गाजीपुर में अपने पुरखों के गांव ककरही पहुंचे दक्षिण अफ्रीका के राजदूत
दक्षिण अफ्रीका के राजदूत अनिल सुकलाल गाजीपुर के ककरही गांव में अपनी जड़ों की तलाश में पहुंचे। उनके पूर्वज रामलखन यादव 160 साल पहले मजदूरी के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि कैसे अंग्रेजों के अत्याचार के कारण पलायन हुआ। सुकलाल ने ग्राम देवता 'डीह बाबा' के चबूतरे पर माथा टेककर अपनी पैतृक भूमि को सम्मान दिया।

सात समंदर पार बसे एक वंशज को अपनी जड़ों की तलाश में नारायणपुर ककरही तक खींच लाया।
जागरण संवाददाता, गाजीपुर। रिश्तों की जड़ों में मिट्टी की खुशबू होती है, वही खुशबू जिसने सात समंदर पार बसे एक वंशज को अपनी जड़ों की तलाश में नारायणपुर ककरही तक खींच लाया।
रविवार की शाम जब दक्षिण अफ्रीका के राजदूत प्रोफेसर अनिल सुकलाल अपनी पत्नी के साथ सैदपुर ब्लाक के छोटे से गांव ककरही पहुंचे, तो यह महज एक आगमन नहीं था, बल्कि इतिहास के लंबे सन्नाटे में दबी एक आवाज की गूंज थी।
गांव के बुजुर्ग 87 वर्षीय रामशरण यादव जब राजदूत के पुरखों की कहानी सुन रहे थे, तो उनके शब्दों में बीते दौर का दर्द झलक उठा। रामशरण ने बताया कि अंग्रेजों के अत्याचार के दौर में यह इलाका भी ‘काला पानी’ की यातना से अछूता नहीं था।
जबरन मजदूरी के लिए लोगों को समुद्र पार भेजा जाता था। कई परिवार तब गांव छोड़कर औड़िहार, पटना, लेदिहां और शेरपुर जैसे इलाकों में जा बसे। उन्हीं में से एक रामलखन यादव थे, जो करीब 160 वर्ष पहले मजदूरी के लिए दक्षिण अफ्रीका ले जाए गए।
वहां उन्होंने अपनी मेहनत से एक नई पहचान बनाई। उनके वंश आज प्रोफेसर सुकलाल के रूप में अपने पुरखों के गांव ककरही लौटे। ग्राम देवता ‘डीह बाबा’ के चबूतरे पर माथा टेकते हुए मिट्टी से भरे डिब्बे को चूमा और कहा कि हमने अपनों का गांव ढूंढ लिया।

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