फौजियों को डॉक्टर का अनोखा सलाम
शहर के एक डॉक्टर अपूर्व चतुर्वेदी ने फौजियों की सेवा का संकल्प लिया है। वह अपने क्लीनिक पर आने वाले फौजियों से कोई फीस नहीं लेते हैं। इसके अलावा ऑपरेश ...और पढ़ें

जिज्ञासु वशिष्ठ, फीरोजाबाद: सरहद पर तैनात जवान विपरीत परिस्थितियों में भी देश और देशवासियों की सुरक्षा में डटे रहते हैं। उनके सम्मान में हर भारतीय का सिर झुकता है। जवानों के प्रति कृतज्ञता जताने के सभी के अलग तरीके हैं। अधिकांश 'शब्दों' के जरिए सम्मान जताते हैं। वहीं शहर के प्रमुख सर्जन डॉ. अपूर्व चतुर्वेदी का अंदाज जुदा है। वे अपने क्लीनिक पर आने वाले हर फौजी का निश्शुल्क इलाज करते हैं। चाहे वह सेवा में हों या सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अगर कोई सैनिक फीस देने की पेशकश करता भी है तो वह कहते हैं कि आप अपनी फीस सीमा पर दे चुके हैं।
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं पदमभूषण दादा बनारसीदास चतुर्वेदी के पौत्र डॉ. अपूर्व चतुर्वेदी शहर के प्रमुख सर्जन हैं तथा बीते करीब आठ माह से उन्होंने सैनिकों से फीस लेना बंद कर दिया है। इतना ही नहीं, इसके लिए बाकायदा उन्होने अपने क्लीनिक पर नोटिस भी चस्पा कर दिया है, ताकि कोई सैनिक या पूर्व सैनिक गलती से भी फीस नहीं दे। इस संबंध में डॉ. अपूर्व कहते हैं कि हमारे पास सेना के कई जवान दिखाने आते थे। इनमें अधिकतर लांस नायक, नायक एवं हवलदार होते हैं। जबकि इन्हें मिलिट्री हॉस्पिटल में दिखाने की सुविधा है। इसके बाद भी वे यहां आते हैं। कुछ से पूछा तो जवाब मिला कि आपको ही दिखाना था। तब सोचा कि वैसे ही इन्हें छुट्टी कम मिलती हैं। घर पर दिखाने आते हैं और हम अपनी व्यस्तता में इनके लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाते।
ये विचार मन में आया और तभी तय कर लिया कि अब देश की रक्षा के लिए तैयार रहने वाले सैनिकों से फीस नहीं लेंगे। सीआरपीएफ, बीएसएफ, एयरफोर्स या पैरा मिलिट्री फोर्स में तैनात किसी सैनिक या उनके परिजनों से अब क्लीनिक पर फीस नहीं ली जाती है।
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ऑपरेशन का बिल भी स्वेच्छा पर:
सिर्फ परामर्श शुल्क ही नहीं, बल्कि ऑपरेशन के खर्च में भी डॉ. अपूर्व पूरी रियायत देते हैं। पूरे इलाज का खर्च, सैनिक की स्वेच्छा पर निर्भर है। वह जितना चाहे उतना भुगतान कर सकते हैं। ना देना चाहें तो उसमें भी कोई बाध्यता नहीं। डॉ. अपूर्व कहते हैं सभी सैनिक स्वयं 20 से 25 फीसद तक रियायत के बाद भुगतान कर देते हैं।
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खुद एयरफोर्स में जाना चाहते थे.. :
डॉ. अपूर्व बताते हैं कि उनकी सेना में जाने की इच्छा थी। एमएस की डिग्री हासिल करने के बाद एयरफोर्स में जाने को तैयारी की। चयन भी हो गया, लेकिन पिता बुद्धिप्रकाश चतुर्वेदी, चाचा रामगोपाल चतुर्वेदी एवं दादाजी उन्हें खुद से दूर नहीं जाने देना चाहते थे। लिहाजा यह विचार त्याग दिया। अब वह इस तरह देश की सेवा कर रहे हैं।

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