प्रति एकड़ 35 कुंतल तक उपज संभव
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
उन्नत खेती के जरिए किसान प्रति एकड़ करीब 35-40 कुंतल धान की उपज ले सकते हैं। शर्त यह है कि इसके लिए किसान समय से बेहन डालें और रोपाई करें। कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन्नतशील प्रजातियों का चयन, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग और फसल का रोगों व कीटों से समय से नियंत्रण भी जरूरी है।
उप निदेशक कृषि जयप्रकाश के अनुसार समय से रोपाई के लिए हर हाल में जून के पहले हफ्ते तक धान की बेहन डाल दें। तीन-चार हफ्ते बाद इसकी रोपाई करें।
जिला कृषि अधिकारी मृत्युंजय सिंह के अनुसार बेहतर उपज के लिए प्रमुख उन्नत प्रजातियां हैं प्रो.एग्रो की 6111 जो करीब चार महीने में तैयार हो जाती हैं। इनकी औसत उपज 36-38 कुंतल प्रति एकड़ है। पी.एच.बी.-71 व प्रो.एग्रो-6201 की औसत उपज करीब 34 से 36 कुंतल है। पंत शंकर-1,नरेंद्र-2,प्रो.एग्रो-6444,पी.आर.एच.-10,के.आर.एच.-2 की औसत उपज करीब 26-28 कुंतल एकड़ है। सांभा व विश्वनाथ प्रजातियां करीब 120 दिन में तैयार हो जाती हैं। इनकी भी औसत उपज करीब 35 कुंतल है। एराइज-6444 सबसे अधिक उत्पादन वाली प्रजाति है। इसकी औसत उपज करीब 40 कुंतल है। डीआरएच-775, यूएस-312, पीएच-71, आदि कुछ अन्य उन्नत प्रजातियां हैं।
एक एकड़ खेत में शंकर धान का करीब 8 किग्रा बीज लगता है। गर्मी में एक गहरी जुताई और दो-तीन सामान्य जुताई के बाद खेत बुआई के लिए तैयार हो जाता है।
उर्वरकों का प्रयोग
गोरखपुर : बेहतर उपज के लिए उर्वरकों का प्रयोग मृदापरीक्षण के अनुसार करें। मृदापरीक्षण न होने की दशा में रोपाई के पूर्व खेत की अंतिम जुताई के समय एक एकड़ खेत में यूरिया, डाई और पोटाश की मात्रा क्रमश: 30, 65 और 40 किग्रा की दर से डालकर उसे खेत में भली प्रकार मिला लें। कल्ले निकलते समय नमी रहते हुए 40 किग्रा यूरिया और 10 किग्रा जिंक सल्फेट का और बाली आते समय 35 किग्रा यूरिया का प्रयोग करें।
रोपाई और उसके बाद यह रखें ध्यान
गोरखपुर : रोपाई के समय एक जगह धान के एक से दो पौधों की ही रोपाई करें। एक वर्ग मीटर में करीब 45-50 पूंजे लगाएं। बेहतर उपज के लिए खेत में पर्याप्त नमी के साथ खरपतवारों, रोगों व कीटों का सामयिक नियंत्रण जरूरी है। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए रोपाई के हफ्ते भर के भीतर ब्यूटाक्लोर की संस्तुत मात्रा का प्रयोग करें। इसके अलावा समय-समय पर निराई-गुड़ाई भी करें। यूं तो खेत में हरदम नमी बनी रहनी चाहिए, पर फसल में फूल व बालियां आते समय सिंचाई जरूर करें।
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