महारास का मतलब परमात्मा और जीवात्मा का मिलन: आचार्य नरेंद्र वशिष्ठ
प्रभु से मिलन का नाम ही महारास है। भगवान ने गोपियों के साथ महारास किया। महारास का मतलब परमात्मा और जीवात्मा का मिलन है। महारास में सामान्य रस नहीं था। ब्रज भूमि परमात्मा की प्रेम भूमि है, जहां के कण-कण में कृष्ण है। भगवान कृष्ण-गोपियों के महारास लीला को जो श्रद्धा के साथ सुनता है, उसे भगवान के चरणों में स्थान मिलता है। ये बातें प्रताप नगर में चल रही भागवत कथा में कथा व्यास आचार्य नरेंद्र वशिष्ठ ने कही।
जागरण संवाददाता, गाजियाबाद : प्रभु से मिलन का नाम ही महारास है। भगवान ने गोपियों के साथ महारास किया। महारास का मतलब परमात्मा और जीवात्मा का मिलन है। महारास में सामान्य रस नहीं था। ब्रज भूमि परमात्मा की प्रेम भूमि है, जहां के कण-कण में कृष्ण है। भगवान कृष्ण-गोपियों के महारास लीला को जो श्रद्धा के साथ सुनता है, उसे भगवान के चरणों में स्थान मिलता है। ये बातें प्रताप नगर में चल रही भागवत कथा में कथा व्यास आचार्य नरेंद्र वशिष्ठ ने कही। उन्होंने बताया कि राधा-कृष्ण तत्वत: एक हैं। भक्ति और ज्ञान एक दूसरे के पूरक होते हैं, व्यास जी कहते हैं की बिना भक्ति के ज्ञान पंगु है और बिना ज्ञान के भक्ति अंधी है। जीवन में ज्ञान के साथ भक्ति होना अति आवश्यक है। उद्धव जी ज्ञानी थे। भगवान ने उन्हें गोपियों के पास भेजकर पूर्ण भक्ति योग की शिक्षा दिलवाई। अपने और राधा के भेद को संसार के लोगों को बता दिया कि मैं ही राधा हूं, राधा ही मैं हूं। उन्होंने कहा कि श्रद्धा के बिना भक्ति नहीं होती और विशुद्ध हृदय में ही भागवत टिकती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा सुनने पहुंचे थे। राजेश शर्मा, दिनेश शर्मा, जीतेंद्र चौहान, खुशीराम शर्मा, सविता चौहान, नीलम शर्मा, सुमन शर्मा, नितेश शर्मा आदि मौजूद रहे।
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