ब्रह्मा मुहूर्त में होगी गुरु गोरक्षनाथ की विशेष पूजा
जागरण संवाददाता, गोरखपुर : मकर संक्रांति 15 जनवरी को है। गुरु गोरक्षनाथ मंदिर में बाबा गोरखनाथ को इस दिन श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाकर अपनी आस्था व श्रद्धा निवेदित करेंगे। ब्रह्मा मुहूर्त में तीन बजे गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ व पीठ के उत्तराधिकारीयोगी आदित्यनाथ द्वारा भगवान गोरखनाथ का विशेष पूजा-अर्चना किया जाएगा तथा मंदिर की तरफ से बाबा को खिचड़ी अर्पित की जाएगी। इसके बाद नेपाल राज परिवार से आई खिचड़ी चढ़ाई जाएगी। वहां से खिचड़ी के रूप में रोट (विशेष तरह की मिठाई) मंदिर में राजपरिवार के मुख्य पुरोहित लेकर आ चुके हैं। यदि राजपरिवार के प्रतिनिधि आएंगे तो योगी आदित्यनाथ राजपरिवार से आई खिचड़ी चढ़ाएंगे। सोमवार को मंदिर में दिल्ली, पश्चिम बंगाल, बिहार व नेपाल से लगभग सात हजार श्रद्धालु पहुंचे। उनके ठहरने की व्यवस्था मंदिर प्रशासन ने निश्शुल्क की है। पूरा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भरा है।
गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा
गोरखपुर : गोरखनाथ मंदिर में गुरु गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। मान्यता के अनुसार त्रेता युग में अवतारी व सिद्ध गुरु गोरक्षनाथ भिक्षाटन करते हुए हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर गए। यहां देवी साक्षात प्रकट हुईं और गुरु गोरक्षनाथ को भोजन के लिए आमंत्रित किया। आयोजन स्थल पर तामसी भोजन देखकर गोरक्षनाथ ने कहा मैं तो भिक्षाटन कर उससे मिले चावल-दाल को ग्रहण करता हूं। इस पर ज्वाला देवी ने कहा कि मैं गरम करने के लिए पानी चढ़ाती हूं। आप भिक्षाटन कर पकाने के लिए चावल-दाल लाइए।
गुरुगोरक्षनाथ वहां से भिक्षाटन करते हुए गोरखपुर आए। यहां उन्होंने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक मनोरम जगह देखकर अपना अक्षय भिक्षापात्र रखा और साधना में लीन हो गए। इस बीच खिचड़ी का पर्व आया। एक तेजस्वी योगी को साधनारत देख लोग उसके भिक्षापात्र में चावल-दाल डालने लगे, पर वह अक्षय पात्र भरने से रहा। इसे सिद्ध योगी का चमत्कार मानकर लोग अभिभूत और नतमस्तक हो गए। उसी समय से गोरखपुर में गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। इस दिन हर साल नेपाल-बिहार व पूर्वाचल के दूरदराज इलाकों से श्रद्धालु यहां खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। इसके पूर्व वे मंदिर परिसर स्थित पवित्र भीम सरोवर में स्नान करते हैं। यहां खिचड़ी मेला करीब एक माह तक चलता है। इस दौरान पड़ने वाले हर रविवार और मंगलवार का खास महत्व है। इन दिनों यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
मकर संक्रांति में पूजा विधान
ज्योतिषाचार्य पं. शरदचंद्र मिश्र ने कहा कि धर्मशास्त्रों के अनुसार जिस दिन संक्रांति हो उस दिन संकल्प पूर्वक वेदी या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर अक्षतों का अष्टदल बनाकर और उसमें स्वर्णमय सूर्य भगवान की मूर्ति स्थापित कर उनका पंचोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान, दाल, चावल और काले तिल का दान बड़ा पुण्य प्रदायी कहा गया है। शास्त्रों में मकर संक्रांति में काष्ठ और वस्त्र के विशेष दान का भी विधान है। कदाचित ठंड अधिक होने के नाते इनके दान को महत्वपूर्ण माना गया है। संक्रांति काल के दिन समुद्र, गंगासागर, काशी और तीर्थराज प्रयाग में स्नान का विशेष महत्व है, किंतु जो इन तीर्थो में किसी कारण से नहीं जा सकते, वे गंगा आदि सात पवित्र नदियों का स्मरण कर किसी भी नदी या सरोवर में विधिवत स्नान कर सकते हैं, इससे उनको तीर्थस्नान का फल तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
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