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    निटरा के विज्ञानियों के कपास पर शोध ने स्थापित किए नए आयाम, केमिकल रंगों से बचेंगे निर्माता

    Updated: Tue, 07 Oct 2025 09:55 AM (IST)

    गाजियाबाद के निटरा संस्थान ने कपास पर शोध किया है। संस्थान ने रंगीन कपास उगाकर कपड़ा निर्माताओं को रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान से बचाया है। कपास उत्पादन करने वाले किसानों को मौसम की अनिश्चितता और कीटों से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए निटरा नई तकनीक का विकास कर रहा है। वस्त्र मंत्रालय ने कपास की उत्पादकता बढ़ाने के लिए पंचवर्षीय योजना भी शुरू की है।

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    निटरा परिसर में धागा बनने से पूर्व की प्रक्रिया के दौरान रखी कपास। जागरण

    शाहनवाज अली, गाजियाबाद। कपास का पांच हजार ईसा पूर्व का इतिहास है। भारत विश्व में कपास का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश है, जो दुनिया भर में कपास की बड़ी मांग को पूरा करता है। कपास केवल सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका का आधार भी है।

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    कपास से वस्त्र, धागा, गृह सज्जा सामग्री और कई प्रकार के औद्योगिक उत्पाद तैयार किए जाते हैं। उत्तर भारत वस्त्र अनुसंधान संघ (निटरा) ने कपास पर कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए हैं। इनमें विज्ञानियों ने रंगीन कपास उगाकर कपड़ा निर्माताओं को केमिकलयुक्त रंगों से बचाव की राह दिखाई है।

    अनुसंधान केंद्र के विज्ञानियों के अनुसार कपास उत्पादन से जुड़े किसानों को मौसम की अनिश्चितता, कीट प्रकोप और कम दाम जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। निटरा इन चुनौतियों से निपटने के लिए नई तकनीक और उच्च उत्पादकता वाले बीजों पर काम कर रहा है।

    विशेष रूप से, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए ऐसे बीज विकसित किए जा रहे हैं जो सूखा और अधिक तापमान सहन कर सकें। संस्थान में चल रहे शोध के अंतर्गत न केवल उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है, बल्कि गुणवत्ता सुधार, रेशों की मजबूती और पर्यावरणीय दृष्टि से टिकाऊ उत्पादन पर भी फोकस है। निटरा विज्ञानियों की टीम कपास की बायो टेक्नोलाजिकल सुधार प्रक्रियाओं, स्मार्ट खेती और डिजिटल कृषि तकनीकों के उपयोग पर भी शोध कर रही है।

    कपास से कपड़ा तैयार होने की प्रक्रिया

    खेत में कपास की बुवाई के बाद तैयार फसल से रूई के फूल तोड़े जाते हैं, जिसके बाद इसमें से बीज निकालने की प्रक्रिया के बाद रूई को कताई करते हुए धागा तैयार किया जाता है। इसके बाद बुनाई और रंग देने की प्रक्रिया पूरी की जाती है, जिसके बाद परिधान निर्माण होता है।

    कपास छोड़ गन्ना और चावल की खेती के प्रति बढ़ा मोह

    उत्तर भारत की बात करें तो कपास की खेती के प्रति किसानों का मोह कम हुआ है। इसके पीछे बड़ी वजह वातावरण के अनुकूल गन्ना और चावल की पैदावार अधिक होना रहा। यही वजह रही कि मंडल में भी पिछले कुछ दशकों में यहां कपास की खेती धीरे-धीरे कमी के कगार पर पहुंच गई।

    वस्त्र मंत्रालय ने "कपास उत्पादकता मिशन" के तहत पंचवर्षीय पहल की है। प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और जलवायु-अनुकूल किस्मों के माध्यम से कपास उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिए इसे शुरू किया गया। मिशन का उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना, गुणवत्तापूर्ण कपास की निरंतर आपूर्ति और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाकर कपड़ा क्षेत्र की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाना है। इसमें तीन लघु मिशन भी शामिल हैं। उत्पादकता और स्थिरता के लिए कपास क्रांति, गुणवत्ता वृद्धि के लिए कपास कांति और केला, मिल्कवीड और बांस जैसे अन्य प्राकृतिक रेशों को बढ़ावा देने के लिए नव्या फाइबर (नए युग के रेशे) है।

    - डॉ. एमएस परमार, महानिदेशक निटरा