Making of Bangles: पिघलती हैं, खिचती हैं फिर संवरकर खनकती है चूड़ियां
Making of Bangles चूड़ी की कहानी-1300 डिग्री तापमान में भट्टी में पिघलता है कांच फिर भरे जाते हैं रंग। फीरोजाबाद में हजारों लोग जुटे इस काम में। ...और पढ़ें

फीरोजाबाद, डॉ राहुल सिंघई। कभी किसी ने मुझे “चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है” कहा तो कभी सजनी ने सजना से गोरी हैं कलाइयां बताकर हरी-हरी चूड़ियां गाकर डिमांड की। हां चांदनी में मेरे हाथों में नौ-नौ चूडिय़ां के जरिए ऐसी खनकी कि लोग दिल थाम के रह गए। गांव की गलियों से लेकर आलीशान कोठियों में रहने वालियों की कलाइयों में खनकने वाली चूड़ी हूं मैं। सुहागन की निशानी हूं और श्रृंगार भी। यूपी के शहर फीरोजाबाद में बनकर देश भर के शहर गांव तक पहुंचती हूं। हाथों में खनकती हूं और फिर टूटकर बिखर जाती हूं। मैं आपकी खुशियों के लिए क्या-क्या सहती हूं आपको नहीं पता। कभी आकर देखिए तो...। भट्ठी में 1300 डिग्री तापमान पर मैं कांच के रूप में पिघलती हूं। इसके बाद रॉड पर खिचती हूं, हीरे से कटती हूं, ठेलों में लदकर अंधेरे कमरों में चिपकती हूं। सब कुछ होता है मगर मुझे दर्द नहीं होता, क्योंकि मैं हाथों में खनकने को लेकर बेताब रहती हूं।
रंग बिरंगी और तरह-तरह की डिजाइन वाली चूडिय़ां देश में सबसे अधिक फीरोजाबाद के कारखानों में बनती है। इसका इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। पहला कारखाना रुस्तम जी ने शुरू किया और धीरे-धीरे कारोबार बढ़ता गया। कोयले और लकड़ी से भट्टियां चलती थीं और तापमान मेंटेन करने में कई दिन लग जाते थे। 1996 में कारखानों को नेचुरल गैस का कोटा मिला और भट्टियां की तापमान की समस्या खत्म हो गई। वर्तमान में डेढ़ सौ से ज्यादा कारखाने चल रहे हैं। कारखानों में सुबह छह बजे से दोपहर दो बजे तक काम होता है। इसके बाद अगले दिन के लिए कांच की तैयारी होती है। चूड़ी उत्पादन को चरणों में बांटकर आसानी से समझा जा सकता है।

बेलन पर डोरे की तरह चलता है कांच
चूड़ी बनाने के लिए सबसे पहले सिलिका सेंड, सोडा एश और कैल्साइट का मिश्रण तैयार कर फर्नेश भट्टियों के पॉट में भरा जाता है। इसके साथ ही जिस रंग की चूड़ी बनाना है, उसके हिसाब से रंग का कैमिकल इसी में मिला दिया जाता है। लगभग 12 घंटे बाद 1300 डिग्री तापमान पर कांच पिघलकर तैयार हो जाता है। इसके बाद प्रोसेस शुरू होता है। कारखानों में सुबह छह बजे से काम शुरू होता है।
दर्जनों हाथों से होकर गुजरकर तैयार होती है फीरोजाबाद की चूड़ियां
चूड़ी मजदूर लोहे की रॉड में भट्टी के होल में पिघला हुआ कांच निकालता है और वहां से अड्डे पर आता है। वहां कांच के टुकड़े को शेप देकर ठंडा किया जाता है। मजदूर फिर से उसी कांच पर भट्टी से नया कांच लेता है। कांच पर कांच चढ़ाने की यह प्रक्रिया तीन से चार बार दोहराई जाती है। इसके बाद यह बेलन पर जाता है। बेलन चलाने वाला करीगर मेकिंग की महत्वपूर्ण कड़ी होता है। हाथों से रॉड का बैलेंस इस तरह का बनाता है कि बेलन पर चलने वाले कांच की डोर एक सी रहे। बेलन पर चूड़ी आकार लेती है और एक गोल लच्छे के रूप में तैयार हो जाती है।

त्योहार के हिसाब से रंग की आती है डिमांड
आरएस ग्लास इंड्रस्टीज संचालक रीतेश जिंदल बताते हैं कि चूड़ी का रंग त्योहार के हिसाब से तय होता है। सावन के सीजन के लिए बिहार से सबसे ज्यादा हरी चूड़ी की डिमांड होती है। वहीं करवा चौथ पर लाल चूड़ी की डिमांड आती है। सबसे ज्यादा लाल चूड़ियां पंजाब जाती हैं। जिंदल बताते हैं कि फीरोजाबाद की चूड़ी देश के हर बड़े शहर के साथ-साथ नेपाल तक जाती है। हालांकि चूड़ियां की डिमांड घटी है।
हीरे से कटकर बनता है तोड़ा
गोल लंबे लच्छे की तरह तैयार होने वाली चूड़ियों को बेलन से उठाकर दूसरे ठिकाने पर रख दिया जाता है। जहां पर मजदूर लच्छों को हीरे के टुकड़े से काटते हैं। इससे चूड़ियां अलग-अलग हो जाती है और फिर लगभग 300 चूड़ियों को एक सुतली में बांधकर तोड़ा बना दिया जाता है। कारखानों में एक दर्जन में 24 चूड़ियों का हिसाब होता है। इसके बाद यह तोड़े कारखाने से हाथ ठेलों के जरिए छटाई और चिपकाई के लिए भेज दिए जाते हैं।
सोने की पॉलिश और चांदी से रंग
कारखाने में चूड़ी बिना किसी डिजाइन की बनती है। सिर्फ रंगीन होती है। चिपकने और छटाई के बाद सजनी के हाथों तक पहुंचाने के लिए लुभावनी बनाई जाती है। चूड़ी पर गोल्ड और सिल्वर पॉलिश की डिजाइन बनती है, तो कई जगह आर्टिफिशयल कांच के नग लगाकर संवारा जाता है। यह काम ठेकेदार की पसंद पर होता है। वह बताता है कि किस तरह के कट पर किस तरह के रंग लगाए जाना है। इसके बाद चूडिय़ां डिब्बे में पैक हो जाती हैं।

जुड़इए सवारते हैं शेप और जोड़
चूडियों को संवारने का काम यहां से शुरू होता है। गली-गली छोटे-छोटे घरों में रहने वाले चूड़ी कारीगर जुड़ाई का काम करते हैं। तोड़ा को खोलकर एक-एक चूड़ी को लैम्प और गैस की लौ से जोड़ा जाता है। जोड़ इस तरह लगाया जाता है कि देखने वाला पता भी न कर पाए। इसके साथ यहीं चूड़ी की छटाई हो जाती है। नया बंडल बनकर दूसरी जगह पहुंच जाती है।

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