दादी मां के बटुआ से सिर्फ एक रुपये में इलाज! यूपी के इस जिले में 80 गांव के ग्रामीणों को मिल रहा लाभ
गोंडा में भारत रत्न नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित 'दादी मां का बटुआ' केंद्र, गरीबों को सस्ता प्राथमिक उपचार दे रहा है। यहाँ 26 प्रकार की औषधियां उपलब्ध हैं, और मरीजों से एक दिन की दवा के लिए केवल एक रुपया लिया जाता है। केंद्र औषधियों की पहचान कराता है और हर्बल गार्डन के लिए प्रेरित करता है। 1989 में स्थापित आरोग्य धाम में 15 हजार से अधिक मरीजों को स्वस्थ किया गया है।
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वरुण यादव, गोंडा। परंपरागत रूप से पहले दादी-नानी औषधीय थैली रखती थीं, जिसमें दवाइयों के साथ ही चूर्ण भी रहते थे। वे इनका उपयोग छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए करती थीं। ये उपचार अनुभव से विकसित होते थे। वक्त के साथ ये थैलियां जब गुम होने लगीं तो थोड़ी सी दिक्कत होने पर ऐलौपैथिक दवाओं पर लोगों की निर्भरता बढ़ने लगी।
प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के साथ ही गरीबों को सस्ता प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने के लिए भारत रत्न नानाजी देशमुख ने ढाई दशक पूर्व दादी मां का बटुआ केंद्र का संचालन शुरू किया था। पहले चरण में पांच केंद्रों का संचालन शुरू किया गया था, जो अब बढ़कर 16 केंद्र हो गया है।
केंद्र के कार्यकर्ता को औषधियों के पहचान व बीमारियों में उपयोग के बारे में जानकारी दी जाती है। दादी मां के बटुआ में 26 प्रकार की औषधियां रहती हैं, जिसमें कई प्रकार के पूर्ण, संजीवन वटी, शूलहर तेल के साथ ही अन्य औषधियां रहती हैं। केंद्र पर आने वाले मरीजों से एक दिन की दवा के लिए सिर्फ एक रुपये लिए जाते हैं। कार्यकर्ता उन्हें न सिर्फ दवा देते हैं बल्कि, औषधियों की पहचान कराने के साथ ही हर्बल की गार्डेन की स्थापना के लिए प्रेरित करते हैं। दादी मां के बटुआ केंद्र से 80 गांव जोड़े गए हैं।
1989 में हुई थी आरोग्यधाम की स्थापना
जयप्रभाग्राम में ग्रामोदय प्रकल्प शुरू किया गया था, इसके लिए 1989 में रामनाथ आरोग्य धाम के नाम से औषधालय की स्थापना हुई थी। इस औषधालय में अब तक 15 हजार से अधिक मरीजों को स्वस्थ बनाया जा चुका है। यहां संचालित रस शाला (जड़ी बूटियों की कुटाई कर दवा बनाने वाला कारखाना) जिला ही नहीं प्रदेश में विख्यात है।
यहां विभिन्न जड़ी-बूटियों से करीब 150 प्रकार की औषधियां बनाई जाती हैं। यहां औषधि उद्यान भी है जिसमें करीब 100 प्रकार की औषधियों की नर्सरी है। क्षेत्र के गांवों में औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देकर वहां उत्पादित औषधीय पौधे खरीद लिए जाते हैं। इस ग्राम में स्थापित मातृ शिशु कल्याण केंद्र में विगत कई वर्षो से आसपास के दर्जनों गांवों में रहने वाले शिशुओं के स्वास्थ्य की रक्षा की जाती है जिससे उनकी भावी पीढ़ी को निरोग बनाया जा सके।
कैसे बनती हैं जड़ी-बूटियां
जयप्रभा गांव के वैद्य नंदू प्रसाद बताते हैं कि हमारे यहां अधिकतर जड़ी-बूटियां खुद उगाई जाती हैं, जो जड़ी-बूटियां यहां नहीं मिलतीं, उन्हें बाहर से मंगाकर अपने हाथों से तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि यहां किसी भी तरह की मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता। सारी जड़ी-बूटियां हाथ से बनाई जाती हैं। लंबे समय की मेहनत और कई तरह की प्रोसेस के बाद एक जड़ी-बूटी तैयार होती है।
किस औषधि का किस बीमारी में होता है प्रयोग
भूख न लगने पर चित्रकादि वटी, बुखार में संजीवनी वटी, शरीर व जोड़ों के दर्द में सोलहर वटी, अतिअम्लता में लघुशुत शेखर वटी, चोट दर्द में त्रिफला वटी, खांसी में लवंगदी वटी पेचिश, दस्त में कुटजवटी, मानसिक टानिक के लिए शंख पुष्पी चूर्ण, सामान्य टानिक में शक्ति चूर्ण, खांसी मे कफनाशक चूर्ण, गैस में पाचन चूर्ण, कब्ज में त्रिफला चूर्ण बाल रोगों के लिए बाल रोग नाशक चूर्ण, मांस पेशियों में दर्द -शूल हर तेल, त्वचा रोग में आकर्षक रोग नाशक तेल, कान की बीमारी में बिल्व तेल का उपयोग किया जाता है।
भारत रत्न नानाजी देशमुख ने दादी मां का बटुआ केंद्र संचालित किया था। पहले पांच केंद्र थे, जो अब 16 हो गए हैं। रुपईडीह व इटियाथोक के 80 गांव केंद्र से जोड़े गए हैं। केंद्र पर आने वाले मरीजों से एक दिन की दवा एक रुपये लिए जाते हैं।
- रामकृष्ण तिवारी, प्रकल्प प्रभारी दीनदयाल शोध संस्थान ग्रामोदय प्रकल्प गोंडा

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