य ऐसा था जैसे कोई अलौकिक दिव्यता घाट पर उतरने को आकुल हो। जैसे-जैसे सूर्य का लाल गोला क्षितिज में समा रहा था, वैसे-वैसे हर दीप की लौ तेज होती जा रही थी।

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    राप्ती के जल में प्रतिबिंबित वह प्रकाश किसी आकाशगंगा की तरह फैल रहा था। दूर-दूर तक केवल रोशनी थी। एक-एक दीप जैसे कह रहा हो- "अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, लौ कभी नहीं थकती।" गुरु गोरक्षनाथ घाट गोरखपुर का प्रमुख श्मशान घाट है। यहां दिन-रात अंतिम संस्कार होते रहते हैं। लेकिन देव दीपावली की इस शाम, मोक्ष का प्रतीक यह स्थान जीवन का उत्सव बन गया। जहां चिताएं जलती हैं, वहीं हजारों दीपक जल रहे थे।

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    आत्मा के प्रतीक इन दीयों में शांति की आशा और लोक की प्रार्थना का भाव एक साथ प्रवाहित हो रहे थे। हर दीप आत्मा की शांति का प्रतीक था तो हर मुस्कान उस आत्मा के प्रति श्रद्धा की। श्मशान की धरती पर जीवन का नृत्य था। वहां जीवन की ज्योति खिलखिला रही थी। शाम छह बजते-बजते घाट का हर कोना प्रकाश से भर गया था।

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    सवा लाख दीपों की लौ जब हवा के हल्के झोंकों से एक साथ झूमती, तो लगता जैसे धरती सांस ले रही हो। राप्ती का जल स्वर्णिम हो गया था। दीपों की लहरें जल पर नाच रही थीं, आकाश में चंद्रमा उनके साथ खेल रहा था। कभी-कभी हवा का झोंका आता, कोई दीप बुझ जाता, पर तुरंत कोई हाथ उसे फिर से जला देता।