Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सांस लेने में परेशानी से बचाएगा 'सांस' अभियान, गाजियाबाद के डॉक्टरों को सौंपी गई जिम्मेदारी

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 09:13 AM (IST)

    गाजियाबाद में 'सांस' अभियान शुरू किया गया है, जिसका लक्ष्य सांस लेने की समस्या से जूझ रहे लोगों को मदद पहुंचाना है। डॉक्टरों को मरीजों की पहचान करने और उन्हें चिकित्सा सहायता प्रदान करने की जिम्मेदारी दी गई है। जनता से अपील की गई है कि वे जरूरतमंदों की जानकारी डॉक्टरों तक पहुंचाएं।

    Hero Image

    जिला एमएमजी अस्पताल की ओपीडी में सांस लेने में दिक्कत की शिकायत पर पहुंचे बच्चे। जागरण

    मदन पांचाल, गाजियाबाद। सांस लेने में परेशानी से बच्चों को अब सांस अभियान बचायेगा। गाजियाबाद समेत प्रदेश के सभी जिलों में इस अभियान को जमीन पर उतारने के लिये जपदवार सौ से अधिक चिकित्सकों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। विश्व निमोनिया दिवस बेशक 12 नवंबर को निकल गया है लेकिन स्वास्थ्य विभाग सर्दी के संग बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते निमोनिया से दम तोड़ रहे बच्चों की जान बचाने को गंभीर है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सांस अभियान के बल पर बच्चों की मृत्यु दर कम करने की कवायद तेज कर दी गई है। यह अभियान 28 फरवरी 2026 तक चलेगा। सीएमओ डा. अखिलेश मोहन ने बताया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार की ओर इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।

    सांस अभियान की टैगलाइन है निमोनिया नहीं तो बचपन सही। निमोनिया की रोकथाम एवं ससमय समुचित इलाज प्रदान कर अंडर-5 मृत्युदर में कमी लाने के उद्देश्य से समुदाय स्तर पर निमोनिया से ग्रसित बच्चों की पहचान कर उपचार किया जायेगा।

    इसी क्रम में भारत सरकार द्वारा सांस (सोसल एवेरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रीलाइज्ड निमोनिया सक्सेजफुली) कार्यक्रम की शुरूआत की गयी है। रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में लगभग 17.5 प्रतिशत मृत्यु निमोनिया के कारण होती है। अकेले गाजियाबाद में अप्रैल से लेकर 22 नवंबर तक दस से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।

    निमोनिया के बारे में जानें

    निमोनिया फेफड़ों के संक्रमण, बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगल संक्रमण से होता है। बच्चों में निमोनिया होने के विभिन्न कारण हो सकते हैं। इनमें कम वजन का होना, कुपोषण,स्तनपान न कराया जाना, (आठ माह तक)। घरेलू प्रदूषण,खसरा एवं पीसीवी टीकाकरण न किया जाना।जन्म-जात विकृतियां जैसे कि क्लेफ्ट प्लेटस, अनुवांसिक हृदय विकृति तथा अस्थमा निमोनिया की सम्भावना को बढ़ावा देते है।


    निमोनिया के संरक्षण, बचाव एवं उपचार (पीपीट) स्ट्रेटजी के तहत निमोनिया से सम्बन्धित विभिन्न उपायों को परिवारिक एवं सामुदायिक स्तर पर क्रियान्वित किया जाना और उपचार हेतु विभिन्न स्वास्थ्य इकाईयों से जोड़ा जाना है।(सुरक्षा) के अन्तर्गत शिशु के अच्छे स्वास्थ्य पर ध्यान देते हुए जन्म के तुरन्त बाद से छह माह तक केवल स्तनपान तथा छह माह के उपरान्त समुचित अनुपूरक आहार, विटामिन-ए दिये जाने की आवश्यकता है।

    बचाव के अन्तर्गत शिशु का टीकाकरण एवं हाथों की स्वच्छता तथा स्वच्छ पेयजल एवं गृह प्रदूषण को दूर किया जाना है।(उपचार) के अन्तर्गत शिशुओं का निमोनिया हेतु चिकित्सा इकाई स्तर पर एवं सामुदायिक स्तर पर उचित उपचार किया जाना है।

