कुश्ती लड़ सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे शहीद श्याम नारायण यादव
गाजीपुर मुझे ना तन चाहिए ना धन चाहिए बस अमन से भरा यह वतन चाहिए जब तक जिन्दा रहूं इस मातृ-भूमि के लिए और जब मरुं तो तिरंगा कफन चाहिए..। ...और पढ़ें

अविनाश सिंह
------ जासं, गाजीपुर : 'मुझे ना तन चाहिए ना धन चाहिए, बस अमन से भरा यह वतन चाहिए, जब तक जिदा रहूं इस मातृभूमि के लिए और जब मरूं तो तिरंगा कफन चाहिए..'। देश भक्ति का यह शेर शहीद श्यामनारायण यादव के जीवन पर सटीक बैठता है। श्याम नारायण अपने छात्र जीवन में ही शामा पहलवान के नाम काफी चर्चित हो गए थे। अपनी कुश्ती के दम पर ही देश सेवा के जज्बे के साथ 1991 में सीआरपीएफ के 92 बटालियन में भर्ती हुए। आतंकियों के मंसूबों को नाकामयाब करते हुए अपनी जान देश के लिए न्योछावर कर दिया।
शहीद श्याम नारायण यादव का बचपन से ही कुश्ती के प्रति काफी लगाव था। अपने गांव हसनपुरा सटे जरगो में प्रतिदिन कुश्ती लड़ने जाते थे। जंगीपुर स्थित श्री शिवकुमार शास्त्री इंटर कालेज में पढ़ाई के समय वह स्कूल से देश स्तर तक कुश्ती दंगल में भाग ले चुके हैं। वह अपनी कड़ी मेहनत और बेहतरीन दांव लगाकर करीब 50 से अधिक कुश्ती दंगल जीत चुके हैं। अगल-बगल के गांव में आयोजित प्रत्येक दंगल प्रतियोगिता में वह अवश्य शामिल होते थे। अपने बेहतरीन कौशल से क्षेत्र में शामा पहलवान के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। उनके साथी व मुंहबोले भाई पहलवान रमेश सिंह यादव ने बताया कि शामा के अंदर देशसेवा की काफी ललक थी। उसे पता चला कि सीआरपीएफ में पहलवानों का ट्रायल होने वाला है तो उन्होंने उसमें भाग लिया। यहां उन्होंने उन्होंने बेहतरीन दांव दिखाया और कुश्ती के दम पर ही सीआरपीएफ में भर्ती हो गए। इसके बाद भी कुश्ती से उनका लगाव कम नहीं हुआ। वह प्रत्येक साल नागपंचमी के दिन अपने घर अवश्य आते थे और नागपंचमी के अगले दिन अपने गांव के अखाड़े पर दंगल कराते थे। इतना ही नहीं, वह एक अच्छे मार्गदर्शक व समाजसेवक भी थे। अपने बचपन के साथी शामा दास्तां सुनाते-सुनाते रमेश काफी भावुक हो गए और उनकी आंखे भर आईं। कहा कि श्यामनारायण की शहादत पर आज पूरा क्षेत्र गम में है। हर कोई उनके देश सेवा के जज्बे को सलाम कर रहा है।

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