खतरनाक हो सकता है पैर की नसों में ब्लाकेज
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
पैर की नसों में खून का थक्का जमने से हुआ ब्लाकेज बेहद खतरनाक हो सकता है। कई बार यह थक्का टूट कर फेफड़े की नली में रुकावट पैदा कर देता है जो मरीज के लिए जानलेवा हो जाता है। पैर की नसों में ऐसी स्थिति न हो इसके लिए बचाव जरूरी है।
बीआरडी मेडिकल कालेज में शनिवार को आयोजित कार्यशाला में यह बातें नई दिल्ली स्थित मेदान्ता हास्पिटल के वैस्कुलर सर्जरी के विभागाध्यक्ष डा. राजीव पारीख ने कहीं। उन्होंने बताया कि पैरों की नसों में खून के थक्के जमने की शिकायत ज्यादातर उन मरीजों को होती है जो बीमारी की वजह से बेड पर लंबे समय तक पड़े रहते हैं। इसमें आइसीयू में भर्ती मरीज, हड्डी टूटने के बाद भर्ती मरीज, लकवा, अत्यधिक मोटापे से पीड़ित लोग आदि होते हैं। कई बार शारीरिक रूप से निष्क्रिय ऐसे लोगों में भी यह मामला देखा जाता है जो मधुमेह, उच्च रक्तचाप से पीड़ित होते हैं और धूम्रपान अधिक करते हैं। ऐसे मरीजों की पैर की नसों में रक्त का थक्का बन जाता है। जब यह टूटता है तब खतरा पैदा करता है। इसका कोई हिस्सा जब फेफडे़ में पहुंचता तो समस्या पैदा होती है।
गंभीर यह है कि यह शुरुआत में आसानी से पकड़ में नहीं आता, लक्षण तभी सामने आते हैं जब थक्का बढ़ने से पैर में अधिक सूजन हो जाती है। हालांकि कुछ जांचें हैं जिनसे यह शुरुआती अवस्था में पहचाना जा सकता है, लेकिन अभी ऐसी जांच पूर्वाचल में नहीं है। अल्ट्रासाउंड से भी यह पहचाना जा सकता है पर थक्का का आकार बढ़ जाने के बाद, देर हो जाती है। यहां नसों में दवा डालकर सीटी या एमआरआइ की जाती है, लेकिन इस क्षेत्र में अभी इसका प्रचलन कम है। ऐसे में इस तरह के मरीजों को शुरू से ही दवाएं दी जानी चाहिए। यह बात भी उठी कि चिकित्सक कई बार थक्का न जमने वाली या इसे खत्म करने वाली दवाएं देने से हिचकते हैं क्योंकि इससे आंतरिक रक्तस्राव का खतरा होता है। लेकिन यह सलाह दी गई कि चिकित्सक यह दवाएं जरूर दें, साथ ही मरीज की जांच भी कराते रहें।
बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. केपी कुशवाहा ने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया में आए हुए ऐसे की एक मामले की चर्चा की जिसमें चिकित्सक पर लापरवाही का आरोप लगाया गया था। मेडिकल कालेज के एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष व प्रोफेसर डा. सतीश कुमार ने कहा कि जितना हम इस समस्या के बारे में जानते हैं, इससे पीड़ितों की संख्या कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि यह हार्ट अटैक व स्ट्रोक के बाद तीसरा बड़ा खतरा बना हुआ है।
सत्र के चेयर पर्सन एनेस्थीसिया के विभागाध्यक्ष डा. सतीश कुमार, मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. महिम मित्तल, आर्थो के विभागाध्यक्ष डा. पवन प्रधान थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।