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    250 रु. में होगी डेंगू की जांच, 2 घंटे में मिलेगी रिपोर्ट, RMRC को डिवाइस बनाने के लिए मिले चार करोड़

    Updated: Fri, 05 Dec 2025 05:30 AM (IST)

    भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) का क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (RMRC) डेंगू की जांच के लिए पोर्टेबल माइक्रोफ्लूडिक डिवाइस विकसित कर ...और पढ़ें

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    जागरण संवाददाता, गोरखपुर। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) का क्षेत्रीय चिकित्सा अनुसंधान केंद्र (आरएमआरसी) डेंगू की जांच के लिए डिवाइस विकसित करने जा रहा है। इसमें डेंगू की जांच रिपोर्ट दो से ढाई घंटे में मिल जाएगी और जांच का कुल खर्च 250 से तीन सौ रुपये होगा। इसे माइक्रोफ्लूडिक डिवाइस नाम दिया जाएगा। यह पोर्टेबल होगा और इसे कहीं भी ले जाया जा सकेगा। 

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    भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने हाल ही में मेडटेक प्रोग्राम शुरू किया है। इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों, डायग्नोस्टिक्स, हेल्थ टेक तथा मेडिकल इलेक्ट्रानिक्स सहित स्वदेशी चिकित्सा प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा देना है। आइसीएमआर ने भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य महत्व के रोगों के लिए स्वदेशी डायग्नोस्टिक किट विकसित करने के लिए प्रस्ताव आमंत्रित किए थे।

    आइसीएमआर-आरएमआरसी गोरखपुर के निदेशक डा. हरि शंकर जोशी और उनकी टीम के डा. गौरव राज द्विवेदी व डा. राजीव सिंह ने डेवलपमेंट आफ थ्रीडी प्रिंटेड इंटीग्रेटेड माइक्रोफ्लूडिक डिवाइस फार मल्टीप्लेक्स डिटेक्शन आफ पैन डेंगू सीरोटाइप्स शीर्षक से एक प्रस्ताव तैयार कर भेजा था। डा. हरि शंकर जोशी ने बताया कि देशभर से प्राप्त 27 प्रस्तावों में से आरएमआरसी गोरखपुर का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ है।

    द्वितीय स्थान प्राप्त कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि

    राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय स्थान प्राप्त कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। प्रस्तावित माइक्रोफ्लूडिक डिवाइस किफायती, तेज, पोर्टेबल होगा तथा देश के दूरस्थ एवं संसाधन-विहीन क्षेत्रों में उपयोग के लिए उपयुक्त रहेगा। इससे भारत में डेंगू निदान और सर्विलांस को बड़ी मजबूती मिलेगी। वर्तमान में एलाइजा जांच के लिए रियल टाइम पीसीआर आधारित डेंगू टाइपिंग किट का इस्तेमाल होता है। इस जांच में तकरीबन दो हजार रुपये खर्च होते हैं। जटिल प्रक्रिया के कारण उच्च स्तरीय प्रयोगशाला की जरूरत होती है। यही वजह है कि हर जगह जांच की सुविधा नहीं हो पाती है। प्रक्रिया का भी पेटेंट करा चुका है।

    आरएमआरसी गोरखपुर ने डिवाइस बनाने की प्रक्रिया का तकरीबन सात महीने पहले पेटेंट कराया था। डिवाइस बनाने का शोध प्रस्ताव आइसीएमआर को इतना ज्यादा पसंद आया है कि पूरे देश से मिले 27 प्रस्तावों में से गोरखपुर के प्रस्ताव को दूसरा स्थान मिला है। आरएमआरसी को डिवाइस बनाने के लिए चार करोड़ रुपये मिले हैं। दो वर्ष में इसे बनाना है। इस डिवाइस से एक ही परीक्षण में डेंगू संक्रमण का पता लगाने के साथ-साथ मौजूद डेंगू वायरस के सीरो-टाइप की भी पहचान हो जाएगी।