Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अंग्रेज समझते थे संस्कृत का महत्‍व, इसकी सुरक्षा से ही होगी भारतीय संस्कृति व विरासत की रक्षा

    By Navneet Prakash TripathiEdited By:
    Updated: Sat, 21 Aug 2021 12:55 PM (IST)

    कुशीनगर जिले के हाटा उपनगर में विकास में संस्कृत का योगदान विषय पर ि‍विचार गोष्‍ठी आयोजित की गई। इसमें विचार व्‍यक्‍त करते हुुुए वक्‍ताओंं ने कहा कि स ...और पढ़ें

    Hero Image
    गोष्‍ठी को संबोधित करते कुलपति डा. हरेराम त्रिपाठी। जागरण

    गोरखपुर, जागरण संवाददाता। कुशीनगर के हाटा उपनगर में 'विकास में संस्कृत का योगदान' विषय पर विचारगोष्‍ठी आयोजित की गई। मुख्‍य अतिथि के तौर पर गोष्‍ठी को संबोधित करते हुए संपूर्णानंद संस्‍कृत विश्‍वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति डा. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत ऐसी भाषा है, जो संस्कृति की वाहक है। अंग्रेजों को पता चल गया था कि बिना संस्कृत के अध्ययन के भारत की संस्कृति को नहीं समझा जा सकता है, इसलिए कलकत्ता और काशी में संस्कृत विद्यालय की स्थापना की।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    संस्‍कृत भाषा की सुरक्षा से होगी विरासत की रक्षा

    कुलपति ने कहा कि भारतीय संस्कृति और विरासत की रक्षा के लिए संस्कृत भाषा की सुरक्षा आवश्यक है। सरकार भी संस्कृत भाषा की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। दुर्लभ पाण्डुलिपियों की संरक्षा इसीलिए की जा रही है कि हमारे शास्त्रों में वर्णित प्राचीन पाण्डुलिपियों का लाभ देश को मिल सके। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय नव्य न्याय के अध्ययन पर गंभीरता पूर्वक कार्य कर रहा है। उन्होंने शास्त्रों में वर्णित योग का लाभ और वृक्षों से होने वाले लाभ के बारे में विस्तारपूर्वक बताया। कहा कि योग से निरोग रह सकते हैं यह हमारे संस्कृत शास्त्रों में वर्णित है। उन्होंने पतंजलि योग के बारे में भी विस्तार से वर्णन किया।

    गुरुकुलों में मिट जाता था अमीर-गरीब का भेद

    गोष्‍ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रो. रामकिशोर त्रिपाठी ने कहा कि भारत में हजारों साल पहले भी लोग शास्त्र की जानकारी रखते थे। सत्य पर चलते थे, कर्मनिष्ठ थे, संस्कृत भाषा में निहित ज्ञान से भारत एक विकसित देश था। गुरूकुलों की रक्षा समाज के अमीर गरीब सभी लोग करते थे। आज शिक्षा के भेद ने तमाम विसंगतियों को जन्म दिया है। भारतीय संस्कृति की मजबूती का आधार संस्कृत भाषा है। समाज की संभावना का आधार पहले गुरूकुलों मे बनता था। संस्कृत भाषा के द्वारा ही एकता अखण्डता व समानता की आधारशिला रखी जा सकती है।

    संस्‍कृत के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं

    गोष्‍ठी में विषय प्रर्वतन करते हुए प्रो. शैलश मिश्र ने कहा कि संस्कृत ने विभिन्न संस्कृतियों को आपस में जोडने का काम किया। भारत के विकास की कल्पना संस्कृत के विकास के बिना नहीं की जा सकती है। विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का काम किया लेकिन संस्कृत भाषा की वजह से मजबूत संस्कृति नष्ट नहीं हो सकी। एकता व अखंडता के लिए संस्कृत भाषा आवश्यक है।

    कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भूमि विकास बैंक के सभापति संतराज यादव ने कहा कि भारत की आत्मा गांव मे बसती है। संस्कृति की रक्षा तभी हो सकती है जब संस्कृत भाषा का विकास हो। जन्म से मृत्यु तक सभी कार्य संस्कृत भाषा में होते हैं। संस्कृत को हमें अपने दैनिक जीवन में उतारना होगा।

    मंदिर का किया शिलान्‍यास

    संगोष्ठी के पहले कुलपति द्वारा महाविद्यालय परिसर में संकट मोचन मंदिर का शिलान्यास किया गया। बैष्णवी व बसुंधरा ने सरस्वती वंदना व स्वागत गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन नन्दा पांडेय ने किया। समारोह में माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रान्तीय महामंत्री जगदीश पांडेय, प्रबंधक अग्निवेश मणि, अध्यक्ष नारायण पाण्डेय, मंत्री गंगेश्वर पाण्डेय, पूर्व प्राचार्य डा. रामसुबास पाण्डेय, राजेश कुमार चतुर्वेदी, कालिका दूबे, संजय पाण्डेय, विनोद मणि, विश्वास मणि, मनीष उपाध्याय, दिलीप जायसवाल, विश्वदीपक त्रिपाठी, सतीश चंद्र शुक्ल, चंदेश्वर शर्मा परवाना, संस्कृत विद्या प्रबोधिनी पाठशाला के प्रधानाचार्य अवधेश द्विवेदी आदि उपस्थित रहे।