    राष्ट्रीय निमोनिया प्रबंधन के मुख्य दिशा-निर्देश

    निमोनिया से बचाव, रोकथाम और उपचार के लिए स्वास्थ्य संवर्धक व्यवहारों और प्रैक्टिसेस के प्रति जागरूकता बढ़ाना और समुदाय को सक्रिय करना।पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में संदिग्ध निमोनिया मामलों की शीघ्र पहचान और प्रबंधन ।गंभीर निमोनिया के मामलों के लिए चिकित्सा इकाई स्तरीय प्रबंधन को मजबूत करना।

    कम्युनिटी में जन जागरूकता अभियान चलाकर निमोनिया की ससमय पहचान एव उपचार।स्वास्थ्य इकाईयों पर सांस कार्यक्रम के लिये आइइसी सामग्री उपलब्ध कराया जाना सुनिश्चित किया जाना।ओपीडी आइपीडी के वार्डों में निमोनिया का नवीन उपचार प्रोटोकाल उपलब्ध कराया जाना एवं तद्नुसार निमोनिया का उपचार जरूरी है। स्वास्थ्य कर्मियों का क्षमतावर्धन किया जाना।

    कार्यक्रम की योजना

    अभियान के दौरान आशा और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर बच्चों में निमोनिया के मामलों की शीघ्र पहचान और उपयुक्त प्रबंधन पर अतिरिक्त ध्यान दिया जाये।बच्चों की चिकित्सकीय देखभाल के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ किया जाये।पात्र बच्चों को राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत तीन खुराकें न्यूमोकोकल कन्ज्यूगेट वैक्सीन (पीसीवी) की प्राप्त हों (छह सप्ताह और 14 सप्ताह में दो प्राथमिक खुराकें और नौ महीने में एक बूस्टर खुराक)।वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण पांख् साल से कम आयु के बच्चों में निमोनिया का एक प्रमुख जोखिम कारक है।

    इनडोर और आउटडोर वायु प्रदूषण का पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए।प्रयास किए जाने चाहिए कि सांस कार्यक्रम को राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा तैयार की गई कार्य योजना से जोड़ा जाए, जिससे सामाजिक जागरूकता बढ़े और वायु प्रदूषण के संपर्क को कम करने के उपायों को अपनाने में मदद मिले।

    अभियान की राणनीति

    • आशाओं द्वारा गृह भ्रमण के दौरान पांच वर्ष तक के बच्चों में निमोनिया चिन्हित करना एवं दिशा निर्देश के अनुसार समुचित उपचार उपलब्ध कराना एवं सीवियर निमोनिया से ग्रसित बच्चों को समय से रेफर करना।
    • आशाओं द्वारा गृह भ्रमण के दौरान 02-59 माह के शिशुओं का प्रबन्धन, शिशुओं में खांसी एवं सांस लेने में कठिनाई हेतु आशा द्वारा प्रबन्धन एवं शिशुओं का पीएसबीआई हेतु प्रबन्धन।
    • चिकित्सालय में इस अभियान के दौरान ट्राएज एरिया स्थापित करते हुए आक्सीजन थैरेपी एवं निमोनिया के प्रबन्धन एवं रेफरल की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। आक्सीजन थैरैपी को मानीटर करने के लिए पल्स आक्सीमीटर का उपयोग अवश्य करें ।
    • यदि पल्स आक्सीमीटर उपलब्ध नहीं है, तो तब तक आक्सीजन दें जब तक कि हाइपोक्सिया के नैदानिक संकेत (जैसे स्तनपान में असमर्थता या श्वसन दर 60 मिनट) कम न हो जाये। अधिकारी 15 दिन में पीडिया वार्ड व चिकित्सालय में लगे अक्सीजन प्रदान करने वाले उपकरणों का निरीक्षण करें एवं मॉकड्रिल करायें। मिनी स्किल लैब की स्थापना सुनिश्चित की जाये।
    • कार्यकर्ताओं को निमोनिया प्रबंधन पर स्किल बेस्ड प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।मलिन बस्ती में घर-घर जा कर निमोनिया के बारे में जागरूक करना।आइएमए का सहयोग लिया जाये।









    ---------------
    मदन पांचाल