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    सिमटने लगा जनऔषधि केंद्र, आधी से कम रह गई दवाइयां

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 23 Jun 2022 05:28 AM (IST)

    न सरकार कर रही आपूर्ति न डाक्टर लिख रहे मरीजों को दवा केंद्र पर 800 से अधिक तरह की दवाएं होनी चाहिए हैं करीब 350।

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    सिमटने लगा जनऔषधि केंद्र, आधी से कम रह गई दवाइयां

    जागरण संवाददाता, फिरोजाबाद: शहर के रामगढ़ निवासी सन्नो पेट में पथरी का इलाज कराने बुधवार को मेडिकल कालेज अस्पताल में आई थीं। डाक्टर ने उनके पर्चे पर रिफाक्सिमिन समेत दो दवाएं बाहर की लिख दीं। वह दवाएं खरीदने अस्पताल परिसर स्थित जन औषधि केंद्र पर पहुंचीं तो पता चला कि दवा नहीं है।

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    जुलाई 2018 में मेडिकल कालेज अस्पताल में खोला गया इकलौता प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर दवाइयों का भंडार सिमटने लगा है। जब केंद्र खुला था, तब आठ सौ दवाइयां आती थीं। अब केंद्र पर सिर्फ 350 दवाइयां रह गई हैं। केंद्र पर न तो मस्तिष्क की बीमारियों की दवाएं हैं न ही हार्ट से जुड़ी बीमारियों की। यूरिन इंफेक्शन की दवा एल्कासोल भी नहीं है। सर्जिकल का आयटम भी केंद्र पर नहीं है। जनऔषधि केंद्र के फार्मेसिस्ट अंकुर कुशवाहा ने बताया कि केंद्र पर करीब 350 तरह की दवाएं हैं। दवाइयों की आपूर्ति ब्यूरो आफ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग आफ इंडिया (बीपीपीआइ) द्वारा की जाती है, जहां से दस-दस दिन तक आर्डर पूरे नहीं होते। आधे-अधूरे आर्डर उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने बताया कि यदि डेढ़ लाख रुपये की दवाओं का आर्डर दिया जाता है तो 60-70 हजार रुपये की ही दवाएं मुहैया कराई जाती है। सभी जनरल बीमारियों की दवाएं केंद्र पर उपलब्ध है।

    सर्जिकल आइटम में सिर्फ सीरिज

    जन औषधि केंद्र में दवाइयों के अलावा 154 प्रकार के सर्जिकल आइटम बिकने का दावा किया था। केंद्र संचालक के अनुसार सीरिज के अलावा अब तक कोई भी सर्जिकल आइटम उपलब्ध नहीं कराया गया।

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    प्राइवेट सेंटर पर स्थिति ठीक-ठाक

    सरकारी अस्पताल के अलावा शहर में जेनरिक दवाइयों की एक और दुकान जनकल्याणम ट्रस्ट द्वारा संचालित होती है। इसके निदेशक नीतेश अग्रवाल जैन कहते हैं कि शहर के दो चार डाक्टर ही जेनरिक दवा लिखते हैं। कई समझदार मरीज डाक्टर द्वारा लिखी ब्रांडेड दवाइयों की जगह जेनरिक भी ले लेते हैं। ब्रांडेंड की तुलना में बिक्री काफी कम है। क्या है जेनरिक और ब्रांडेंड दवाओं में अंतर

    हर रोग की दवा साल्ट से बनती है। दवा कंपनियां अपने-अपने ब्रांड नेम से दवाइयां बनाती है, जिनकी कीमत काफी ज्यादा होती है। वहीं जेनरिक दवा साल्ट के नाम से आती है। मरीजों को सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए 2018 में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र अस्पतालों में खोले गए थे, मगर सरकारी डाक्टर अब तक जेनरिक दवाइयां नहीं लिख रहे हैं, बल्कि भ्रमित करते हैं। 'न सरकार दवाइयां उपलब्ध कराती है और न सरकारी अस्पताल के डाक्टर जेनरिक दवाइयां लिखते हैं। हम प्रमुख सचिव स्वास्थ्य और केंद्रों का संचालन देखने वाली संस्थान सांचीज को दर्जनों पर पत्र लिख चुके हैं। हमें लगातार घाटा हो रहा है। पांच साल का कांट्रेक्ट पूरा होने के बाद केंद्र बंद करेंगे।'

    रविन्द्र सिंह, केंद्र संचालन करने वाली कंपनी माइंड पावर के निदेशक