चालिहो महोत्सव : 40 दिन की प्रार्थना के बाद प्रकट हुए थे भगवान झूलेलाल
सिंधी समाज 16 जुलाई से 24 अगस्त तक चालिहो महोत्सव मनाता है। इस दौरान पूजा-उपासना से श्रद्धालु आत्मशुद्धि का प्रयास करते हैं। इसके अंतिम नौ दिन नवरात्र के नाम से जाने जाते हैं। गोरखपुर में भी यह महोत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। सिंध प्रांत में मिरख बादशाह के अत्याचारों से तंग आकर श्रद्धालुओं ने सिंधु नदी के किनारे 40 दिन तक भगवान वरुण की प्रार्थना की थी। चालीसवें दिन भगवान वरुण, झूलेलाल के रूप में प्रकट हुए थे। इसी उपलक्ष्य में सिंधी समाज 16 जुलाई से 24 अगस्त तक चालिहो महोत्सव (चालीसवां) मनाता है। इस दौरान पूजा-उपासना से श्रद्धालु आत्मशुद्धि का प्रयास करते हैं। इसके अंतिम नौ दिन नवरात्र के नाम से जाने जाते हैं। इस दौरान पूजा-उपासना सघन हो जाती है। 25 अगस्त को धूमधाम से श्रीझूलेलाल महोत्सव मनाया जाता है। उत्सव व उल्लास के साथ शुक्रवार से चालिहो महोत्सव शुरू हो जाएगा।
श्रीझूलेलाल महोत्सव 25 अगस्त को, उत्सव व उल्लास का माहौल
भारतीय सिंधी सभा के अध्यक्ष राजेश नेभानी बताते हैं कि भगवान झूलेलाल सिंधी समाज के आराध्य देव हैं। प्रतिवर्ष इनका उत्सव 25 अगस्त को धूमधाम से मनाया जाता है। अखंड भारत के सिंध प्रांत में एक अत्याचारी बादशाह था। उसका नाम मिरख था। वह हिंदुओं पर बहुत जुल्म करता था। उससे तंग आकर वहां के लोगों ने भगवान की शरण ली। लोग सिंधु नदी के तट पर गए और 40 दिन तक भगवान उडेरो लाल (वरुण देवता) की आराधना-प्रार्थना की।
40 दिन बीतेंगे पूजा-आराधना में, अंतिम नौ दिन होगी सघन उपासना
40वें दिन भगवान उडेरो लाल मछली पर सवार होकर सिंधु नदी में प्रकट हुए। उनका दर्शन पाकर भक्तों ने खुशी में जयघोष किया- आयो लाल झूलेलाल। वरुण देवता ने भक्तों की बात सुनी और कहा कि चिंता न करो। मैं रतन राय के घर में जन्म लूंगा और तुम्हारे दुखों का अंत करूंगा। सन 951 में सिंध प्रांत के नसरपुर नगर में रतन राय के घर एक बालक का जन्म हुआ, उसका नाम उदय चंद रखा गया। जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया को हुआ था, इसलिए उन्हें चेट्री चंड्र (चैत्र का चांद) भी कहते हैं। वह बड़े हुए और घोड़े पर सवार होकर मिरख बादशाह के पास गए, उसे समझाया लेकिन फौज व धन के घमंड में वह उदय चंद्र की बात को समझा नहीं। अंतत: उदय चंद्र ने उसका वध कर दिया। चूंकि वरुण देवता के प्रकट होने पर भक्तों ने 'आयो लाल झूलेलाल' का जयघोष किया था। इसलिए उन्हें झूलेलाल कहा जाता है।
एक बार दुख में याद किया तो भगवान प्रकट हुए थे। विभाजन के बाद जब यहां हम लोग आए तो दुख से ही सामना हुआ। भगवान ने यहां भी हमारी मदद की। - देवा कारवानी, सूर्यकुंड।
सिंधु नदी तट पर 40 दिन की उपासना के बाद भगवान प्रकट हुए थे। इसलिए इस महोत्सव में हम 40 दिन भगवान की उपासना करते हैं। इसके अंतिम नौ दिन को नवरात्र कहते हैं, जिसमें अनेक लोग मंदिरों में रहकर उपासना करते हैं। - प्रियंका लालवानी, जटाशंकर।
भगवान झूलेलाल आज भी वह हमारी चिंता करते हैं। जब-जब कोई संकट आता है तो हमारे भगवान हमारा रक्षा कवच बनकर खड़े हो जाते हैं और हम लोग हर प्रकार की समस्या को हंसते-हंसते पार कर जाते हैं। हर क्षण उनकी कृपा हम लोग महसूस करते हैं। - समायरा बजाज, हुमायूंपुर।
विभाजन के बाद जब हम लोग यहां आए तो इधर-उधर बिखर गए। कोई किसी को जानता नहीं था। जो जहां था, वहीं भगवान का महोत्सव अपनी सामर्थ्य के अनुसार मनाता था। जब हम थोड़ा संभले तो एक-दूसरे को खोजे। महोत्सव ने सबको एक किया। - नरेश कर्मचंदानी, बैंक रोड।
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