Ghazipur News: गंगा नदी में तैरता पत्थर देख विज्ञानी भी हैरान, लोगों ने शुरू की पूजा; देखने वालों की लग रही भीड़
गाजीपुर के ददरीघाट पर गंगा नदी में एक क्विंटल से अधिक वजन का पत्थर तैरता हुआ मिला जिसने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया है। पत्थर को रस्सी से बांधकर किनारे पर लगाया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार आमतौर पर ज्वालामुखी से निकलने वाला प्यूमिस पत्थर ही पानी में तैरता है लेकिन इस पत्थर की उत्पत्ति और यहां तक पहुंचने के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं।

जागरण संवाददाता, गाजीपुर। शहर के ददरीघाट पर गंगा में आई बाढ़ के पानी के साथ शुक्रवार को करीब एक क्विंटल से अधिक वजन का पत्थर बहता देखा गया। पत्थर बहकर आगे न चला जाए, इसके लिए इसे ददरीघाट पर रस्सी से बांध दिया गया है। यह पत्थर पानी में तो तैर रहा है, लेकिन उठाने में वजनी है।
वैसे देखने में यह पत्थर चट्टा का टुकड़ा नहीं सीमेंटेंड जैसा है। पानी में पत्थर को तैरता देख विज्ञानी भी हैरान हैं, क्योंकि ज्वालामुखी के बाद बनने वाला प्यूमिस पत्थर ही पानी में तैरता है। वैसे ज्वालामुखी का इलाका यहां दूर-दूर तक नहीं है। विज्ञान के अनुसार पत्थर का घनत्व पानी के घनत्व अधिक होता है। इसलिए पत्थर तैरना शोध का विषय है।
गाजीपुर के राजकीय महिला कालेज की भूगर्भ विज्ञान की प्रोफेसर डा. शिल्पी राय का कहना है कि ज्वालामुखी से निकलने वाला लावा सूखने के बाद पत्थर जैसे कठोर हो जाता है। इसका घनत्व आम पत्थरों की तुलना में काफी कम होता है। इसलिए पानी में तैरता है। यह पत्थर यहां कैसे पहुंचा, यह एक सवाल है। बीएचयू के विज्ञान संकाय के प्रमुख (डीन) और भू-विज्ञानी प्रो. राजेश श्रीवास्तव ने कहा कि बिना देखे उस पत्थर के बारे में कुछ नहीं कह सकता। प्यूमिस पत्थर पानी में तैरते हैं।
यह ज्वालामुखी विस्फोट के बाद लावा के ठंडा होने के बाद आकार लेते हैं। इनमें स्पंज की तरह काफी छिद्र होते हैं और घनत्व पानी से कम होता है। इनके अलावा कोई पत्थर पानी में नहीं तैरता। यह पत्थर गाजीपुर में मिला है तो सवाल है कि वहां तक पहुंचा कैसे।
हिमालय में तो ज्वालामुखी नहीं है। यदि गंगा में बहते हुए दूर से आया तो फिर रास्ते में और कहीं किसी ने क्यों नहीं देखा? संभव हो किसी ने कहीं से लाकर डाल दिया हो। बीएचयू के भू विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. अरुणदेव सिंह ने बताया कि तैरते पत्थर का फोटो हमने भी देखी है।
कालिमा लिए हुए इसके रंग से यह वाल्वैनिक (जवालामुखीय) जैसा ही दिख रहा है, लेकिन बिना इसकी जांच और विश्लेषण किए कुछ कहा नहीं जा सकता। सबसे बड़ी बात यह कि यदि यह वाल्वैनिक है तो इधर कहां से पहुंचा। इस पर बिना जांच किए कुछ कहना मुश्किल है। शनिवार को भी गंगा घाट पर तैरते पत्थर को देखने के लिए लोग पहुंच रहे हैं।
लोग बकायदा उसे उठाकर उसके वजन का भी अनुमान लगा रहे हैं। कोई एक क्विंटल से अधिक तो कोई कम बता रहा है। पत्थर में रस्सी बांधकर किनारे लगाया गया है। वहीं गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालु पूजा भी कर रहे हैं।

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