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    SIR in UP: मां की चिता जलाने के बाद एसआईआर की ड्यूटी में जुट गए बीएलओ, तेरहवीं की भी बदल दी तारीख

    Updated: Fri, 28 Nov 2025 09:59 PM (IST)

     व्यक्तिगत शोक पर कर्तव्य को तरजीह देने का दुर्लभ उदाहरण सैदपुर विधानसभा के भाग संख्या 222 के बीएलओ लालधर सहाय ने पेश किया है। 22 नवंबर को उनकी 70 वर्षीय माता धनवती सहाय का बीमारी के चलते निधन हो गया। 23 नवंबर को दाह संस्कार संपन्न हुआ। परिवार पर दुख का पहाड़ टूटने के बावजूद शिक्षक लालधर सहाय ने लोकतंत्र के प्रति अपने दायित्व को सर्वोपरी रखते हुए वह फैसला लिया, जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हो रही है।

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    जागरण संवाददाता, सैदपुर (गाजीपुर)। व्यक्तिगत शोक पर कर्तव्य को तरजीह देने का दुर्लभ उदाहरण सैदपुर विधानसभा के भाग संख्या 222 के बीएलओ लालधर सहाय ने पेश किया है। 22 नवंबर को उनकी 70 वर्षीय माता धनवती सहाय का बीमारी के चलते निधन हो गया। 23 नवंबर को दाह संस्कार संपन्न हुआ। परिवार पर दुख का पहाड़ टूटने के बावजूद शिक्षक लालधर सहाय ने लोकतंत्र के प्रति अपने दायित्व को सर्वोपरी रखते हुए वह फैसला लिया, जिसकी चर्चा पूरे क्षेत्र में हो रही है। उन्होंने अपनी मां की तेरहवीं संस्कार की तिथि टाल दी। पांच को होने वाली तेरहवीं अब 13 दिसंबर को होगी।

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    मूल रूप से बहरियाबाद निवासी और परिषदीय विद्यालय रफीकपुर में शिक्षक लालधर सहाय परिवार संग सैदपुर में मकान बनवाकर रहते हैं, जबकि उनकी मां बड़े बेटे लालचंद के साथ गांव में रहती थीं। 22 नवंबर को बीमारी के चलते मां का निधन हो गया। जानकारी होने पर लालधर गांव पहुंचे और अगले दिन दाह संस्कार में शामिल हुए। दाह संस्कार के बाद घर लौटे और तुरंत ड्यूटी के लिए रवाना हो गए।

    तेरहवीं पांच दिसंबर पड़ी तो असमंजस में आ गए। हालांकि कर्तव्य और कर्मकांड के बीच उन्होंने लोकतंत्र की जिम्मेदारी को प्राथमिकता देते हुए तेरहवीं 5 दिसंबर से बढ़ाकर 13 दिसंबर कर दी। परिवार में शोक का माहौल है। दाह संस्कार में मुखाग्नि बड़े भाई लालचंद ने दी है। जबकि छोटे बेटे लालधर सहाय ने चिता की आग ठंडी होने से पहले ही ड्यूटी पर लौटकर अपनी निष्ठा का परिचय दिया।

    लालधर सहाय का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया में लगे हर कार्मिक का समय पर मौजूद रहना जनता के अधिकार और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए बेहद जरूरी है। इसी कारण उन्होंने अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियों को पीछे रख दिया। उनका यह निर्णय न केवल मार्मिक है बल्कि चुनावी ड्यूटी में लगे अन्य कर्मचारियों के लिए प्रेरणादायी भी है।