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फांसी के कुछ घंटे पहले जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करता देख सहम गए थे अंग्रेज अफसर

काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में 19 दिसंबर 1927 को सुबह छह बजे फांसी दी जानी थी। फांसी दिये जाने से कुछ ही घंटे पूर्व बैरक में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करते देख जेलर व पहरा अचंभित रह गए थे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 08 Aug 2021 11:50 AM (IST)Updated: Sun, 08 Aug 2021 09:31 PM (IST)
फांसी के कुछ घंटे पहले जेल में राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करता देख सहम गए थे अंग्रेज अफसर
काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल। - सौजन्‍य, इंटरनेट मीडिया।

गोरखपुर, जितेंद्र पाण्डेय। 19 दिसंबर 1927 को सुबह छह बजे काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में फांसी दी जानी थी। फांसी दिये जाने से कुछ ही घंटे पूर्व बैरक में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को कसरत करते देख जेलर व पहरा अचंभित रह गए थे। जेलर उनसे पूछा था कि पंडित- तुम्हें कुछ ही घंटे में फांसी होनी है। कसरत क्यों कर रहे हो। पंडित जी ने जवाब दिया था कि यह भारत माता की चरणों में अर्पित होने वाला फूल है। मुरझाया हुआ नहीं होना चाहिए। स्वस्थ व सुंदर दिखना चाहिए।

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चार माह 10 दिन गोरखपुर की जेल में रहे काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा में यह लाइनें पढ़ने के बाद हर भारतवासी की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती है। गोरखपुर जेल में वह चार माह 10 दिनों तक बंद रहे। 10 अगस्त 1927 को अंग्रेजाें ने उन्हें लखनऊ जेल से गोरखपुर भेज दिया था। यहां उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे तन्हाई बैरक कहा जाता था। गोरखपुर में आने के बाद बिस्मिल ने कमरे को साधना केंद्र के रूप में प्रयोग किया था। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है। पंडित बिस्मिल शाहजहांपुर के निवासी थे। उनका जन्म 11 जून 1897 को हुआ था।

पावन हो रही जेल की माटी

पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में जहां फांसी दी गई थी, उस स्थल को एक तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने में प्रदेश सरकार जुटी हुई है। पंडित जी जेल में जहां फांसी दी गई थी, जिस चौकी पर वह विश्राम करते थे, साधना केंद्र, उनकी स्मृतियों से जुड़ीं सभी वस्तुओं का पर्यटन विभाग जीर्णोद्धार कर चुका है। आगंतुकों यहां आने के लिए अब किसी के अनुमति की जरूरत नहीं है। वह यहां आसानी से आकर एक-एक वस्तुओं, फांसी घर, उनकी बैरक आदि को देख कर आभास कर सकते हैं कि पंडित जी ने यहां चार माह का वक्त यहां कैसा बीता होगा। इसके लिए जेल के बाहर से एक रास्ता बनाकर उसे खोल दिया गया है। फांसी घर, बिस्मिल बैरक आदि को ऊंची बाउंड्री के जरिये जेल से अलग कर दिया गया है। ताकि वहां आगंतुकों के आने जाने पर कोई पाबंदी न रहे। यहां फांसीघर, लकड़ी के फ्रेम, लीवर को आज भी उसी प्रकार सुरक्षित रखा गया है, जिस तरह यह आज के 93 वर्ष पूर्व दिखता था। पर्यटन विभाग ने इसका जीर्णोद्धार किया है, ताकि लोग आने वाले वर्षों में भी इस ऐतिहासिक विरासत को देख सकें।

पंडित बिस्मिल के नाम से किया जाए राजघाट पुल

गुरुकृपा संस्थान के संस्थापक ब्रजेश त्रिपाठी पिछले दो दशक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती व पुण्यतिथि को लेकर कार्यक्रम कर रहे हैं। वह पंडित बिस्मिल के स्मृति में प्रतिवर्ष एक मेले का भी आयोजन करते हैं। उन्होंने कहा कि पंडित बिस्मिल का अंतिम संस्कार राजघाट में हुआ था। ऐसे में यदि राजघाट को उनके नाम से कर दिया जाए और राजघाट में उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करा दी जाए तो यह पंडित बिस्मिल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर दिखेगी बिस्मिल की जेल

पर्यटन विभाग जल्द ही बिस्मिल जेल को जल्द ही विभाग की वेबसाइट से जोड़ने की तैयारी कर रहा है। जल्द ही मुख्यालय से इसके लिए कोई फोटोग्राफर हायर किया जाएगा। वह फांसी घर समेत प्रत्येक चीजों को शूट करेंगे। उसके बाद उसे वेबसाइट से जोड़ने का कार्य किया जाएगा। - रविंद्र कुमार मिश्र, क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी।


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