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    Arogya Mandir: गोरखपुर के इस मंदिर में बिना दवा अस्थमा को मिली हार, 100 रोगियों में से 82 को मिली बड़ी राहत

    Updated: Thu, 16 May 2024 12:42 PM (IST)

    Arogya Mandir जयपुर के 62 वर्षीय हरिनारायण शर्मा अम्लपित्त भूख की कमी व मानसिक तनाव से ग्रसित थे। अनेक बड़े शहरों में उपचार कराकर निराश हो चुके शर्मा ...और पढ़ें

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    आरोग्य मंदिर में रोगी की रंग चिकित्सा करते प्राकृतिक चिकित्सक l सौ. आरोग्य मंदिर (फाइल फोटो)

     गजाधर द्विवेदी, जागरण गोरखपुर। पटना की 65 वर्षीय रागिनी प्रसाद को अस्थमा की दिक्कत थी। उन्होंने पटना से लेकर दिल्ली तक अनेक बड़े चिकित्सा संस्थानों में उपचार कराया। लेकिन अपेक्षित लाभ नहीं मिला। दवा व इन्हेलर नियमित लेना पड़ता था। बावजूद इसके मौसम में बदलाव के समय उनकी दिक्कतें बढ़ जाती थीं।

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    यहां आरोग्य मंदिर में दो माह उपचार कराने के बाद उनकी दिक्कतें काफी कम हो गईं और दवा भी छूट गई है। जयपुर के 62 वर्षीय हरिनारायण शर्मा अम्लपित्त, भूख की कमी व मानसिक तनाव से ग्रसित थे। अनेक बड़े शहरों में उपचार कराकर निराश हो चुके शर्मा जयपुर के प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में गए तो उन्हें काफी लाभ हुआ लेकिन अम्लपित्त बना रहा। इसके लिए आरोग्य मंदिर आए।

    तीन माह उपचार के बाद पूरी तरह स्वस्थ हो गए। अनेक चिकित्सा पद्धतियों से उपचार कराकर थक चुके लोगों को प्रकृति के सानिध्य ने स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया। हरे-भरे शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में सुबह-शाम टहलना, सुबह की धूप और कुछ प्राकृतिक उपचार व आहार-विहार से अस्थमा जैसे गंभीर रोग से भी राहत मिल गई।

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    प्राकृतिक उपचार से अम्लपित्त (एसिडिटी) व त्वचा रोग भी हार गए। ये वे रोगी हैं जो बड़े चिकित्सा संस्थानों में लंबे समय से उपचार करा रहे थे लेकिन अपेक्षित लाभ नहीं मिला था। एक साल के अंदर अस्थमा के सौ रोगी आए। इनमें से 82 को बड़ी राहत मिल गई। अम्लपित्त के 110 में से 93 रोगी पूरी तरह ठीक हो गए।

    त्वचा से संबंधित 70 रोगी आए, इनमें से 57 पूरी तरह स्वस्थ होकर गए। यह हुआ उपचार: सभी प्रकार के रोगियों को सुबह 20 मिनट धूप में बैठाया गया। सुबह-शाम टहलना व योगाभ्यास अनिवार्य किया गया। इसके अलावा भोजन में चोकर समेत आटे की रोटी, फल, उबली सब्जियां, सलाद, नारियल का पानी दिया गया।

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    यही जीवनशैली घर जाने पर भी अपनाने की सलाह दी गई। इसके रोगियों की रंग चिकित्सा की गई। अस्थमा के रोगियों की छाती पर पीले रंग के शीशे से सूर्य की किरणों को पहुंचाया गया। छाती की ऊनी-सूती पट्टी की गई और पैरों को गरम पानी में 20 मिनट रखा गया।

    अम्लपित्त के रोगियों को पूरे शरीर पर गीली पट्टी लगाई गई। गरम-ठंडा कटि स्नान, पेट की गरम-ठंडी सेंक व पेट पर नीले रंग के शीशे से सूर्य की किरणें पहुंचाई गईं। त्वचा संबंधी रोगियों के पूरे शरीर पर नीले रंग के शीशे से सूर्य की किरणें पहुंचाई गईं। एक दिन भाप नहान व दूसरे दिन सर्वांग मिट्टी लेप का क्रम उपचार तक चलता रहा।

    आरोग्य मंदिर के निदेशक डा. विमल कुमार मोदी ने कहा कि प्राकृतिक व संतुलित आहार, नियमित व्यायाम या योगाभ्यास, टहलना, सुबह की धूप लेना, यदि जीवन का हिस्सा हो जाए तो 90 प्रतिशत बीमारियां विदा हो जाएंगी।