बगैर पत्रांक के मामला लटक जाता है अधर में
गाजीपुर: प्रेसिडेंट, गर्वनर हों या फिर पीएम-सीएम। इनको संबोधित भेजे गये राजनीतिक दलों, संगठनों, संस्थाओं के पत्रक, ज्ञापन और मांग पत्र कूड़े के ढेर में फेंक दिये जाते हैं।
जिले में अपनी समस्याओं को लेकर राजनीतिक दल, कर्मचारी व आमजन धरना-प्रदर्शन के माध्यम से आला अधिकारियों को ज्ञापन सौंपते हैं। जिले के आला अफसरों से लगायत राष्ट्रपति तक अपनी समस्याओं से अवगत कराने के लिए पत्रक देते हैं। बावजूद इसके पत्रांक संख्या के अभाव में उनका पत्र कूड़ों के ढेर में पहुंच जाता है। किसी उच्चाधिकारी को ज्ञापन देते समय उसमें पत्रांक नम्बर का अंकित होना अत्यंत आवश्यक है। नम्बर के आधार पर ही आगे जानकारी प्राप्त की जा सकती है कि पत्र आपका कहां तक पहुंचा है लेकिन वे पत्रांक संख्या पर ध्यान नहीं देते। बस केवल ज्ञापन व पत्रक सौंप का निश्चिंत हो जाते हैं कि उनका पत्र संबंधित अधिकारी के यहां अवश्य पहुंच गया होगा और जल्द कार्रवाई की उम्मीद लगा बैठते हैं। औसतन प्रतिदिन दो से तीन ज्ञापन प्रशासन के पास आते है। ब्लाक व तहसील के पत्रक पर तो जिला प्रशासन ध्यान ही नहीं देता। अगर जिला मुख्यालय पर किसी बड़ी समस्या को लेकर आंदोलन व धरना प्रदर्शन होता है तो उस ज्ञापन को अंग्रेजी दफ्तर के बाबू को सौंप दिया जाता है। बाबू उसे नजारत को देता है।
सरकारी खर्च से भेजा जाता है ज्ञापन
गाजीपुर: ज्ञापन गंतव्य तक भेजने के बाबत एसडीएम सदर मोहन लाल ने बताया कि किसी भी समस्या का जो भी ज्ञापन प्राप्त होता है उसे जिला प्रशासन के माध्यम से संबंधित व्यक्ति को भेजा जाता है। इसका खर्च जिला प्रशासन वहन करता है।
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