औषधियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता बढ़ाएगा आयुष विश्वविद्यालय, फार्मेसी में बना रहे औषधि
महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय परिसर में औषधीय पौधों से दवाएं बनेंगी। परिसर में आठ हजार से अधिक पौधे लगाए गए हैं, और फार्मेसी में जड़ी-बूटियों से औषधि बनाई जा रही है। विश्वविद्यालय औषधियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर जोर दे रहा है। किसानों को औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।
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उत्पादन बढ़ाने पर दे रहे जोर
संवाद सूत्र, भटहट। महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय परिसर में औषधीय पौधों से विभिन्न औषधियां बनाई जाएंगी। इसलिए परिसर में जहां विभिन्न प्रजातियों के आठ हजार से अधिक पौधे लगाए गए हैं। वहीं फार्मेसी में बाहर से मंगाई जड़ी- बूटियों की मदद से औषधि बनाई जा रही है। परिसर में लगे अरंडी, अर्क, वट इत्यादि के पत्तों का उपयोग पंचकर्म में किया जा रहा है।
कुलपति डा. के रामचंद्र रेड्डी ने बताया कि पौधों को आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार लगाया गया है। परिसर में आने वाले लोग उनकी पहचान कर सकें। इसके लिए उनके हिंदी, संस्कृत और वैज्ञानिक नामों के साथ आइडी कार्ड लगाए गए हैं। इन पौधों की देखरेख वैज्ञानिक पद्धति से की जा रही है, ताकि औषधीय गुणवत्ता बनी रहे।
आयुष विश्वविद्यालय में औषधियों के निर्माण में आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इसलिए वचा, विजयसार, गिलोय, अश्वगंधा, त्रिफला, आम्लिकी, रुद्राक्ष, दांती, अडुसी, निर्गुंडी, बहेड़ा और मधुकरी जैसे दुर्लभ पौधों का रोपण किया गया है। ताकि भविष्य में इनका उपयोग स्थानीय स्तर पर औषधि बनाने में किया जा सके।
इसके पहले विश्वविद्यालय की ओर से फार्मेसी में विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण कर दिया गया है। अश्वगंधा चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, आम्लिकी चूर्ण, च्यवनप्राश काढ़ा और मधुमेहारी चूर्ण तैयार किए जा रहे हैं। मधुमेहारी विश्वविद्यालय के कुलपति के शोध पर आधारित उत्पाद है, जो मधुमेह रोगियों के लिए वरदान साबित होगा।
इसे गुड़मार, नीम बीज, जामुन गुठली, हरितकी बीज, करेला, सौंफ, बबूल फली, आम्रबीज, हरिद्रा (हल्दी) और विजयसार के मिश्रण से बनाया जा रहा है। फार्मेसी में तैयार हो रहा च्यवनप्राश काढ़ा 54 औषधीय जड़ी-बूटियों से बना एक शक्तिशाली रोग प्रतिरोधक मिश्रण है, जो सर्दी, खांसी, अस्थमा और थकान जैसी बीमारियों से रक्षा करता है।
कुलपति ने बताया कि औषधीय पौधों की खेती के माध्यम से आसपास के किसानों को जोड़ने की योजना है। किसानों को पौध और तकनीकी प्रशिक्षण उपलब्ध कराने, उनके पौधों के खरीदने का कार्य भी किया जाएगा। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों को यह भी बताएंगे कि कौन-से पौधे किस मिट्टी और मौसम में अधिक उपज देंगे।
यह पहल ग्रामीण क्षेत्र में औषधीय खेती को बढ़ावा देने के साथ रोजगार का नया द्वार खोलेगी। औषधियों की बढ़ती मांग के चलते स्थानीय स्तर पर प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन इकाइयां स्थापित की जाएंगी।

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