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    उनकी अंतिम यात्रा में मुस्लिम भी बोले राम नाम सत्य है

    By JagranEdited By:
    Updated: Tue, 26 Jan 2021 05:24 AM (IST)

    गरीबों के मददगार डा. गुप्ता की अर्थी को अल्लाह के बंदों ने दिया था कंधा कोरोना काल में गरीबों के बने थे मददगार चौबीस घंटे करते रहे बस्ती में इलाज। ...और पढ़ें

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    उनकी अंतिम यात्रा में मुस्लिम भी बोले राम नाम सत्य है

    कार्तिकेय नाथ द्विवेदी, फीरोजाबाद:

    हर एक ही चाह होती है कि मौत ऐसी हो कि जमाना जय बोले। शहर में गरीबों के डाक्टर कहे जाने वाले विनोद की मौत पर भी कुछ ऐसा हुआ। कोरोना काल में संक्रमित होकर उन्होंने अंतिम सांस ली तो हर शख्स बेचैन हो उठा। मुसलमानों ने उसकी अर्थी को न केवल कंधा दिया बल्कि राम नाम सत्य बोलने से भी गुरेज नहीं किया।

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    शहर के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र नाले वाली पुलिया पर रहने वाले एमबीबीएस डॉ. विनोद के काम ही कुछ ऐसे थे। बेहद जहीन इस शख्स ने शादी नहीं की। एमबीबीएस करने के बाद पिता डा. बच्चन लाल की क्लीनिक पर ही बैठने लगे। नीचे क्लीनिक थी और ऊपर बने कमरों में डाक्टर विनोद अकेले रहते। वे सुबह दस से रात 11 बजे तक बिना कोई शुल्क लिए रोगियों का इलाज करते रहे। उनके मरीजों में आमतौर पर गरीब मुसलमान होते। देर रात भी कोई मरीज पहुंचा तो उन्होंने इंकार नहीं किया। 16 सितंबर की रात दिल का दौरा पड़ने से डा. विनोद चल बसे। 17 की दोपहर उनकी अंतिम यात्रा निकली, जिसमें मुसलमानों ने भी उन्हें अंतिम विदाई दी। उनकी अर्थी को कंधा भी दिया। - सिर्फ लेते थे दवा का पैसा-

    पड़ोसी हाजी निजाम ने बताया कि पांच दशक में फीरोजाबाद शहर में कई बार सांप्रदायिक हिसा हुई लेकिन न तो उनकी क्लीनिक बंद हुई न ही किसी ने उनका नुकसान किया। वह कभी भी मरीज से शुल्क नहीं लेते थे। कई बार तो दवा भी खुद ही दे देते थे।

    - कोरोना काल में भी करते रहे इलाज:

    डा. विनोद कोरोना काल में भी रोगियों का इलाज करते रहे। गरीबों का इलाज करने के दौरान वे संक्रमित हो गए। 14 दिन क्वारंटाइन भी रहे। इन 14 दिनों में ही उनकी क्लीनिक का शटर बंद रहा।

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    दोस्तों की सुनिए-

    डा. विनोद सबके प्रिय थे। वह मृदुभाषी होने के साथ ही नफरत की भावना में विश्वास नहीं करते थे। इसलिए उनका कोई भी दुश्मन नहीं था। मौत से पहले तक वे लोगों का इलाज करते रहे। डाक्टर साहब हमेशा याद रहेंगे।

    बदरूल हसन, पड़ोसी दुकानदार - शादी नहीं करने और छोटे भाई प्रमोद व उनके स्वजन के किसी दूसरी स्थान पर रहने की वजह से डा. विनोद अकेले रहते थे। उनका अधिकतर समय रोगियों के इलाज में गुजरता था। इस जमाने में उन जैसा डाक्टर नहीं हो सकता।

    शाकिर अली, पड़ोसी

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