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    किसानों के काम का कृषि कचरा

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 22 Jun 2017 02:20 AM (IST)

    गोरखपुर : खेत, खलिहान और घर से निकलने वाला कचरा किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। कृषि कच

    किसानों के काम का कृषि कचरा

    गोरखपुर : खेत, खलिहान और घर से निकलने वाला कचरा किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। कृषि कचरे से बनने वाला वर्मी कम्पोस्ट न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करता है बल्कि मृदा के स्वास्थ्य को भी सुरक्षित रखता है। कुटीर उद्योग के रूप में इसका इस्तेमाल किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में भी मददगार है।

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    नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैजाबाद से संबद्ध कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. सतीश कुमार सिंह बताते हैं कि फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के अनियंत्रित प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य एवं मिट्टी में मौजूद लाभदायक जीवाणु की संख्या में कमी आई है। इसकी कमी के चलते मृदा की उत्पादन शक्ति भी कम हुई है। मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ उत्पादन बढ़ाने के लिए जैविक खाद के इस्तेमाल को बढ़ावा देना आवश्यक है।

    सुलभ है वर्मी कम्पोस्ट

    किसानों का मित्र और हलवाहा कहे जाने वाले केंचुए से तैयार होने वाले वर्मी कम्पोस्ट को जैविक खाद में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कृषि के अपशिष्ट पदार्थ, रसोई के कूड़े कचरे को दोबारा उपयोगी पदार्थ में बदलने के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में प्रभावशाली भूमिका निभाता है। वर्मी कम्पोस्ट के निर्माण में एक विशेष प्रकार के केंचुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये केंचुए कार्बनिक या जीवांश पदार्थ को विघटित या सड़ा कर खाद तैयार करता है। केंचुए की खाद ही वर्मी कम्पोस्ट कही जाती है।

    ऊंची, छायादार जगह मुफीद

    ऐसी जगह जहां दिनभर छाया रहती हो वह वर्मी कम्पोस्ट निर्माण के लिए सर्वाधिक मुफीद है। इस जगह की ऊंचाई भूमि सतह से करीब एक मीटर होनी चाहिए। पेड़ के नीचे, बाग या पुआल का छप्पर बनाकर भी छायादार जगह बनाई जा सकती है। जगह जमीन ऊंची न हो तो मिट्टी डालकर इसे ऊंचा किया जा सकता है। ऊंची जगह पर दो मीटर लंबा, दो मीटर चौड़ा तथा एक मीटर गहरा गढ्डा बना लें। गढ्डे के अभाव में इसी नाप की प्लास्टिक या लकड़ी की पेटी का इस्तेमाल किया जा सकता है। निचली सतह पर जल निकास के लिए 10-15 जगह छेद होना आवश्यक है।

    निर्माण में सावधानी जरूरी

    - गढ्डे में सबसे नीचे ईट या पत्थर की 11 सेमी परत बनाने के बाद 20 सेमी मोरंग या बालू की दूसरी तह लगाना चाहिए। इसके ऊपर 15 सेमी उपजाऊ मिट्टी की तह लगाकर पानी के हल्के छिड़काव से नम कर दें। इसके बाद एक गढ्डे में ठंडा एवं आधा सड़ा एक किलो गोबर डाल दें। इसके ऊपर 5-10 सेमी घरेलू व कृषि कचरा बिछा दें। 20-25 दिन तक आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें। हर हफ्ते 5-10 सेमी कचड़े की तह लगाकर पानी का छिड़काव करते रहें। कार्बनिक पदार्थ के ढेर पर 50 फीसद नमी रहनी चाहिए। करीब सात सप्ताह में वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाएगा, जिसके बाद पानी का छिड़काव बंद कर दें। इसके बाद खाद निकालकर छाया में सुखा लें। इसे दो मिमी छन्नी से छानकर अलग कर लें और आवश्यकतानुसार खाद को प्लास्टिक की थैली में भर लें।

    इन पदार्थो का करें प्रयोग

    कृषि अवशेष : पुआल, भूसा, गन्ने की खोई, पत्तियां, खरपतवार, फूस, फसलों के डंठल, मक्का, कुंड, छिलका, मक्का पेड़, बायोगैस अवशेष व गोबर आदि।

    घरेलू अवशेष : घर के कचरे, बची हुई सब्जियां, खाद्य पदार्थ, फलों व सब्जियों के छिलके, भोजन के अवशेष आदि।

    व्यर्थ पदार्थ : चीनी, धान, वनस्पति तेल मिल, शराब उद्योग, बीज संयंत्र व खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के अपशिष्ट पदार्थ

    केंचुए की प्रजातियां

    वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए इसेनिया फोटीडा व इयूड्रिल्स इयूजीनी प्रजाति के केंचुए प्रमुख हैं। इसके अलावा पेरिचानिरस एक्सबकेट्स, लैम्पीटो माउरीटी, डावीटा कलेवी तथा डिगोगास्टर बोलाई प्रजातियां भी कम्पोस्टिंग में इस्तेमाल की जाती है।

    नीचे से ऊपर जाते हैं केंचुए

    केंचुए कचरे के ढेर के नीचे से कम्पोस्ट बनाते हुए ऊपर की तरफ जाते हैं। पूरे गड्ढे की कम्पोस्ट तैयार होने के बाद ऊपरी स्तर पर कूड़े कचरे की एक नई सतह लगाने के बाद पानी छिड़ककर नम कर देते हैं। इस सतह की ओर सभी केंचुए आकर्षित हो जाते हैं। इन्हें हाथ या किसी चीज से इकट्ठा करके अलग कर दूसरे गड्ढे में इस्तेमाल कर सकते हैं।

    पोषक तत्वों की भरमार

    अन्य जीवांश खाद की तुलना में वर्मी कम्पोस्ट में अत्याधिक मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें नाइट्रोजन एक से डेढ़ फीसद, फास्फोरस डेढ़ फीसद तथा पोटाश डेढ़ फीसद होता है। इसके अतिरिक्त इसमें अन्य सूक्ष्म तत्व भी मौजूद होते हैं।

    वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल

    धान, तिलहन और सब्जी की फसल में पांच से छह टन वर्मी कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए। बुआई के पहले इसे खेत में बिखेर कर जुताई करके मिला देना चाहिए। फलदार वृक्षों में 200 ग्राम प्रति पौधा तथा घास के लान में तीन किलो प्रति दस वर्गमीटर इस्तेमाल किया जा सकता है।

    वर्मी कम्पोस्ट के फायदे

    - रासायनिक उर्वरकों की खपत को कम करता है।

    - मृदा स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने का प्रभावी उपाय है।

    - मृदा के भौतिक एवं जैविक गुणों में सुधार होता है।

    - मृदा संरचना एवं वायु संचार में सुधार होता है।

    - नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु की संख्या बढ़ाता है।

    - कुटीर उद्योग के रूप में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराता है।

    - कचरे से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करता है।

    - पैदावार की गुणवत्ता में सुधार के साथ उपज में वृद्धि करता है।