Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अब बहराइच तक लहलहाएगी कालानमक की दो नई प्रजातियां, पूर्वांचल के 11 जिलों में भी उगाई जा सकेंगी

    By Jagran NewsEdited By: Pragati Chand
    Updated: Sat, 10 Jun 2023 03:51 PM (IST)

    परंपरागत कालानमक धान की तरह केवल सिद्धार्थनगर में ही अच्छा उत्पादन देता था लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब इसकी नई प्रजातियां कई जिलों में लहलहाएंगी। अब तक बाजार में भरपूर मांग होने के बाद भी किसान चाहकर भी इसकी खेती नहीं कर पाते थे।

    Hero Image
    अब बहराइच तक लहलहाएगी कालानमक की दो नई प्रजातियां। -जागरण

    गोरखपुर, आशुतोष मिश्र। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय, अयोध्या की अगुवाई में कृषि विज्ञानियों ने कालानमक की दो उन्नत प्रजातियां विकसित की हैं। खास बात यह है कि पूसा नरेंद्र कालानमक-1 और पूसा नरेंद्र कालानमक सीआरडी-2 नामक ये प्रजातियां परंपरागत कालानमक धान की तरह केवल सिद्धार्थनगर में ही नहीं, बल्कि आसपास के 11 जिलों में उगाई जा सकेंगी। इसके पौधे मूल प्रजाति की तुलना में छोटे हैं और उत्पादकता अधिक है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    स्वाद और सुगंध के लिए जाना जाता है कालानमक

    कालानमक चावल अपने स्वाद और सुगंध के लिए जाना जाता है। जो एक बार इसे खा लेता है, उसकी जीभ पर इसका स्वाद चढ़ जाता है। इसीलिए दूर-दूर तक इसकी मांग है। यद्यपि यह सबको सुलभ नहीं हो पाता, क्योंकि जब सिद्धार्थनगर जिले के इस धान को दूसरे जिलों में पैदा किया जाता है तो यह सुगंध और गुण खो देता है। इसीलिए बाजार में भरपूर मांग होने के बाद भी किसान चाहकर भी इसकी खेती नहीं कर पाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।

    27 मार्च को जारी की गई हैं दोनों प्रजातियां

    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की अगुवाई में सिद्धार्थनगर के सोहना कृषि विज्ञान केंद्र और गोरखपुर के एक निजी फार्म के कृषि विज्ञानियों ने मूल कालानमक प्रजाति की बेसलाइन एसएल 03 को लेकर बायोटेक्नोलाजी की मदद से इसकी दो उन्नति प्रजातियां तैयार करने में सफलता पाई है। पूसा नरेंद्र कालानमक-1 को सिद्धार्थनगर तो पूसा नरेंद्र कालानमक सीआरडी-2 को गोरखपुर में तैयार किया गया है। इसी वर्ष 27 मार्च इन दोनों प्रजातियों को जारी किया गया है।

    ये प्रजातियां जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआइ) वाले पूर्वांचल के 11 जिलों में उगाई जा सकेंगी। इनमें गोरखपुर, बस्ती और देवी पाटन मंडल के जिले शामिल हैं, यानी इसे सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, गोरखपुर, बलरामपुर, गोंडा, श्रावस्ती से लेकर बहराइच तक उगाया जा सकेगा।

    मूल प्रजाति से भी पतले हैं पूसा नरेंद्र कालानमक-1 के दाने

    सोहना कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ विज्ञानी एवं अध्यक्ष डा. ओपी वर्मा के अनुसार, पूसा नरेंद्र कालानमक-1 के दाने मूल प्रजाति से भी पतले हैं, जबकि पूसा नरेंद्र कालानमक सीआरडी-2 के दाने थोड़े मोटे। दोनों प्रजातियों का उत्पादन 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि मूल प्रजाति का उत्पादन लगभग 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही है। मूल प्रजाति 144 से 150 सेमी लंबी होती है, लेकिन नई प्रजातियों के पौधे 100 सेमी के ही होते हैं। इससे बारिश और आंधी में फसल गिरने से बच जाती है।

    मूल प्रजाति की तरह ही पोषण से भरपूर

    कालानमक धान को तराई में बुद्ध का प्रसाद के नाम से जाना जाता है। सोहना कृषि विज्ञान केंद्र के फार्म मैनेजर एवं तकनीकी अधिकारी डा. मारकंडेय सिंह कहते हैं कि लोक मान्यता के अनुसार गौतम बुद्ध ने कालानमक धान के पोषक तत्वों के महत्व को समझते हुए इसे प्रसाद रूप में लोगों को यह कहते हुए दिया था कि इसे खाते रहोगे तो सुखी रहोगे। नई प्रजातियों में मूल प्रजाति की तरह ही पोषक तत्व भरपूर हैं। इन नई प्रजातियों से अब बुद्ध का प्रसाद सभी को सुलभ हो सकेगा।