गोरखपुर में पर्यटकों को भा रहा ताल की लहरों संग भुट्टे का स्वाद, सुहाने मौसम में रंगीन फव्वारों को देख रोमांचित होते हैं लोग
गोरखपुर में रामगढ़ताल और कुसम्ही के पास भुट्टे की खूब मांग है। पर्यटकों और स्थानीय लोगों को यह खूब भाता है जिससे रोजाना 13000 से ज्यादा भुट्टे बिक जाते हैं। कई लोग भुट्टे बेचकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जिले के किसान हर मौसम में भुट्टे की खेती कर रहे हैं जिससे स्थानीय बाजारों में इसकी आपूर्ति बनी रहती है।
जितेन्द्र पाण्डेय, जागरण, गोरखपुर। रामगढ़ताल का किनारा, रेलिंग पर बैठे और सड़क किनारे बने चबुतरे पर खड़े लोग, तेज हवा के बीच ताल से उठती लहरों को देखते हुए अगर गरमागरम भुने हुए भुट्टे का स्वाद नहीं ले रहे तो नौकायन घुमने का मजा नहीं आता।
यह हकिकत है, इसलिए तो करीब तीन किलोमीटर में फैले नौकायन स्थल के मार्ग पर करीब 70 ठेले केवल भुट्टा बेचते हैं। हर ठेले से रोज़ 80 से 120 भुट्टे बिक जाते हैं। उधर, कुसम्ही जंगल के प्रवेश द्वार से लेकर बुढ़िया माता मंदिर तक 40 से अधिक ठेले इसी स्वाद की खुशबू फैला रहे हैं। यहां से गुजरने वाले, चाहे वो स्थानीय हों या पर्यटक, इस देसी स्वाद का आनंद लेना नहीं भूलते।
अनुमानों के अनुसार, इन दोनों मार्गों पर हर दिन 13,000 से अधिक भुट्टे बिकते हैं। यह आंकड़ा न सिर्फ इसकी लोकप्रियता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस तरह एक साधारण फसल ने स्थानीय रोजगार और खाद्य संस्कृति में अपनी मज़बूत पकड़ बना ली है।
गरम अंगारों पर जब भुट्टा सिंकता है, उस पर नींबू और नमक की हल्की परत चढ़ती है, तो स्वाद का ऐसा जादू बनता है जो हर किसी को भाता है। देवरिया के रहने वाले सुदामा ने बताया कि वह गोरखपुर किसी काम से आए थे।
यहां आने के बाद वह नौकायन घूमने के लिए आए तो उन्हें भुट्टे का ठेला लगाने को सूझा। इसके बाद वह घर गए और जेब में तीन हजार रुपये लेकर गोरखपुर आ गए। इंद्रानगर में किराए का कमरा लिया, भाड़े पर ठेला लिया और फिर मंडी से भुट्टा लाकर यहां भुनकर बेचने लगे।
सुदामा ने बताया कि हर दिन वह 80 से 100 के बीच में भुट्टा बेच लेते है। वर्षा और ठंड के मौसम में सबसे अधिक 150 तक भुुट्टे बिक जाते है। देवरिया गोरयाघाट के रहने वाले राज कुमार बताते है कि वह दो वर्ष से भुट्टे का ठेला लगा है। भुट्टे के बिक्री से उनके परिवार का खर्च चलता है।
पैदल, साइकिल, बाइक और कार से आने वाला हर कोई भुट्टा खाता है। भगत चौराहे के पास की रहने वाली गेदा देवी ने बताया कि वह एक सप्ताह से ठेला लगा रही है। पूछने पर उन्होंने बताया कि उनके पति की बीमारी से मौत हो गई। बच्चों को पढ़ाने और घर का खर्च चलाने के लिए भुट्टे का ठेला लगाने लगी। 50 से 70 के बीच में प्रतिदिन भुट्टे की बिक्री हो जाती है।
स्थानीय और बाहरियों अलग-अलग है कब्जा
इस मार्ग पर भुट्टे का ठेला लगाने वालों के नाम और पता की जानकारी ली जाए तो पैडलेगंज की तरफ से जाने पर गौतम बुद्ध द्वार से आगे बाहर से आए लोगों ने कुछ-कुछ दूरी पर ठेला लगाए है। वहीं नौकायन के पास और अंबेडकर पार्क की तरफ जाने वाले मार्ग पर स्थानीय लोगों का कब्जा है।
जो एक लाइन से ठेला लगाकर भुट्टा बेच रहे है। हालांकि नौकायन और उसके आसपास सबसे अधिक भीड़ होती है। लेकिन, भुट्टे के साथ रेलिंग पर बैठकर ताल की लहरों का आनंद लेते हुए सबसे अधिक लोग गौतमबुद्ध द्वार की तरफ देखे जाते है।
हर मौसम में जिले के किसान कर रहे खेती
रामगढ़ताल और कुसम्ही क्षेत्र में लगने वाले ठेलों पर बिकने वाले भुट्टे बाहर से नहीं आ रहे। जिले के अलग-अलग क्षेत्र में किसानों के खेत में पैदा हुए भुट्टे है। कृषि विभाग के संयुक्त कृषि निदेशक अरविंद सिंह ने बताया कि हर मौसम में भुट्टे की खेती हो रही है। जिले में सबसे अधिक पिपराइच, रजही, ब्रम्हपुर, बांसगांव, सरदारनगर, चरगांवा ग्रामीण क्षेत्र, जंगल कौड़िया, भरोहिया, आंशिक उरुवा, सहजनवां क्षेत्र के किसान भुट्टे की खेती कर रहे है।
फसल तैयार होने के बाद व्यापारियों के माध्यम से मंडी में ले जाकर बेचते है। संयुक्त कृषि निदेशक ने बताया कि रवि में 2500 एकड़, जायद में 1500 एकड़ मक्के की खेती हुई थी। रवि के सीजन में किसानों ने पी 3526 और पी 3532 प्रजाति के बीज का प्रयोग किया था। जायद में बीआइओ 9544 प्रजाति का बीज बोया गया था।
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