माहे रमजान के चार नाम
हजरत मुफ्ती अहमद यार खान तफसीरे नईमी में फरमाते हैं कि इस माह मुबारक के कुल चार नाम हैं। रमजान, माहे
हजरत मुफ्ती अहमद यार खान तफसीरे नईमी में फरमाते हैं कि इस माह मुबारक के कुल चार नाम हैं। रमजान, माहे सब्र, माहे मुआसात, माहे वुसअते रिज्क। मजीद फरमाते हैं, रोजा सब्र है जिसकी जजा रब है और वो इसी महीने में रखा जाता है। इसलिए इसे माहे सब्र कहते हैं। मुआसात के माने है भलाई करना। चूंकि इस महीने में सारे मुसलमानों से खास कर अहले कराबत से भलाई करना ज्यादा सवाब है। इसलिए इसे माहे मुआसात कहते हैं। इस माह में रिज्क की फराखी भी होती है कि गरीब भी नेमत खा लेते हैं, इसलिए इसका नाम माहे वुसवते रिज्क भी है। उन्होंने रमजान के तेरह फजाइल बयान फरमाया है।
रमजान में न सिर्फ बंदों पर रोजे फर्ज किए गए हैं, बल्कि अल्लाह पाक ने सारी आसमानी किताबें रमजान के महीने में उतारीं। कुरआन पाक इसी माह में नाजिल हुआ जो 23 साल में थोड़ा-थोड़ा कर मुकम्मल हुआ इसलिए इस महीने में कुरआन को पढ़ना बेहद सबाब माना जाता है। कुरआन का बंदों पर हक है कि मुसलमान साल में एक बार कुरआन जरूर मुकम्मल पढे़ं। तरावीह की नमाज में एक कुरआन मुकम्मल किया जाता है। इस महीने में हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर सहीफे 3 तारीख को उतारे गए। हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम को जबूर आसमानी किताब 18 या 21 रमजान को मिली और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को तौरेत 6 रमजान को मिली। हजरत ईसा अलैहिस्सलाम को इंजील 12 रमजान को मिली। इस माह में कुरआन शरीफ भी उतारी गयी। हजरत जिब्राईल अलैहिस्सलाम हर साल रमजान में आते और नबी-ए-करीम को कुरआन सुनाते और हमारे नबी-ए-करीम उनको कुरआन सुनाते थे।
-मुफ्ती अख्तर हुसैन, मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया, दीवान बाजार
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