हाल-बेहाल : नेता जी मायूस न होइए...आते रहिएगा
Dainik Jagran Gorakhpur weekly column Halbehal दैनिक जागरण के साप्ताहिक कालम हाल बेहाल में यहां पढ़ें नगर निगम गोरखपुर के अंदरखाने की खबरें। एक अलग अंदाज में पढ़ें हर वह खबर जो अभी तक पर्दे के पीछे है।

गोरखपुर, दुर्गेश त्रिपाठी। दिल में इतने अरमान थे कि पूछिए मत। क्षेत्र में भी बताना शुरू कर दिया था कि अब हम जो चाहेंगे वही होगा। इसको ठीक कर दूंगा...उसको ठीक करा दूंगा...जिन-जिन ने नहीं सुना है सबको ठीक कर दूंगा...बस 10 मार्च आ जाए। सफाई महकमे में एक नेताजी ने सत्ता बदलने की इतनी सकारात्मक आस लगा ली थी कि खुलेआम हर काम कराने का टेंडर डालने लगे थे। कोई कुछ कहता तो जुबान पर बस यही...बाबू बस 10 मार्च आ जाने दो। परिणाम आया तो घर से निकलना छोड़ दिए लेकिन क्या करें जनता को तो छोड़ा नहीं जा सकता। आखिरकार इसी साल उनको भी तो जनता के दरबार में हाजिरी देनी है। एक दिन महकमे में पहुंचे लेकिन निगाहें झुकी ही रहीं। एक साहब ने उनका काम कराया और बोले, हार-जीत तो लगी रहती है, मायूस न होइए, आप आते रहिएगा। नेताजी बिना बोले रिवर्स गियर लगाकर निकल गए।
अंगुली टेढ़ा किए बिना काम हो रहा है
सफाई महकमे में उल्टी गंगा बह रही है। पहले काम कराने के लिए छोटे अफसरों की कौन कहे बड़े साहब को भी जमकर खुद ही उठक-बैठक लगानी पड़ती थी। जो कहे वह नहीं होता था। सब कुछ मनमाना था। काम करने वाले भी व्यवस्था देखकर बैठकी लेने लगे थे। फिर व्यवस्था की ओवरहालिंग का काम शुरू हुआ। जो बैठकी ले चुके थे उनको खड़ा करना और फिर दौड़ाना बड़ा काम था। थोड़ी सख्ती बढ़ी तो एक साहब विरोध में खड़े हो गए। लेटरबाजी शुरू कर दी। नौकरी छोड़ दूंगा टाइप की बातें सामने आने लगीं लेकिन बाकी लोग धीरे-धीरे ही सही फील्ड में पहुंचने लगे और काम शुरू कर दिया। अब वह साहब भी राइट टाइम हो गए हैं जिन्होंने लेटरबाजी की थी। महकमे में चर्चा हो रही है कि बिना कुछ कहे और बिना कोई कार्रवाई किए कोई काम कैसे करने लगता है इसका उदाहरण यही साहब हैं।
जी भर गया है, जाना चाहता हूं
अंगद के पांव की तरह जम गए एक साहब का अब काम में मन नहीं लग रहा है। पहले की बात करें तो पत्ता भी हिलता था तो साहब को टैक्स देकर। यानी मतलब तो आप समझ ही गए होंगे। साहब की गणित इतनी दुरुस्त थी कि कुर्सी पर चेहरा बदलता गया पर नहीं बदले तो साहब और उनकी गणित। चूंकि कमाई में साहब का कोई जोर नहीं था इसलिए 'मेरा आपकी कृपा से सब काम हो रहाÓ टाइप का मामला दुरुस्त था। लोग कहते हैं कि समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता। साहब का भी समय बदला। जेब में आ चुका पैसा वापस करना पड़ा। फिर बुरे दिन शुरू हो गए। एक-एक कर सिपहसालार भी किनारे लगते जा रहे हैं। अब साहब घूम-घूमकर कह रहे हैं कि यहां से जी भर गया है, अब जाना चाहता हूं। साहब को कई साल पहले हुआ तबादला याद आने लगा हैै।
यह साढ़ू भाई का क्या चक्कर है
महकमे में फिर चर्चा हो रही है कि यह साढ़ू भाई का क्या चक्कर है। सड़क, नाली की इंजीनियङ्क्षरग करने वाले विभाग के एक साहब पर मेहरबानियां इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि लोग सवाल उठाने लगे हैं। इस साहब के बड़े साहब की आंखों में कोई और उतर ही नहीं पा रहा है। जो भी बड़ा काम होगा इसी वाले साहब को मिलेगा। भले ही काम न तो समय से पूरा हो और न ही गुणवत्ता का ध्यान रखा गया हो। एक छोटे माननीय के क्षेत्र में काम नहीं शुरू हो पा रहा है, समस्याओं को सामने ले आते हैं तो आश्वासन की घुट्टी पिला दी जाती है। एक साहब के सामने अपना दर्द बयां करते हुए बोले, 'साहब साढ़ू भाई मिलकर खुद का ही भला कर रहे हैं। एक बार समझा दीजिए।' साहब भी अब साढ़ू भाई के असली रिश्ते के बारे में पता कर रहे हैं।
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