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    28 साल का संघर्ष! इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पलटा SDM का आदेश, असली मालिक को मिली 7 एकड़ जमीन

    Updated: Sun, 21 Dec 2025 03:06 PM (IST)

    गोंडा में, फर्जी समझौते और लोक अदालत में निर्णय के नाम पर हड़पी गई जमीन के मामले में 28 साल बाद सफीउद्दीन खान को न्याय मिला। हाई कोर्ट ने एसडीएम और अप ...और पढ़ें

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    तेज प्रताप सिंह, गोंडा। फर्जी समझौता और लोक अदालत में निर्णय के नाम पर हड़पी गई जमीन के मामले में 28 साल बाद वास्तविक हकदार भूस्वामी को न्याय मिला है।

    हाई कोर्ट ने एसडीएम और अपर आयुक्त का आदेश निरस्त कर दिया है। धोखाधड़ी और जालसाजी से हड़पी गई सात एकड़ जमीन अब भूस्वामी को वापस मिल जाएगी।

    अविभाजित गोंडा जिले (अब बलरामपुर) के तहसील तुलसीपुर के ग्राम शीतलापुर के रहने वाले फर्जुलरहमान, उनके भाई महफुजुर्हमान ने उपजिलाधिकारी तुलसीपुर के न्यायालय में घोषणाधिकार वाद दायर कर किया।

    इसमें कहा कि ग्राम शीतलापुर में स्थित जमीन गाटा संख्या-131/7.09 एकड़ को उनके पिता ने खरीदा था। उस समय वह नाबालिग थे इसलिए जमीन चाचा मोहम्मद अमीन खां निवासी ग्वालियर ग्रिंट तहसील उतरौला और बहन नसरीन बानो निवासी स्टेशन रोड तुलसीपुर के नाम क्रय किया गया था।

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    वर्तमान में जमीन पर उनका ही कब्जा है। 16 मार्च 1997 को तत्कालीन उपजिलाधिकारी केके दीक्षित ने दावा स्वीकार करते हुए फर्जुलरहमान, उनके भाई महफुजुर्हमान के पक्ष में फैसला सुनाया। भूस्वामी मोहम्मद अमीन खां को जानकारी हुई तो उन्होंने एसडीएम न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया।

    अमीन खां ने कहा कि मुकदमे में उनकी ओर से न तो कोई जवाब दावा दाखिल किया गया है और न ही अदालत में कोई बयान दिया है।

    उनकी दलील बेअसर रही और एसडीएम छोटेलाल पासी ने दो दिसंबर 1998 को प्रार्थना पत्र यह कहकर खारिज कर दिया कि प्रार्थना पत्र देने वाले स्वयं वादी का वाद स्वीकार कर चुके हैं और मामला सुलह समझौता के आधार पर लोक अदालत में निर्णीत हुआ है।

    अमीन ने देवीपाटन मंडल के आयुक्त के न्यायालय में निगरानी व अपील दाखिल किया। वाद विचाराधीन होने के दौरान मोहम्मद अमीन खां की मृत्यु होने पर उनके दामाद और वसीयतनामा के आधार पर विधिक वारिस सफीउद्दीन खान को प्रतिस्थापित किया गया।

    30 मार्च 2000 को तत्कालीन अपर आयुक्त डीएस नाथ ने निगरानी और अपील निरस्त कर दी। इसी मामले में सफीउद्दीन की ओर से आयुक्त न्यायालय में दाखिल अपील भी निरस्त हो गई तो उन्होंने हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में रिटयाचिका दायर किया।

    गुरुवार को सुनवाई के दौरान मुकदमे के तथ्य, साक्ष्य और परिस्थितियों पर विचार करते हुए न्यायमूर्ति इरशाद अली ने कहा कि धोखाधड़ी के आरोप का बिना परीक्षण के ही प्रार्थना पत्र खारिज किया जाना विधि सम्मत नहीं है।

    अपीलीय न्यायालय ने भी तकनीकी आधार पर मनमाना आदेश पारित किया। कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए 16 मार्च 1997, दो दिसंबर 1998 को एसडीएम और 30 मार्च 2000 को पारित अपर आयुक्त का आदेश निरस्त कर दिया।