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    गोरखपुर सबरंग: लोक आस्था में छिपा हाइड्रोथेरेपी से लेकर डिटाक्स तक का विज्ञान, यह जानकारी बहुत आएगी काम

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 10:08 AM (IST)

    छठ पर्व, मात्र सूर्योपासना नहीं, भारतीय जीवनशैली का वैज्ञानिक संगम है। इसमें व्रत, संयम और प्रकृति से जुड़ाव शरीर-मन को संतुलित करते हैं। चिकित्सक बताते हैं कि छठ में हाइड्रोथेरेपी और डिटॉक्स जैसे वैज्ञानिक तत्व छिपे हैं। निर्जला उपवास ऑटोफैगी से जुड़ा है, जो कोशिकाओं की मरम्मत करता है। छठ प्रकृति से जुड़ाव का संदेश देता है और शारीरिक, मानसिक शांति प्रदान करता है।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण

    लोकआस्था का महापर्व छठ केवल सूर्योपासना का अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्राचीन भारतीय जीवनशैली के वैज्ञानिक और स्वास्थ्यवर्धक सिद्धांतों का अद्भुत संगम है। व्रत, संयम, ध्यान और प्रकृति से सीधे संपर्क के मेल से छठ एक ऐसी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति बनती है, जो शरीर और मन दोनों को संतुलित करती है।

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    आधुनिक विज्ञान अब उस परंपरा के रहस्यों को उजागर कर रहा है, जिसे हमारे पूर्वज सदियों से साधना के रूप में निभाते आ रहे हैं। महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद चिकित्सक बताते हैं कि लोक आस्था में विज्ञान छिपा है। इस व्रत में हाइड्रोथेरेपी (चिकित्सीय लाभों के लिए पानी का उपयोग) से लेकर शरीर को डिटाक्स (शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर शुद्ध करने) की व्यवस्था है।

    छठ पूजा में व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय जल में खड़े होकर सूर्य की आराधना करते हैं। यह समय वैज्ञानिक रूप से भी सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है। सुबह छह से आठ बजे और शाम चार से छह बजे के बीच सूर्य की किरणों में यूवी-बी (सूर्य से आने वाली एक प्रकार की पराबैंगनी किरण) की मात्रा संतुलित रहती है।

    आयुर्वेद चिकित्सक रमाकांत द्विवेदी बताते हैं कि सुबह उगते हुए सूर्य के सामने आधे घंटे तक खड़े रहने से शरीर को पर्याप्त विटामिन डी की मात्रा प्राप्त होती है। यदि वर्ष में 30 दिन ऐसा किया जाए, तो पूरे वर्ष की आवश्यकता की पूर्ति हो जाती है। विटामिन डी न केवल हड्डियों को मजबूत बनाता है, बल्कि प्रतिरक्षा तंत्र और मानसिक स्थिरता के लिए भी जरूरी है। यह वही विज्ञान है जिसे आज हेलियोथेरेपी यानी सूर्य चिकित्सा कहा जाता है।

    चिकित्सक बताते हैं कि छठ पर्व का सबसे कठिन लेकिन वैज्ञानिक चरण निर्जला उपवास का होता है। लगातार दो दिनों तक बिना जल ग्रहण किए रहने की प्रक्रिया आधुनिक पोषण विज्ञान के आटोफैगी (कोशिकीय पुनर्चक्रण) से जुड़ी हैं। इसके तहत कोशिकाएं अपने क्षतिग्रस्त हिस्सों की मरम्मत करती हैं। इसे हम शरीर की प्राकृतिक सफाई प्रक्रिया भी कह सकते हैं। शरीर स्वयं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करने के बाद नई कोशिकाओं का निर्माण करता है।

    आयुर्वेद चिकित्सक मनोरमा सिंह बताती हैं कि महिलाओं के निर्जला उपवास करने से शरीर के ‘बैड सेल्स’ जिसे शरीर के लिए हानिकारक कोशिकाएं कहते हैं, या कैंसर सेल्स डेड होने लगते हैं। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) बढ़ती है और शरीर विष मुक्त होता है। यह उपवास केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक अनुशासन का भी प्रतीक है। आयुर्वेद चिकित्सक लक्ष्मी अग्निहोत्री बताती हैं कि छठ व्रत नहाय-खाय से शुरू होता है, जिससे शरद ऋतु के बाद शरीर में पित्त का शमन होता है। तीन दिनों की यह प्रक्रिया शरीर की शुद्धि के साथ धैर्य और आत्मसंयम की प्रवृत्ति को भी बढ़ाती है।

    चिकित्सक बताते हैं कि छठ की सबसे अनूठी और वैज्ञानिक परंपरा जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना है। यह केवल पूजा की प्रक्रिया नहीं, बल्कि शरीर और मन के संतुलन का एक गहरा अभ्यास है। ठंडा जल शरीर की गर्मी को नियंत्रित करता है और नाड़ियों को संतुलित करता है। जल में खड़े रहने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और शरीर एक स्वाभाविक ध्यानावस्था में चला जाता है।

    जब सूर्य की किरणें शरीर पर पड़ती हैं, तो मस्तिष्क में सेरोटोनिन और मेलनोटोनिन हार्मोन सक्रिय होते हैं, जो मानसिक शांति और सुकून का भाव उत्पन्न करते हैं। इसके साथ ही छठ प्रकृति से जुड़ाव का संदेश देता है। पूजा में प्रयुक्त प्रत्येक सामग्री जैसे गुड़, गन्ना, अदरक, नींबू, नारियल, केला और ठेकुआ इत्यादि प्राकृतिक तत्वों से जुड़ी है।

    ये पदार्थ न केवल सात्विक आहार का प्रतीक हैं, बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाते हैं। चिकित्सक बताते हैं कि मनुष्य का प्रकृति से जुड़ाव निरोग रहने की मूल शर्त है, और छठ इसी संबंध को मजबूत करता है। यह संदेश देता है कि भारतीय परंपराओं में विज्ञान सदैव निहित रहा है। सूर्योपासना से लेकर उपवास और ध्यान तक, हर प्रक्रिया शरीर और मन की शुद्धि का माध्यम है।

    वर्तमान में जिसे हाइड्रोथेरेपी और डिटाक्स कहा जाता है। उसे हमारे पूर्वजों ने आस्था और अनुशासन के रूप में अपनाया था। इसलिए छठ पूजा में जल, सूर्य और संयम मिलकर शरीर और आत्मा दोनों को नई ऊर्जा प्रदान करते हैं।