जब पहली बार गोरखपुर आए थे नेहरू
गोरखपुर: पांच फरवरी 1922। चौरीचौरा कांड के बाद फिरंगी हुकूमत पूरी तरह दमन पर आमादा थी। चूंकि इसमे
गोरखपुर:
पांच फरवरी 1922। चौरीचौरा कांड के बाद फिरंगी हुकूमत पूरी तरह दमन पर आमादा थी। चूंकि इसमें भाग लेने वाले अधिकांश स्थानीय किसान ही थे, लिहाजा निशाने पर भी यही थे। अंग्रेजों के कुछ वफादार जमींदार भी इस जुल्म में साझीदार हो गए। यूनाइटेड प्राविंस कांग्रेस कमेटी की बुलेटिन नंबर 21 के अनुसार कांग्रेस के वालंटियर बेवजह गिरफ्तार कर बुरी तरह पीटे जाते थे। इसी माहौल में जुलाई 1934 को हृदयनाथ कुंजरू और जून 1935 में रफी अहमद किदवई गोरखपुर आए। अपनी सभाओं में इन लोगों ने अंग्रेजों के दमन पर करारा प्रहार किया।
13 अगस्त 1936 को जवाहर लाल नेहरू पहली बार गोरखपुर आए। (उप्र डिस्ट्रिक गजेटियर पेज नंबर-44) उन्होंने यहां किसानों की एक सभा को संबोधित किया। सभा में करीब 5 हजार लोग आए थे। इसके बाद लोगों में आत्मविश्वास का नया संचार हुआ। गवर्नमेंट आफ इंडिया एक्ट के विरोध में 1 अप्रैल 1937 का हड़ताल/प्रदर्शन ऐतिहासिक था। इसमें करीब 10 हजार लोग शामिल हुए थे। लोगों में आजादी की अलख जागती रहे इसके लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं का यहां आना-जाना जारी रहा।
1940 में लालडिग्गी में हुई नेहरूजी की सभा ऐतिहासिक रही। इसमें दिए गए भाषण को अंग्रेजों ने राजद्रोह माना और उनको गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। उनके गोरखपुर के बैरिस्टर शाकिर अली, बैरिस्टर इस्माइल खां और एडवोकेट गौरीशंकर मिश्र, फिराक गोरखपुरी आदि से निजी रिश्ते थे। उस जमाने के लोगों को नेहरू और इन लोगों से जुड़े तमाम संस्मरण आज भी याद हैं। कुछ तो प्रकाशित भी हुए हैं। आजादी के बाद गोरखपुर की यात्रा के दौरान उन्होने लालडिग्गी पार्क का नाम जस्टिस इस्माइल के नाम पर रख दिया। वीरबहादुर सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में इसका नाम जवाहरलाल नेहरू के नाम पर कर दिया गया।
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जब सरकारी वकील
को डपट दिया
जेल में बंद नेहरू का ट्रायल चल रहा था। बैरिस्टर इस्माल खां निजी रिश्तों के आधार पर सरकार की ओर से पैरवी करने से मना कर चुके थे। खान बहादुर मोहम्मद जकी ने बतौर सरकारी वकील सबूत के रूप में गवाह पेश कर रहे थे। इस पर नेहरू ने कहा, आप कैसे वकील हैं, जब मैं अपना जुर्म कबूल कर रहा हूं तो इन तमाम गवाहों की क्या जरूरत।
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ट्रायल में नेहरू का लिखित बयान
'मुझे खुशी है कि मेरे ऊपर गोरखपुर में मुकदमा चलाया जा रहा है। गोरखपुर के किसान मेरे प्रांत (उत्तर प्रदेश) में सबसे अधिक पीड़ित एवं प्रताड़ित रहे हैं। यह 150 वर्षो के ब्रिटिश शासन का नतीजा है। उनकी दरिद्रता, कष्ट, पीड़ा शक्तिशाली ब्रिटिश शासन के निंदनीय अपराध का सबूत है'।
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