गाजियाबाद की शान, चार में से दो द्वार खो रहे अपनी पहचान; सन 1740 ई. में हुई थी इनकी स्थापना
गाजियाबाद शहर के चार ऐतिहासिक द्वार, जो सन 1740 ई. में स्थापित किए गए थे, मुगल काल की याद दिलाते हैं। इनमें से शाही गेट अब जवाहर गेट के नाम से जाना जाता है, जबकि सिहानी गेट पूरी तरह से लुप्त हो चुका है। डासना और दिल्ली गेट अभी भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। ये द्वार गाजियाबाद की ऐतिहासिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा थे, लेकिन समय के साथ इनकी स्थिति बदल गई है।
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डासना गेट (सुभाष गेट)। जागरण
दीपा शर्मा, गाजियाबाद। लगभग तीन शताब्दी से गाजियाबाद की पहचान रहे चार गेट शाही गेट, सिहानी गेट, डासना गेट, दिल्ली गेट इतिहास के महत्वपूर्ण दौर के साक्षी रहे हैं। गाजियाबाद के चारों द्वारों की स्थापना सन 1740 ई. में हुई थी। जब मुगल बादशाह अहमद शाह के वजीर गाजी-उद-दीन ने गाजिउद्दीनगर की स्थापना की थी।
उन्होंने अपनी सेना के रुकने के लिए एक विशाल ढांचा बनवाया था और सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर चार गेट बनवाए थे, लेकिन आज गाजियाबाद के चार ऐतिहासिक द्वारों में से दो द्वार अपनी ही पहचान के मोहताज हैं। डासना गेट और दिल्ली गेट को ही लोग जानते और पहचानते हैं। बाकी शाही द्वार को लोग जवाहर गेट के नाम से पहचानते हैं। सिहानी गेट का अस्तित्व खत्म हो चुका है। बताया जाता है कि शाही गेट की जगह बदलकर आजादी के बाद जवाहर गेट नाम दिया गया था।
गाजियाबाद शहर न केवल अपने आधुनिक विकास के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी ऐतिहासिक विरासत भी उतनी ही गौरवशाली है। जब मुगल साम्राज्य कमजोर होने लगा तो स्थानीय शासक एवं जागीरदार अपनी पहचान स्थापित करने में जुटे हुए थे। उस दौर में स्थानीय नवाब गाजीउद्दीन ने सन 1740 ईं. में गाजीउद्दीननगर की स्थापना की।
जिसका नाम बाद में गाजियाबाद पड़ा। गाजिउद्दीननगर को चार मुख्य द्वारों के आसपास बसाया गया था। उन्होंने अपनी सेना के रुकने के लिए एक विशाल ढांचा बनवाया था और सुरक्षा के लिए शहर के चारों ओर चार गेट बनवाए थे। जो आज भी गाजियाबाद की ऐतिहासिक पहचान का अहम हिस्सा हैं।
चारों द्वारों का महत्व एवं वर्तमान स्थिति
शाही गेट का नाम बदलकर जवाहर गेट बनवा दिया गया। जिसे गाजियाबाद का मुख्य प्रवेश द्वार माना जाता था। यहीं से प्रशासनिक गतिविधियां नियंत्रित होती थीं। फिलहाल द्वार के अंदर दुकानों का सामान रखा जात है। दिल्ली गेट गाजियाबाद को राजधानी से जोड़ने वाला था। जो शहर का बाहरी द्वार माना जाता था।
फिलहाल द्वार काफी जर्जर स्थिति में हैं और द्वार के अंदर दुकानें बनी हुई हैं। डासना गेट (सुभाष द्वार) गाजियाबाद को डासना गांव से जोड़ता था। जहां से गांव की फसल शहर में आती थी। द्वार में पुलिस चौकी बनी हुई है। वहीं सिहानी गेट सिहानी गांव से जोड़ता था। इस द्वार का अस्तित्व वर्तमान में पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। द्वार की जगह पर अतिक्रमण कर लिया गया है।
स्थानीय व्यापारी राजेश्वर प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि चारों द्वारों को चूना और लाखौरी ईंट से बनाया गया था। द्वारों के ऊपर मचान बने हुए थे और छुपकर हथियार से वार करने के लिए चौखर बनाए गए थे। लकड़ी के पटों पर नुकीली कील लगाई गई थीं। जिससे आक्रमण होने पर हाथी के बल से द्वार तुड़वाने की स्थिति में भी वह तोड़ा न जा सके।
नई बस्ती के पास जलेबी विक्रेता हाजी यामीन ने बताया कि सिहानी गेट हमारे सामने हुआ करता था। धीरे धीरे वह द्वार खत्म होता चला गया। अभी भी द्वार के कुछ निशान हैं। जवाहर गेट के पास भी पहले घंटाघर बाजार पक्का बना हुआ था। पुरानी संरचना जो थी वह समय के साथ खत्म होती चली गई।
अग्रसेन बाजार के व्यापारी राजेंद्र कुमार मित्तल ने बताया कि यहां पुराने समय में लोग तांगे से आया जाया करते थे। अब यहां न तो पुरानी इमारतें हैं और न ही ढांचा बचा है। अब सिहानी गेट की जगह भी लोग नहीं पहचानते।

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