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    नारों से नहीं, अन्न से मिटती है पेट की भूख

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 08 Dec 2020 07:33 PM (IST)

    अजय सक्सेना मदन पांचाल गाजियाबाद आंदोलन में नारे लगाने से बच्चों को रोटी नहीं मिलती। जब मास

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    नारों से नहीं, अन्न से मिटती है पेट की भूख

    अजय सक्सेना, मदन पांचाल गाजियाबाद :

    आंदोलन में नारे लगाने से बच्चों को रोटी नहीं मिलती। जब मासूम बच्चे भूख से तड़पते हैं तो सियासी दल और नेता उनके पेट की आग शांत कराने नहीं आते। बच्चों की परवरिश के लिए खुद ही खेतों में पसीना बहाना पड़ता है। जितना समय हम नारे लगाने में बर्बाद करेंगे, उतना खेतों में गुजारेंगे तो भविष्य सुधर जाएगा। यह कहना है दिल्ली की दहलीज से सटे गाजियाबाद जिले के उन किसानों का जो आंदोलन से किनारा कर अपने खेतों में काम कर रहे हैं।

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    अन्नदाता से मिलना है तो खेतों में झांकिए

    मंगलवार को दैनिक जागरण की टीम ने किसान आंदोलन की हकीकत जानने के लिए जिले के 161 गांवों में से चुनिदा गांवों में रुख किया। सबसे पहले बेहटा हाजीपुर गांव के खेतों में काम कर रहे किसान जयकरण से मुलाकात हुई। मूल रूप से बदायूं उत्तर प्रदेश के रहने वाले जयकरण आठ वर्ष से पांच बीघा खेत में पालक, सरसों, मेथी और गोभी आदि सब्जी उगाते हैं। जमीन उन्होंने सालाना पांच हजार रुपये बीघा के हिसाब से ठेके पर ली है। खरीदार जयकरण के खेत से ही सब्जियां खरीदकर ले जाते हैं। किसान आंदोलन का हिस्सा न बनने के सवाल पर वह कहते हैं कि उनके लिए पहले परिवार है। पास के ही खेत में काम कर रहे प्रमोद कुमार भी बदायूं के रहने वाले हैं। उन्होंने तीन बीघा खेत किराए पर ले रखे हैं। प्रमोद बेबाकी से कहते हैं कि आंदोलन में गरीब किसानों को नेता झांसा देकर बुलाते हैं। सरकार से बातचीत के दौरान सिर्फ किसान नेता ही अपनी नेतागिरी चमकाते हैं। उनसे पूछा भी नहीं जाता कि वह क्या चाहते हैं।

    रईसपुर गांव के किसान जय प्रकाश अपने खेत में नंगे पांव बीज बिखेरने में लगे थे। जागरण संवाददाता ने रोककर जय प्रकाश से आंदोलन में जाने की वजह पूछी तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया। खेत में बुवाई क्या नेता करेंगे। बेटा पेट की भूख अन्न से दूर होवै है, आंदोलन सू बस नेता बन जावें। किसान नारे लगाकर भी खेतों में ही काम करता रहवे और नेता चुनाव लड़कर विधायक और सांसद बन जावें। दस बीघा खेत की पहले ट्रैक्टर से जुताई की है। इसके बाद गेहूं बोया है। खुद ही बीज बिखेरा है। साथ के दूसरे खेत में दस दिन पहले गेहूं बोया था, अब पानी लगाया जा रहा है। खेतों से फुर्सत नहीं है। आंदोलन के लिए कुछ नेता बुलावा लेकर आए थे लेकिन खेत बोआई के चलते साफ इन्कार कर दिया गया। केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता से ही बीज खरीदकर लाया हूं। रईसपुर गांव के ही किसान अशोक चौधरी फावड़े से खेत में बरहा की सफाई कर रहे थे। सवाल पूछने से पहले ही मंशा भांपकर अशोक ने जवाब दिया। किसान हूं भाई, बिना काम करे चूल्हा न जलेगा। पहले खेत में काम करना जरूरी है। धरना-प्रदर्शन, पंचायत-महापंचायत तो होती रहती हैं। रबी की फसल बोने का समय दुबारा नहीं आएगा। गेहूं के अलावा जौ व जई बोई जा रही है। गेहूं से परिवार का पेट भरेगा और जई से पशुओं को चारा मिलेगा। आमदनी का जरिया खेत और पशु ही हैं। भारत बंद करना किसानों का काम नहीं है। किसान समृद्ध हो रहा है।