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    बस्ते में गुम होता बचपन

    गोरखपुर : बुधवार, दोपहर 1 बजे के आसपास। सिविल लाइंस की सड़कों पर छोटे-छोटे बच्चों के डगमगाते कदम। कु

    By Edited By: Updated: Thu, 25 Aug 2016 01:49 AM (IST)

    गोरखपुर : बुधवार, दोपहर 1 बजे के आसपास। सिविल लाइंस की सड़कों पर छोटे-छोटे बच्चों के डगमगाते कदम। कुछ मम्मी-पापा का अंगुली पकड़े। कुछ अपनी पीठ पर बस्ता उठाए। बोझ ऐसा कि उनके कदम भी सही नहीं पड़ रहे थे। बस्ता कभी पीठ पर तो कभी हाथ में। उन्हें देख लग रहा था जैसे उनका बचपन उनके बस्ते में ही गुम हो गया है।

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    कान्वेंट स्कूल के बच्चों का बस्ता अनायास ही नहीं भारी हुआ है। शिक्षकों की उदासीनता और अभिभावकों की अतिरिक्त अपेक्षा। सब नन्हें कदमों में ही भविष्य को तलाश रहे हैं। सीबीएसई हो या आइसीएसई, समग्र पढ़ाई के लिए किताबों का ढेर। एलकेजी और यूकेजी में ही 14 तरह की पुस्तिकाएं पढ़ाई जाती हैं। जिसका वजन ही 5 किलो के आसपास हो जाता है। ऊपर से मजबूत भारी बैग, लंच टिफिन और पानी की बोतल। कुल वजन मिलाकर 10 किलो के आसपास चला जाता है। महाराष्ट्र के चंद्रपुर के बच्चे अनायास ही नहीं विद्यालय प्रबंधन के विरोध में उतर आए हैं। वह बार-बार गुहार लगाते रहे कि उन्हें बस्ता लेकर सीढि़यां चढ़ने में परेशानी होती है। प्रबंधन ने नहीं सुनी तो उन्हें मीडिया के सामने आना पड़ा। यह तो कुछ बच्चों का साहस है। अगर बोर्ड और विद्यालय प्रबंधन नहीं चेते तो आने वाले दिनों में अन्य बच्चे भी बस्ते का बहिष्कार करने में पीछे नहीं रहेंगे। अभिभावक राजेश शाही, मनीष मिश्रा और प्रहलाद तिवारी बताते हैं, उनकी नर्सरी की पढ़ाई तो पटरी पर ही पूरी गई। अब बच्चों की किताबें देख मन खुद बोझिल हो जाता है। घर बच्चे आते हैं तो थक जाते हैं। विद्यालयों को इसपर सोचना होगा। समाजशास्त्री प्रो. मानवेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, भारी बस्ता बच्चों के मन पर कुप्रभाव डालता है। हर बच्चा बचपन में उड़ना चाहता है, वह किसी बंदिश में नहीं रहना चाहता। हंसते-खेलते वह पढ़ना चाहता है। अनावश्यक दबाव से बच्चे कुंठित होते हैं। ऐसे में हमें ऐसी शिक्षा नीति अपनानी होगी जो बिना दबाव के उन्हें शिक्षित कर सके। स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय शाही बताते हैं, बस्ता को बोझिल नहीं बनाया जाता। जिस दिन जो विषय पढ़ाया जाता है, अभिभावक से उसी विषय की किताबें मंगाई जाती हैं। एलकेजी और यूकेजी के बच्चों की किताबें स्कूल में ही रखवा दी जाती हैं। विद्यालय में पीने के पानी की व्यवस्था है। इसके बाद भी अभिभावक बच्चों के कंधे पर पानी की बोतल रख देते हैं। अभिभावकों को भी सोचना होगा। अब तो बच्चे टैबलेट पर पढ़ने लगे हैं। आने वाला दिन टैबलेट का ही होगा।

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    बस्तों की पुस्तिकाएं

    - एलकेजी और यूकेजी में 14-14, कक्षा 1 से 5 तक 15-15, कक्षा 6 में 13, कक्षा 7 और 8 में 12-12 तथा कक्षा 9 के बस्ते में 15 तरह की पुस्तिकाएं होती हैं।

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    सितंबर में आएगी

    नई शिक्षा नीति

    सरकार ने बस्ते के बोझ को गंभीरता से लिया है। कान्वेंट और परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाई के लिए नई शिक्षा नीति बनाई जा रही है। सीबीएसई और आइसीएसई में पाठ्यक्रम के लिए 15 सितंबर तक अहम सुझाव भी मांगे गए हैं। जानकारों का कहना है कि नई शिक्षा नीति से विद्यालय खोलना आसान नहीं रह जाएगा। पढ़ाई की गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही पूरा ढांचा भी बदल जाएगा।