गोंडा में जवान हुई थी जिगर की शायरी
गोंडा: कम ही लोग जानते होंगे कि उर्फियत में मुरादाबादी लिखने वाले प्रख्यात शायर जिगर 6 अप्रैल, 1890
गोंडा: कम ही लोग जानते होंगे कि उर्फियत में मुरादाबादी लिखने वाले प्रख्यात शायर जिगर 6 अप्रैल, 1890 में बनारस में जन्मे थे और उनकी शायरी गोंडा में जवान हुई। हालांकि गोंडा उनके नाम से नहीं जुड़ा है लेकिन, उनके नाम पर बसा मुहल्ला व दूसरी यादें आज भी उनकी निशानी हैं। जिगर मुरादाबादी चश्मे के कारोबार के सिलसिले में मुरादाबाद से गोंडा आ गए। यहां पर उन्होंने शायरी शुरू कर दी। शायरी का ऐसा जादू चढ़ा कि दागे जिगर, अतिशेगुल सहित उनकी अन्य रचनाएं लोगों की जुबां पर छा गयीं। वर्ष 1960 में 9 सितंबर को उनका निधन हो गया। यहां उनकी समाधि होने के साथ ही स्मृति के रूप में जिगरगंज मोहल्ला व जिगर मेमोरियल इंटर कॉलेज भी है।
जिगर मुरादाबादी की रचनाओं ने न सिर्फ गोंडा की ही शान बढ़ाई, बल्कि गंगा-जमुनी तहजीब को भी आगे बढ़ाने का काम किया है। आज भी दुनिया को मुहब्बत का पैगाम देने वाला उनका शेर लोगों की जुबां पर है। जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका जो फर्ज है वह अहले सियासत जाने, मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे। उनकी रचनाओं में असगर गोंडवी का सूफियाना अंदाज झलकता है। गोंडा को कर्मभूमि बनाने वाले जिगर दुनिया को बड़ी बारीकी से देखते थे। तभी तो वह कहते हैं कि आदमी आदमी से मिलता है दिल मगर कम किसी से मिलता है। ¨जदगी को उन्होंने अपने तरीके से जिया। जिसका जिक्र उनकी रचना में कुछ यूं दिखा, गुलशन परस्त हूं मुझे गुल ही नहीं अजीज, कांटों से भी निबाह किए जा रहा हूं मैं।

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