पशु बाजार : नए प्रावधान के साथ इंतजाम पर भी दें ध्यान
गोरखपुर : पशु बाजार को लेकर पशु क्रूरता अधिनियम में हुए नए प्रावधान अभी लागू भी नहीं हुए कि इससे जुड़ ...और पढ़ें

गोरखपुर : पशु बाजार को लेकर पशु क्रूरता अधिनियम में हुए नए प्रावधान अभी लागू भी नहीं हुए कि इससे जुड़े व्यापार पर असर नजर आने लगा है। पशु बाजारों में जहां मवेशियों की संख्या में कमी आने की आशंका बढ़ गई है वहीं भोपा बाजार के ऐतिहासिक चमड़ा मंडी पर भी प्रभाव पड़ने लगा है। इस बाजार में बड़े मवेशियों के चमड़े की आवक में आई जबरदस्त कमी से चमड़ा मंडी के कारोबारी परेशान हैं। पशु बाजार में दुधारु मवेशियों के अलावा अनुपयोगी पशुओं की खरीद बिक्री पर लगने वाले प्रतिबंध के चलते पशुपालक से लेकर किसान तक हैरान और परेशान हैं। कानून के जानकार भी अब तक के हुए प्रावधानों में अनुपयोगी मवेशियों के लिए भी इंतजाम करने के लिए इसमें संशोधन की बात कर रहे हैं।
पशुओं पर होने वाली क्रूरता और अवैध कटान को लेकर शुरू से ही चिंता जताने वाले केंद्र सरकार ने पशु क्रूरता अधिनियम में संशोधन करते हुए कई नए बदलाव किए हैं। इन बदलावों में दुधारु पशुओं के प्रति तो सरकार ने चिंता जताई है लेकिन ऐसे अनुपयोगी मवेशियों के लिए कोई प्रावधान या इंतजाम नहीं किए गए हैं जो बड़े पैमाने पर लावारिश घूमते हैं। तस्करी के लिए जाने वाले मवेशियों में ज्यादातर ऐसे ही पशु शामिल होते हैं जिनका कोई पुरसाहाल या मालिक नहीं होता। पशु बाजार में अनुपयोगी मवेशियों की खरीद फरोख्त रोकने के लिए जो सख्त कानून बनाए गए हैं उनको लेकर पशु पालकों से लेकर किसानों तक की चिंता जायज है। ये नया कानून अभी पूर्ण रूप से लागू भले न हुआ हो लेकिन पशु बाजारों से लेकर चमड़ा मंडी तक पर इसका असर दिखना शुरू हो गया है।
चमड़ा मंडी में कम हुई आवक
मुंडेरा बाजार संवाददाता के अनुसार चौरीचौरा के भोपा बाजार में लगने वाली चमड़ा मंडी पर आवक घट गई है। कारोबारियों का मानना है कि कानून भले ही अभी लागू हुआ हो लेकिन जब से प्रदेश में सरकार बदली है और नए कानून की चर्चा शुरू हुई है तभी से इस पर असर नजर आने लगा है। शनिवार को लगने वाली कच्चे चमडे की मंडी में देवरिया, आजमगढ़, मऊ, फैजाबाद, संतकबीरनगर, कुशीनगर, गोरखपुर व बस्ती आदि जिलों से बड़े पैमाने पर व्यापारी चमड़ा लेकर आते थे। इसमें मृत गो व मही वंशी मवेशियों के अलावा बकरी, भेड़ आदि जानवरों का भी कच्चा चमड़ा आता था। हालांकि पिछले कुछ हफ्तों से बड़े मवेशियों के चमड़े की आवक में जबरदस्त कमी आई है। बड़े मवेशियों के चमड़े अगर यहां नहीं आए तो धीरे-धीरे मंडी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।
मजदूरों की रोजी रोटी पर संकट
भोपा बाजार की चमड़ा मंडी में करीब सवा सौ मजदूर कच्चे चमड़े की सफाई, कटिंग व चमडे पर नमक लगाने का काम करते हैं। चमड़ा मंडी में एकाएक आवक कम होने से काम खत्म हो गया है। इसके चलते मजदूरों का काम काफी कम हो गया है, जिसके चलते रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
बेचने की बजाय छोड़ना होगा बेहतर
अनुपयोगी मवेशियों को पशु बाजार में बेचने पर लगी प्रतिबंध के बाद अब पशु पालक अनुपयोगी पशुओं को बाजार में ले जाकर बेचने की बजाय उसे लावारिश हालत में ही कहीं छोड़ने की बात कह रहे हैं। डेयरी उद्योग से जुड़े कुछ बड़े पशु पालकों का कहना है कि बाजार में लेकर जाने पर खर्च तो होगा ही साथ ही कोई खरीददार नहीं मिलेगा। ऐसे में अनुपयोगी पशुओं को कहीं ले जाकर छोड़ने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं होगा।
बातचीत कारोबारी
'प्रदेश में जबसे सरकार बदली है, मंडी में बड़े मवेशियों के चमड़े की आवक कम हो गई है। इस समय नाम मात्र का ही कच्चा चमडा आ रहा है। चमड़ा कम आने से व्यापारियों का कारोबार प्रभावित हो गया है।' - प्रदीप कुमार, चमड़ा कारोबारी
'अनुपयोगी मवेशियों की खरीद फरोख्त पर रोक लगने से इसका सीघा असर चमड़ा कारोबारी पर पड़ेगा। चमड़ा मंडी की हालत पहले ही दयनीय थी, अब नए फरमान से तो काम बंद होता ही नजर आ रहा है।' - सुदामा प्रसाद, चमडा कारोबारी
'ऐतिहासिक चमड़ा मंडी का बुरा हाल है। कच्चे चमड़े की आवक कम होने और सरकार के नए प्रावधानों का सीधा असर मजदूरों पर पड़ा है। मेराज, चमड़ा कारोबारी
बातचीत अधिवक्ता
'पालतु मवेशियों की खरीद बिक्री को लेकर तो कानून बनाया जाना ठीक है, लेकिन इसमें अनुपयोगी पशुओं की खरीद बिक्री को अलग कर प्रतिबंधित करने के कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।' - विष्णु उपाध्याय, अधिवक्ता
'सरकार ने कानून में बदलाव को लेकर जो नए प्रावधान किए हैं, उसमें संशोधन के लिए विचार करने की गुंजाइश है। कोई भी कानून सकुशल ढंग से लागू तभी हो पाएगा जब इसके लिए व्यवस्था भी दी जाए।' - आनंद धर द्विवेदी अधिवक्ता
मवेशियों की कटान के लिए खरीद बिक्री पर प्रतिबंध लगाना एक दृष्टिकोण से तो ठीक है, लेकिन ऐसे अनुपयोगी मवेशियों के रखरखाव और उनके लिए कोई व्यवस्था न देना कानून के पालन में अड़चन है। अनुपयोगी मवेशियों को लेकर विचार करने की आवश्यकता है।
विनोद कुमार तिवारी, अधिवक्ता

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