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    Chauri Chaura Kand: दो जुलाई से शुरू हुआ बलिदान का सिलसिला, अलग-अलग दिन और जगह पर फांसी चढ़े थे सत्याग्रही

    By Jagran NewsEdited By: Pragati Chand
    Updated: Sun, 02 Jul 2023 01:16 PM (IST)

    चौरी चौरा विद्रोह के आरोप में 19 सत्याग्रहियों को देश के लिए अपने जान की आहुति देनी पड़ी थी। इन बलिदानियों के बलिदान होने के सिलसिला आज यानी दो जुलाई से ही शुरू हुआ था। चौरी चौरा की घटना के सत्याग्रहियों का बलिदान 11 जुलाई 1923 तक चला था। देश के लिए बलिदान होने वाले सत्याग्रहियों को अलग-अलग दिन व स्थानों पर फांसी दी गई थी।

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    चौरी चौरा के शहीद स्मारक का विहंगम दृश्य। -जागरण

    गोरखपुर, जागरण संवाददाता। चौरी चौरा विद्रोह की तिथि तो हर उस व्यक्ति को याद रहती है, जिसकी थोड़ी भी रुचि स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को जानने में है। पर वह तिथि शायद ही किसी को याद हो, जिसमें विद्रोह के आरोप में 19 बलिदानियों को फांसी के फंदे पर झूलकर सर्वोच्च बलिदान देना पड़ा था। यही वजह है कि विद्रोह का शताब्दी वर्ष तो समारोहपूर्वक मनाया गया, लेकिन उसके बलिदानियों के बलिदान के शताब्दी वर्ष को लेकर कोई हलचल नहीं दिख रही। ऐसे में यह बताने की महती जरूरत है कि 1923 ही वह वर्ष है, जब बाबा राघवदास और महामना मदनमोहन मालवीय के हरसंभव प्रयास के बाद भी 19 सत्याग्रही देशभक्तों को बलिदान देना पड़ा था।

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    दो से 11 जुलाई तक चला सत्याग्रहियों के बलिदान का सिलसिला

    यह चर्चा आज की तिथि में प्रासंगिक इसलिए है कि दो जुलाई ही वह तिथि है, जब से इन सत्याग्रहियों को फांसी देने का सिलसिला शुरू हुआ था। हालांकि सत्याग्रहियों के सम्मान में बने शहीद स्मारक और सूचना विभाग की किताब में फांसी देने की तिथि दो जुलाई 1923 ही दर्ज है, लेकिन इस घटना को लेकर चले मुकद्दमे के दस्तावेज यह साफ करते हैं कि सभी को अलग-अलग दिन और अलग-अलग जगह फांसी दी गई। दस्तावेजों के हिसाब से भी दो जुलाई की तिथि का महत्व इसलिए है क्योंकि इसी दिन से घटना के सत्याग्रही देशभक्तों को फांसी दिए जाने की शुरुआत की गई थी और यह सिलसिला 11 जुलाई तक चला था। दस्तावेज के मुताबिक पहले दिन तीन सत्याग्रही फांसी के फंदे पर झूले थे।

    चौरी चौरा की घटना से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर इसकी पुष्टि सुभाष चंद्र कुशवाहा ने अपनी किताब ''चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आंदोलन'' में सभी सत्याग्रहियों की फांसी की तिथि को अलग-अलग बता कर की है। यद्यपि, रामलगन और सीताराम नाम के दो सत्याग्रही ऐसे भी रहे, जिनकी फांसी की तिथि दस्तावेजों के आधार पर भी स्पष्ट नहीं हो सकी। ऐसा सुभाष कुशवाहा का कहना है।

    सत्याग्रहियों के फांसी की तिथि व स्थान

    • रघुबीर सुनार : दो जुलाई, 1923 कानपुर कारागार
    • संपत अहीर : दो जुलाई, 1923 इटावा कारागार
    • श्याम सुंदर मिसिर : दो जुलाई, 1923 इटावा कारागार
    • अब्दुल्ला: तीन जुलाई, 1923 बाराबंकी कारागार
    • लाल मुहम्मद सेन : तीन जुलाई, 1923 रायबरेली कारागार
    • लवटू कोहार : तीन जुलाई, 1923 रायबरेली कारागार
    • मेघू उर्फ लाल बिहारी: चार जुलाई, 1923 आगरा कारागार
    • नजर अली : चार जुलाई, 1923 फतेहगढ़ कारागार
    • भगवान अहीर : चार जुलाई, 1923 अलीगढ़ कारागार
    • रामरूप बरई : चार जुलाई, 1923 उन्नाव कारागार
    • महादेव : चार जुलाई, 1923 बरेली कारागार
    • कालीचरन : चार जुलाई, 1923 गाजीपुर कारागार
    • बिकरम अहीर : पांच जुलाई, 1923 मेरठ कारागार
    • रुदली केवट : पांच जुलाई, 1923 प्रतापगढ़ कारागार
    • संपत : नौ जुलाई, 1923 झांसी कारागार
    • सहदेव : नौ जुलाई, 1923 झांसी कारागार
    • दुधई भर : 11 जुलाई, 1923 जौनपुर कारागार

    153 सत्याग्रहियों को फांसी से बचाने में मिली थी सफलता

    अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला देने वाली चौरी चौरा की घटना के लिए सत्र न्यायालय ने 172 सत्याग्रहियों को फांसी की सजा सुनाई थी। उस निर्णय के खिलाफ पैरवी के बाबा राघवदास आगे आए। उनके अनुरोध पर ही काफी समय पहले वकालत छोड़ चुके मालवीय जी ने एक बार फिर काला कोट पहना और घटना को गैर इरादतन बताते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट में जोरदार पैरवी की। परिणाम यह रहा कि 172 लोगों को हुई फांसी की सजा 19 लोगों में परिवर्तित हो गई। 153 लोग बचा लिए गए।