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    Ram Mandir: मुख्य मार्गों पर था पुलिस का पहरा, पगडंडियों से होकर पहुंचे अयोध्या; नारायण सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष दिवाकर मिश्रा

    By Jagran News Edited By: Sonu Suman
    Updated: Thu, 18 Jan 2024 03:54 PM (IST)

    नारायण सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष दिवाकर मिश्रा परिवार सहित वसुंधरा सेक्टर-14 में रहते हैं। राम मंदिर आंदोलन के समय वह सरकारी नौकरी में थे। बावजूद इसके वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। उन पर सूर्य नगर मंडल कार्यवाह का दायित्व था। दिवाकर मिश्रा बताते हैं कि वर्ष-1990 में श्रीराम मंदिर के लिए कारसेवा का आह्वान हुआ तो जिला कार्यवाह ने कारसेवकों को तैयार करने के लिए बैठक की।

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    पगडंडियों से होकर पहुंचे अयोध्या; नारायण सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष दिवाकर मिश्रा ने किया कारसेवा के दिनों को याद।

    अवनीश मिश्र, गाजियाबाद। प्रभु श्रीराम का नाम सुनते ही मानों जीवन धन्य हो जाता है। उनका काज करने का सौभाग्य मिले तब तो जीवन ही सफल हो जाए। श्रीराम मंदिर के आंदोलन की जब शुरूआत हुई तो मन में ही लालसा थी। इसी का नतीजा रहा कि सरकारी नौकरी जाने की परवाह किए बगैर शिला पूजन से लेकर विवादित ढांचा के विध्वंस तक में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। वर्ष-1990 में मुख्य मार्गों पर पुलिस के पहरा रहा तो पगडंड़ियों और नहर की पटरी पकड़कर अयोध्या पहुंचकर कारसेवा की। वर्ष-1992 में विवादित ढांचा के विध्वंस में सहयोग करने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ।  

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    नारायण सेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष दिवाकर मिश्रा परिवार सहित वसुंधरा सेक्टर-14 में रहते हैं। राम मंदिर आंदोलन के समय वह सरकारी नौकरी में थे। बावजूद इसके वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे। उन पर सूर्य नगर मंडल कार्यवाह का दायित्व था। दिवाकर मिश्रा बताते हैं कि वर्ष-1990 में श्रीराम मंदिर के लिए कारसेवा का आह्वान हुआ तो जिला कार्यवाह ने कारसेवकों को तैयार करने के लिए बैठक की। इसके पहले शिला पूजन के समय बड़ी संख्या में लोगों ने कारसेवा करने के लिए हामी भरी थी। उन लोगों से संपर्क किया।

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    पगडंडियों और नहर की पटरी से होकर पहुंचे अयोध्या

    सभी लोगों ने कारसेवा के लिए उत्साह दिखाया। 28 अक्टूबर 1990 को सरकारी नौकरी और दो मासूम बच्चों की चिंता किए अयोध्या के लिए निकल पड़े। ट्रेन के जनरल डिब्बों में अलग-अलग सवार होकर पुलिस से बचते-बचाते 29 अक्टूबर को लखनऊ पहुंचे। वहां संघ की ओर से एक धर्मशाला में ठहराया गया। पुलिस को इसकी जानकारी हो गई। वहां पहुंचकर पुलिस ने लाठी चार्ज किया तो पिकप से अन्य कारसेवकों के साथ अयोध्या के  निकल पड़े। जगह-जगह पुलिस तैनात थी। इस वजह से रास्ते में ही पिकप छोड़ दी। पगडंड़ियों और नहर की पटरी का सहारा लेकर अयोध्या पहुंचे। चार दिसंबर को वहां सरयू स्नान व हनुमानगढ़ी का दर्शन करके वापस लौटे।

    पांच दिसंबर 1992 की सुबह पहुंचे अयोध्या

    दिवाकर मिश्रा बताते हैं कि पांच दिसंबर 1992 को वह दूसरी बार कारसेवा के लिए अयोध्या पहुंचे। दिनभर कैंप में रहे। छह दिसंबर की सुबह आठ बजे श्रीराम जन्मभूमि के पास लगे मंच के सामने पहुंच गए। वहां कारसेवकों की अपार भीड़ थी। उनका उत्साह चरम पर था। धीरे-धीरे विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जोशीले भाषण देने शुरू किए। इस बीच कारसेवकों का एक समूह विवादित ढांचे की ओर बढ़ा। कारसेवक ढांचे पर चढ़ गए। कारसेवकों ने ढांचे को चारों ओर से घेर लिया। उसकी एक-एक ईंट उखाड़नी शुरू कर दी।

    जय श्रीराम का नारा लगाते हुए ईंट ले गए

    मंच से नेता उन्हें संयम और धैर्य से काम लेने की अपील करने लगे, लेकिन हम सभी कारसेवकों का धैर्य जवाब दे गया था। हम लोग ढांचे का अस्तित्व समाप्त करना चाहते थे। इस वजह से ढांचे को ढहाने में जुटे रहे। कुछ घंटों में ढांचा गिर गया। जय श्रीराम का नारा लगाते हुए तमाम कारसेवक ढांचे से निकली ईंट ले गए। ढांचे का नामोनिशान मिट गया। इसमें शामिल होना परम सौभाग्य रहा। अब भव्य श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीराम का आगमन हो रहा है। इससे मन बहुत ही हर्षित व प्रफूल्लित है।

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